Guru Ravidas Jayanti 2025: माघ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती हैं रविदास जयंती, जानिए इस दिन का महत्व

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गुरु रविदास जयंती माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो संत गुरु रविदास के जन्मदिन का प्रतीक है। यह दिन रैदास पंथ धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। इस अवसर पर गुरु रविदास जी की अमृतवाणी का पाठ किया जाता है और उनके सम्मान में नगर कीर्तन (संगीतमय जुलूस) निकाला जाता है। श्रद्धालु इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और मंदिरों में गुरु की छवि की पूजा करते हैं।

हर साल वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर में भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह आयोजन संत गुरु रविदास के विचारों और शिक्षाओं को पुनः स्मरण करने का अवसर होता है। उनकी शिक्षाएं सामाजिक समानता, आध्यात्मिकता, और मानवता के मूल्यों पर आधारित हैं।

कब हुआ गुरु रविदास जी का जन्म?

गुरु रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में 1377 विक्रमी संवत (अनुमानित 1398 ईस्वी) में वाराणसी के सीर गोवर्धन गांव में हुआ था। उनका जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था। उनके पिता रघु श्री जूते बनाने का कार्य करते थे और उनकी माता का नाम घुरबिनिया (या करम देवी) था। बाल्यकाल से ही गुरु रविदास जी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और साधु-संतों की संगत उन्हें बहुत प्रिय थी।

गांव के एक स्थानीय गुरु से उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई, लेकिन उनका ज्ञान और आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता स्वाभाविक थी। वे सामाजिक बंधनों और जाति-व्यवस्था से ऊपर उठकर मानवीय एकता और आध्यात्मिक प्रेम का संदेश देते थे। गुरु रविदास जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में समानता, भक्ति और मानवता के आदर्शों का प्रचार किया। उनके विचार आज भी लाखों अनुयायियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

गुरु रविदास जयंती का महत्व 

रविदास जयंती गुरु रविदास जी के जन्म का प्रतीक है और उनके अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है। गुरु रविदास जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ अपने कार्यों के लिए पूजनीय हैं। एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में उन्होंने सामाजिक समानता और भक्ति मार्ग का प्रचार किया। उनके उपदेश भक्ति आंदोलन का हिस्सा बने और वे संत कबीर जी के करीबी मित्र के रूप में भी जाने जाते हैं।

इस दिन भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और गुरु रविदास जी के जीवन से जुड़ी महान घटनाओं को याद कर प्रेरणा लेते हैं। श्रद्धालु उनके जन्म स्थान, सीर गोवर्धनपुर (वाराणसी) में जाकर भव्य उत्सव मनाते हैं। इस दौरान उनके चित्र के साथ जुलूस निकाले जाते हैं और कीर्तन-भजन का आयोजन होता है। रैदास पंथ का पालन करने वाले अनुयायियों के साथ-साथ कबीरपंथी, सिख, और अन्य गुरुओं के अनुयायी भी इस दिन विशेष श्रद्धा व्यक्त करते हैं। गुरु रविदास जी ने जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया, जिसके कारण वे आज भी समाज सुधारकों और संतों में एक उच्च स्थान रखते हैं।

रविदास जी के संत बनने की कहानी

गुरु रविदास जी के संत बनने की कहानी अत्यंत प्रेरणादायक है। कहा जाता है कि बचपन से ही उनमें अद्भुत और अलौकिक शक्तियां विद्यमान थीं। एक कथा के अनुसार जब वे अपने साथी बच्चों के साथ खेल रहे थे, तो एक दिन उनका एक मित्र खेलने नहीं आया। जब रविदास जी उसे ढूंढ़ने गए, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि उस मित्र का निधन हो चुका हैं।

इस दुखद समाचार से व्यथित होकर रविदास जी ने अपने मित्र के पास जाकर कहा, "उठो, यह सोने का समय नहीं है। मेरे साथ खेलने चलो।" उनकी इन पवित्र वचनों से उनका मृत मित्र जीवित हो उठा। यह घटना उनके दिव्य गुणों और अलौकिक शक्तियों का प्रमाण मानी जाती हैं।

हालांकि, गुरु रविदास जी ने अपनी शक्तियों को भौतिक चमत्कार दिखाने के बजाय ईश्वर भक्ति और समाज सेवा में समर्पित कर दिया। वे भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में तल्लीन रहने लगे। उनकी निस्वार्थ सेवा, आध्यात्मिक उपदेश, और समाज सुधार के कार्यों के कारण लोग उन्हें एक संत के रूप में मानने लगे। उनका जीवन भक्ति, करुणा, और समानता का प्रतीक बन गया।

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