वर्ष 2025 की भानु सप्तमी विशेष संयोगों के साथ आने वाली है। इस दिन न केवल आत्मा के कारक सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है, बल्कि त्रिपुष्कर योग जैसे दुर्लभ संयोग इस दिन को और भी अधिक शुभ और फलदायी बना रहे हैं। भानु सप्तमी हर माह शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को आती है, लेकिन जब यह रविवार के दिन पड़ती है, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस वर्ष 20 अप्रैल 2025, रविवार को भानु सप्तमी मनाई जाएगी, जो विशेष रूप से वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को पड़ रही है।
भानु सप्तमी 2025: पूजा का शुभ मुहूर्त और तिथि
• सप्तमी तिथि प्रारंभ: 19 अप्रैल को शाम 06:21 बजे
• सप्तमी तिथि समाप्त: 20 अप्रैल को शाम 07:00 बजे
• उदयातिथि अनुसार पर्व तिथि: 20 अप्रैल, रविवार
त्रिपुष्कर योग: शुभता की तीन गुना गारंटी
इस बार भानु सप्तमी पर जो त्रिपुष्कर योग बन रहा है, वह दोपहर 11:48 बजे से शाम 07:00 बजे तक प्रभावी रहेगा। यह योग अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि इसमें किया गया कोई भी कार्य या संकल्प तीन गुना फल देता है। इस योग में सूर्य देव की पूजा, दान-पुण्य, और नवीन कार्यों की शुरुआत अत्यंत फलदायी होती है।
सिद्ध योग और नक्षत्र संयोग
भानु सप्तमी पर सिद्ध योग भी बन रहा है, जो देर रात 12:13 बजे तक रहेगा। इसके साथ ही पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों का संयोग इस दिन को और भी शुभ बना देता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन की गई सूर्य पूजा से स्वास्थ्य, आत्मबल और सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
विशेष पंचांग विवरण
• सूर्योदय – सुबह 05:51 बजे
• सूर्यास्त – शाम 06:50 बजे
• ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04:22 से 05:06 बजे तक
• विजय मुहूर्त – दोपहर 02:30 से 03:22 बजे तक
• गोधूलि मुहूर्त – शाम 06:49 से 07:11 बजे तक
• निशीथ काल – रात 11:58 से 12:48 बजे तक
भानु सप्तमी का आध्यात्मिक महत्व
भानु सप्तमी का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा और पवित्र है। इसे भगवान सूर्य के प्राकट्य दिवस के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन सूर्य देव ने अपने तेज से अज्ञानता और अंधकार का नाश कर संसार को प्रकाशमान किया था। इस कारण यह तिथि "सूर्य जयंती" के रूप में भी प्रसिद्ध है। प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, भगवान सूर्य एक स्वर्णिम रथ पर सवार होते हैं, जिसे सात घोड़े खींचते हैं—जो सप्ताह के सात दिनों और जीवन की सात ऊर्जा शक्तियों के प्रतीक माने जाते हैं। इस रथ के सारथी अरुण होते हैं, जो उषा यानी भोर के प्रतीक हैं।
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में भानु सप्तमी का उल्लेख उस दिवस के रूप में किया गया है जब भगवान सूर्य ने स्वर्ग की ओर अपनी यात्रा आरंभ की थी। यह दिन अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का प्रतीक है, और आत्मज्ञान तथा जागरूकता की दिशा में बढ़ने की प्रेरणा देता है। भानु सप्तमी को सूर्यदेव की उपासना से विशेष लाभ मिलते हैं। धार्मिक मान्यता है कि सूर्य आराधना से शारीरिक, मानसिक कष्ट, और आजीविका संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। ज्योतिष के अनुसार भी यह दिन करियर ग्रोथ, आत्मबल, और संपन्नता के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
भानु सप्तमी पूजा विधि (Bhanu Saptami Puja Vidhi)
1. ब्रह्म मुहूर्त में उठें: भानु सप्तमी के दिन, पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त (जो सुबह 4:30 से 5:30 के बीच होता है) में उठें। इसके बाद शरीर को स्वच्छ करने के लिए नहा लें और शुद्ध, साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
2. तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य दें: पूजा के मुख्य भाग में सूर्य देव को तांबे के लोटे से अर्घ्य देने का महत्व है। इसमें शुद्ध जल, थोड़ा लाल चंदन, अक्षत (चावल) और लाल फूल डालें। अर्घ्य देते समय, निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:
3. ॐ घृणि सूर्याय नमः इस मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। यह मंत्र सूर्य के सभी दोषों को दूर करने और आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रमुख मंत्र माना जाता है।
4. संकल्प और पूजा का आरंभ: अर्घ्य अर्पित करने के बाद, हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेने के बाद सूर्य देव की पूजा करें और उन्हें लाल फूल, धूप, नैवेद्य और अक्षत अर्पित करें।
5. सूर्य देव की आरती: सूर्य देव की पूजा के बाद, सूर्य देव की आरती करें। आरती से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और पूजा का प्रभाव तीव्र होता है। आप सूर्य आरती के साथ सूर्य देव का गुणगान भी कर सकते हैं।
6. भानु सप्तमी की कथा सुनें या पढ़ें: इस दिन भानु सप्तमी की कथा सुनना या पढ़ना बेहद शुभ माना जाता है। कथा में सूर्य देव के महत्व, उनके द्वारा अज्ञान का नाश करने की बात और उनके दिव्य रूप का वर्णन किया जाता है।
7. ब्राह्मण को भोजन कराएं और गाय को हरा चारा खिलाएं: पूजा के बाद, एक ब्राह्मण को भोजन कराना और गाय को हरा चारा खिलाना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इससे सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और पुण्य के साथ जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
8. दान-पुण्य करें: दिन के अंत में, जरूरतमंदों को दान देना बहुत लाभकारी होता है। आप दूध, चावल, फल या वस्त्र दान कर सकते हैं। दान से पुण्य प्राप्त होता है और मानसिक शांति मिलती है।
9. व्रत का पारण: भानु सप्तमी व्रत के समाप्त होने पर मीठे भोजन से पारण करें। इस दिन, नमक का त्याग करना आवश्यक है, क्योंकि यह दिन विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना का दिन है और नमक से बचने से पूजा का अधिक लाभ मिलता है।
व्रत के लाभ
• सूर्य देव की पूजा से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
• मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है, विशेषकर करियर और जीवन के लक्ष्यों में सफलता मिलती है।
• शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
• पुण्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है, जो जीवन को बेहतर बनाती है।
भानु सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने का विशेष महत्व है। यह दिन विशेष रूप से सूर्य के पूजन, संकल्प और दान-पुण्य के लिए होता है। सही पूजा विधि अपनाकर इस दिन सूर्य देव की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार, भानु सप्तमी की पूजा विधि को सही तरीके से अपनाकर आप सूर्य देव की कृपा पा सकते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव कर सकते हैं।