आरती कुंजबिहारी की: श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे भक्तों के लिए आराधना

आरती कुंजबिहारी की: श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे भक्तों के लिए आराधना
Last Updated: 23 सितंबर 2024

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

गले में वैजयंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुंडल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

 

गगन सम अंधकांति काली,

राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े वनमाली,

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

 

कनक मय मोर मुकुट बिलसत,

देवता दर्शन को तरसत।

गगन सौं सुमन रासि बरसत,

बजै मुरचंग, मधुर मृदंग, ग्वालिनी संग,

अतुल रति गोप कुमारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

 

जहाँ ते प्रकट भई गंगा,

सकल मल हरनी श्री गंगा।

स्मरण ते होत मोह भंगा,

बसी शिव शीश, जटा के बीच, हरे अघ कीच,

चरण छवि श्री बनवारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

 

चमकति उज्ज्वल तट रेणु,

बज रही वृंदावन बेंणु।

चहुँ दिशि गोपी-ग्वाल धेनु,

हसत मृदु मंद, चाँदनी चंद्र, कटत भव बंध,

टेढ़े सुघर श्रीमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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