Durga Puja 2024: बेगूसराय में केदारनाथ मंदिर का भव्य मॉडल और अस्सी घाट की महाआरती

Durga Puja 2024: बेगूसराय में केदारनाथ मंदिर का भव्य मॉडल और अस्सी घाट की महाआरती
Last Updated: 9 घंटा पहले

Bakhri Durga Puja बेगूसराय के बखरी में नवरात्रि का विशेष महत्व है। यहाँ तीन मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हैं। नवरात्रि के दौरान तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है, और मंदिरों को खूबसूरती से सजाया जाता है। पुराना दुर्गा मंदिर का पंडाल केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया जा रहा है। भक्त यहाँ तंत्र-मंत्र की सिद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं।

Begusarai News: जादू टोने के लिए प्रसिद्ध बहुरा मामा की धरती बखरी में नवरात्र का विशेष महत्व है। बखरी को शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है, और यहाँ अनुमंडल मुख्यालय में माता के तीन मंदिर स्थापित हैं, जो बाजार के मध्य और दोनों छोर पर स्थित हैं।

यहाँ वर्षभर मैया की पूजा-अर्चना होती है, लेकिन नवरात्र के मौके पर यहाँ तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। माता के आगमन के लिए बखरी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सजावट के लिए तीनों मंदिरों के बीच गला-काट प्रतियोगिता रहती है।

सभी पूजा समितियों में ऊंचे-ऊंचे आकर्षक तोरण द्वार, भव्य पंडाल और सजावट में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है। इस वर्ष भी नवरात्र को लेकर सभी पूजा समितियाँ पूजा पंडालों के निर्माण में व्यस्त हैं। पुराना दुर्गा मंदिर का पंडाल देश के प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर के तर्ज पर बनाया जा रहा है, और इसका निर्माण बंगाल से आए कारीगर कर रहे हैं।

दुर्गा मंदिर की अनोखी विशेषताएँ

पुराना दुर्गा मंदिर की महिमा अपरंपार है। यह मंदिर तंत्र मंत्र की सिद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए आसपास के राज्यों के साथ पड़ोसी देशों में भी प्रसिद्ध है। यहाँ हर वर्ष दूर-दूर से साधक आते हैं, जिन्हें तंत्र मंत्र की सिद्धि मिलती है।

महाअष्टमी की रात देवी के महागौरी रूप की पूजा करने पर साधकों को विशेष लाभ होता है। इस दिन माता को छप्पन प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है। पूरे नवरात्रि के दौरान मंदिर को फूलों से सजाया जाता है, और सजावट का कार्य नवरात्रि के एक दिन पहले से ही आरंभ हो जाता है।

महाआरती नवरात्र का मुख्य आकर्षण

महाआरती इस मंदिर की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। नवरात्र के नौ दिनों तक वाराणसी के अस्सी घाट के पंडितों को दुर्गा महाआरती के लिए आमंत्रित किया जाता है, जो नवमी तक माता दुर्गा की आरती करते हैं। इस अवसर पर मंदिर परिसर में वाराणसी के गंगा घाट पर बनाए गए मंच के समान विशेष मंच तैयार किए जाते हैं, जिन्हें रंगबिरंगी रोशनी और लाइटों से सजाया जाता है।

मंदिर का इतिहास सदियों से चलती रही आस्था

मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि यहाँ देवी दुर्गा की पूजा सैकड़ों वर्षों से की जा रही है, लेकिन इसके आरंभ का कोई सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि मुगल काल के पहले से ही यहाँ मां दुर्गा की पूजा होती रही है।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मध्य प्रदेश के धार नगरी के राजाओं ने सबसे पहले माता की पूजा शुरू की थी। उन परमार वंशीय राजाओं ने यहाँ मां दुर्गा की अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित की थी। लेकिन कालांतर में मूर्ति के चोरी हो जाने के बाद पुजारी को मिले मैया के आदेश के तहत यहाँ वर्षभर शून्य की पूजा की जाती है।

पुजारी की प्रेरणा भक्तों के लिए माता की कृपा

मंदिर के पुजारी अमरनाथ पाठक कहते हैं कि यहां माता हमेशा विराजमान रहती हैं और यहां से माता का कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। इस मंदिर में नि:संतान दंपतियों की मन्नतें मां दुर्गा पूरी करती हैं। महाअष्टमी की रात, भक्तों द्वारा मां के हाथ पर फूल अर्पित किया जाता है। यह फूल भक्तों की आराधना के कुछ समय बाद स्वयं गिर जाता है, जो भक्तों की मुरादें पूरी होने का संकेत माना जाता है।

पूजा समिति का संकल्प भव्यता और श्रद्धा का संगम

पूजा समिति के सचिव तारानंद सिंह कहते हैं कि पुराना दुर्गा मंदिर का निर्माण इसकी आस्था और महत्व के अनुरूप अयोध्याधाम मंदिर की तर्ज पर किया जाएगा। इसी कारण मंदिर के पुराने भवन को हटा दिया गया है, लेकिन पूजा उसी आस्था के साथ होगी और मेला भी उसी धूमधाम से आयोजित किया जाएगा।

 इसके लिए भव्य और आकर्षक पूजा पंडाल का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसमें मेला घूमने और पूजा करने आने वाले भक्तों के लिए सभी सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जा रहा है।

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