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पूजा में वास्तु का ध्यान क्यों ज़रूरी है? जानें सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा के खास टिप्स

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सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मानसिक शांति और घर की सकारात्मक ऊर्जा को भी बनाए रखने का माध्यम माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा-पाठ के दौरान वास्तु शास्त्र के कुछ सरल नियमों का पालन करना आपके जीवन को और अधिक समृद्ध और सौभाग्यशाली बना सकता है?

वास्तु शास्त्र, जो कि प्राचीन भारतीय विज्ञान है, यह बताता है कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने पक्ष में कैसे लाया जाए। यदि पूजा स्थान और प्रक्रिया वास्तु के अनुरूप हो, तो देवी-देवताओं की कृपा से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

मंदिर की दिशा का रखें विशेष ध्यान

वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार, घर में मंदिर बनवाने के लिए सबसे शुभ दिशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) मानी जाती है। यह दिशा आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र मानी जाती है। यदि यह संभव न हो तो पूर्व दिशा भी उपयुक्त मानी जाती है। दक्षिण दिशा में मंदिर या मूर्तियों का मुख होना अशुभ माना गया है, क्योंकि यह दिशा यम की मानी जाती है।

कैसे करें पूजा—वास्तु अनुसार विधि

पूजा के समय बैठकर पूजा करना अधिक फलदायक माना गया है। खड़े होकर पूजा करने से वह स्थिरता नहीं बनती जो बैठने से आती है।
पूजा करते समय साधक का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। यह दिशा उगते सूर्य की है, जिसे ऊर्जा और ज्ञान का स्रोत माना गया है।
पूजा स्थल पर साफ-सफाई बेहद आवश्यक है। स्नान के बाद ही पूजा में बैठना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करना चाहिए।

इन बातों की अनदेखी न करें

पूजा स्थल के पास शौचालय या बाथरूम नहीं होना चाहिए। यह नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और पूजा की पवित्रता को भंग करता है।
सीढ़ियों के नीचे या स्टोर रूम में कभी भी मंदिर न बनाएं। यह स्थान ऊर्जाहीन और भारी माना जाता है, जो देव स्थान के लिए अनुपयुक्त है।
मंदिर में टूटे हुए भगवान की मूर्तियाँ या तस्वीरें न रखें। यह अशुभ फल देता है और सकारात्मक ऊर्जा में बाधा डालता है।

घर में आएगी खुशहाली

जब पूजा घर को वास्तु अनुसार सजाया जाता है और पूजा विधिवत होती है, तो घर में मानसिक शांति, आर्थिक स्थिरता और पारिवारिक सामंजस्य बना रहता है। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए भी अनिवार्य माना गया है।

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