कैथल का काली माता मंदिर: एक अद्वितीय धार्मिक स्थल, जानें मंदिर का ऐतिहासिक विवरण

कैथल का काली माता मंदिर: एक अद्वितीय धार्मिक स्थल, जानें मंदिर का ऐतिहासिक विवरण
Last Updated: 05 अक्टूबर 2024

कैथल का काली माता मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जो केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि महाभारत के गौरवमयी इतिहास से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। सुरजकुंड डेरे में स्थित यह मंदिर विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं की विशाल भीड़ को आकर्षित करता है, जो अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां आते हैं।

मंदिर का भव्य परिसर और चारों ओर फैली हरियाली इसे और भी मनमोहक बनाती है। यहां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, भंडारे और मेले आयोजित किए जाते हैं, जो समाजिक मेलजोल को बढ़ावा देते हैं। श्रद्धालु केवल पूजा करते हैं, बल्कि आपस में एक-दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा करते हैं, जिससे एक सामुदायिक भावना का विकास होता है।

मंदिर के साथ ही स्थित पार्क और महाभारत काल की गुफा भी पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इन स्थलों का ऐतिहासिक महत्त्व श्रद्धालुओं को अपनी जड़ों से जोड़ता है और उन्हें अपने पूर्वजों की धरोहर का अनुभव कराता है।

काली माता का यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं है; यह सांस्कृतिक समृद्धि, सामाजिक एकता और ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक है। यहां आने वाले श्रद्धालु केवल अपनी आस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि एकजुटता और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे यह स्थान और भी खास बन जाता है।

इस नवरात्र के अवसर पर कैथल के काली माता मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। सुरजकुंड डेरे में स्थित यह पवित्र स्थल महाभारत के ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़ा हुआ है। हर साल यहां आयोजित होने वाला राष्ट्रीय स्तर का मेला भक्तों के लिए एक विशेष अनुभव बनता है, जहां वे अपने मनोकामनाओं के साथ माता की पूजा-अर्चना करते हैं। इस पावन पर्व पर मंदिर में भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत माहौल देखने को मिल रहा है।

कैथल के माता गेट पर स्थित ऐतिहासिक सूर्यकुंड डेरे में काली माता का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस डेरे का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और यह कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, ज्येष्ठ पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी, जिनमें से सबसे बड़ा कुंड माता गेट पर सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, काली माता के मंदिर को बाजीगर समाज की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। इसलिए चैत्र मास की अमावस्या और पहले नवरात्र पर यहां भव्य मेला आयोजित किया जाता है।

यह मेला शुक्रवार शाम से शुरू होकर शनिवार रात तक चलेगा। मंदिर परिसर में सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, और इसे भव्य तरीके से सजाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए मनोरंजन के झूले लगाए गए हैं, जबकि मंदिर के अंदर विभिन्न प्रकार की दुकानों की स्थापना की गई है। काली माता का यह मंदिर, जो सूर्यकुंड डेरे में स्थित है, अपनी गहरी धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है और हर साल बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।

यह है मंदिर का ऐतिहासिक विवरण

डेरे के महंत रमनपुरी के अनुसार, लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले, पंजाब के बाजीगर समाज का एक बुजुर्ग व्यक्ति सूर्यकुंड डेरे में विश्राम के लिए रुका। उसने वहां पूरी रात बिताई और सुबह काली माता ने उसे दर्शन दिए। माता ने कहा कि हर साल चैत्र नवरात्र के पहले दिन, बाजीगर समाज के लोग पूजा-अर्चना करेंगे और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। इस अवसर पर वे बकरा भी मंदिर में चढ़ा सकते हैं।

इस महत्वपूर्ण घटना के बाद, यह मंदिर बाजीगर समाज के लिए कुल देवी का स्थान बन गया। विवाह के बाद, नवविवाहित जोड़ा सबसे पहले इस मंदिर में माथा टेकता है, जो उनके नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। यह परंपरा आज भी कायम है, और भक्तजन इसे अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ निभाते हैं। इस प्रकार, यह मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि समाज के सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों को भी समर्पित है।

यह है मंदिर का ऐतिहासिक विवरण:

कैथल का काली माता मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जो महाभारत काल से जुड़ी धरोहर के रूप में प्रसिद्ध है। यह सुरजकुंड डेरे में स्थित है, जो पांडवों के समय का एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, ज्येष्ठ पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने यहां नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी, जिनमें से सबसे प्रमुख कुंड सूर्यकुंड के नाम से जाना जाता है।

