ज्योतिषियों के अनुसार, गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2024) पर भद्रावास का शुभ संयोग बन रहा है। इसके अलावा, इस दिन कई अन्य मंगलकारी शुभ योग भी बन रहे हैं। इन शुभ योगों में भगवान गणेश की पूजा करने से न केवल आय में वृद्धि होती है, बल्कि सौभाग्य भी बढ़ता है। भगवान गणेश की कृपा साधक पर हमेशा बनी रहती है। इस पावन अवसर पर भक्तजन सच्चे भक्ति भाव से गणपति जी की आराधना करते हैं।
Ganesh Chaturthi: वैदिक पंचांग के अनुसार, 07 सितंबर को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाने की परंपरा है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा और उपासना की जाती है। साथ ही, उनकी प्रतिमा की स्थापना कर पूजन करने तक व्रत रखा जाता है। भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में आय, सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है, और धन से संबंधित समस्याएँ भी दूर होती हैं।
यदि आप भी गणपति बप्पा की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो गणेश चतुर्थी के दिन विधि और विधान के अनुसार भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें। साथ ही, पूजा के समय इन मंत्रों का जप करना न भूलें।
गणेश मंत्र
"ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे"
(हम गणों के गणपति 'भगवान गणेश' की स्तुति करते हैं।)
"कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्"
(आप कवियों के कवि और ज्ञानियों के ज्ञानी हैं।)
"ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत"
(आप ब्रह्मा के प्रधान और ब्रह्मा के स्वामी हैं।)
"आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्"
(हमारी प्रार्थनाओं को सुनिए और हमारे लिए आदर्श रूप में विराजमान रहिए।)
गणपति का शुद्धि मंत्र
"ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।"
(चाहे व्यक्ति अपवित्र हो या पवित्र हो, चाहे किसी भी अवस्था में हो।)
"यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥"
(जो व्यक्ति भगवान विष्णु 'पुंडरीकाक्ष' का स्मरण करता है, वह बाहरी और आंतरिक रूप से शुद्ध हो जाता है।)
गणेश गायत्री मंत्र
"ॐ एकदन्ताय विद्महे"
(हम एकदन्त भगवान गणेश को जानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।)
"वक्रतुण्डाय धीमहि"
(हम वक्रतुण्ड भगवान गणेश की ध्यान साधना करते हैं।)
"तन्नो दंती प्रचोदयात्"
(उन्हीं भगवान गणेश से हम ज्ञान और ऊर्जा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।)
गणेश आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावंत, चार भुजाधारी।
माथे पे सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी॥
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा॥
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े हार।
मेवा का भोग लगे, नाम बने हर॥
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जय बलिहारी॥