मंदिर की वास्तुकला और उसकी भव्यता भक्तों को आकर्षित करती है। इसके चारों ओर काले-भूरे ग्रेनाइट पत्थरों की दीवारें इसे एक विशेष पहचान देती हैं। काली माता को बाजीगर समाज की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है, और हर साल चैत्र नवरात्र के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

इस मंदिर में सामाजिक परंपराएं भी महत्वपूर्ण हैं। विवाह के बाद, नवविवाहित जोड़ा सबसे पहले यहां माथा टेकता है, जो उनकी नई जिंदगी की शुरुआत का प्रतीक है। यह परंपरा केवल आस्था को मजबूत करती है, बल्कि समुदाय के बीच एकता और सहयोग को भी बढ़ावा देती है।

काली माता का यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है, जो पीढ़ियों से आस्था और भक्ति का स्रोत बना हुआ है।

सूर्यकुंड के साथ जुड़े हुए ये मंदिर

सूर्यकुंड के साथ जुड़े हुए ये मंदिर विभिन्न धार्मिक महत्त्व के प्रतीक हैं। इनमें प्रमुख रूप से:

माता काली का मंदिर: यह मंदिर काली माता की पूजा के लिए प्रसिद्ध है और भक्तों की आस्था का केंद्र है।

माता शीतला का मंदिर: यह मंदिर शीतला माता की विशेष पूजा के लिए जाना जाता है और हरियाणा के लोगों की कुल देवी मानी जाती है।

भगवान शिव का मंदिर: यहां भगवान शिव की पूजा भी की जाती है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है।

गुफा: महाभारत काल से जुड़ी एक गुफा भी यहां स्थित है, जो ऐतिहासिक महत्व रखती है और पर्यटकों को आकर्षित करती है।

अन्य देवी-देवताओं के मंदिर: मंदिर परिसर में भगवान दत्तात्रेय, लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बग्लामुखी, मां अन्नपूर्णा और हनुमान जी की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

ये सभी मंदिर एक साथ मिलकर सूर्यकुंड को धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाते हैं, जहां श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ आते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

महंत रमनपुरी ने बताया कि सूर्यकुंड के पास माता शीतला और माता काली का मंदिर भी है, साथ ही यहां भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है। पूरे मंदिर की दीवारों पर काले-भूरे रंग के ग्रेनाइट पत्थर का प्रयोग किया गया है। मंदिर की बाहरी चारदीवारी में भगवान दत्तात्रेय, भगवान लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बग्लामुखी, मां अन्नपूर्णा, और गेट पर हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित की गई हैं।

इसके अतिरिक्त, इस मंदिर में मां गंगा, संतोषी माता, बसंती माता और मैदानण माता की भी पूजा की जाती है। महंत ने बताया कि शीतला माता को हरियाणा के लोगों की कुलदेवी माना जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ माह में हर बुधवार और वीरवार को भक्तगण कुंड में नहाकर माता की पूजा करते हैं।

मंदिर प्रांगण में एक सुंदर पार्क है।

मंदिर प्रांगण में एक आकर्षक पार्क भी बनाया गया है, जहां शाम के समय श्रद्धालु शहर भर से सैर करने के लिए आते हैं। इस पार्क के साथ, महाभारत काल को दर्शाने वाली एक गुफा भी है, जो इतिहास प्रेमियों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र है। उपवन में कई प्रकार के फलों, फूलों और औषधियों के पौधे लगे हुए हैं, जो इसे एक जीवंत वातावरण प्रदान करते हैं।

इसके अतिरिक्त, शहर की सामाजिक संस्थाएं यहां समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करती हैं और भंडारे का आयोजन करती हैं, जिससे श्रद्धालुओं को केवल आध्यात्मिक अनुभव मिलता है, बल्कि आपसी मेलजोल और सहयोग का भी अवसर मिलता है। यह स्थल केवल पूजा-अर्चना का केंद्र है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और एकता का प्रतीक भी है।

मंदिर प्रांगण में एक सुंदर पार्क है, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थान बन गया है। इस पार्क में हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूलों की क्यारियां और बैठने के लिए आरामदायक बेंच हैं, जो एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करते हैं।

सुबह और शाम के समय, यह पार्क लोगों से भरा रहता है, जो यहां आकर अपनी भक्ति के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं। बच्चे झूलों पर खेलते हैं, जबकि बड़े लोग शांतिपूर्ण माहौल में टहलते हैं या ध्यान लगाते हैं।

इसके अलावा, इस पार्क में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिससे यह स्थान केवल एक मनोरंजन स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सामुदायिक भावना का केंद्र भी बन जाता है। यहां की हरियाली और शांति श्रद्धालुओं को मानसिक सुकून देती है और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को और भी विशेष बनाती है।

Leave a comment