पंचांग के अनुसार, इस वर्ष होलाष्टक 7 मार्च 2025 (शुक्रवार) से शुरू होकर 13 मार्च 2025 (गुरुवार) को होलिका दहन के साथ समाप्त होगा। होलाष्टक की अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन आदि शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
क्या है होलाष्टक?
होलाष्टक, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक के आठ दिनों को कहा जाता है। इन दिनों को अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। शास्त्रों में इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक कारण बताए गए हैं।
होलाष्टक: भक्ति, क्रोध और अग्नि परीक्षा का अद्भुत संयोग
• होलाष्टक की परंपरा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसके पिता हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ी है।
• हिरण्यकश्यप, जो स्वयं को भगवान मानता था, अपने पुत्र प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित था।
• उसने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक आठ दिनों तक प्रह्लाद को कठोर यातनाएं दीं।
• लेकिन विष्णु कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
• फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन हुआ और प्रह्लाद की विजय हुई।
• इन आठ दिनों को संघर्ष और पीड़ा का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।
होलाष्टक के ज्योतिषीय कारण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक नवग्रह उग्र रहते हैं। अष्टमी के दिन चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु का प्रभाव अधिक होता है। इन ग्रहों की उग्रता के कारण नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है, जिससे इस अवधि में किए गए शुभ कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
धार्मिक और तांत्रिक दृष्टिकोण
धार्मिक रूप से: यह समय भक्ति, तपस्या और संयम के लिए उत्तम माना गया है। देवी-देवताओं की आराधना करने से विशेष फल मिलता है।
तांत्रिक दृष्टि से: यह समय सिद्धियों और साधनाओं के लिए अनुकूल है, लेकिन मांगलिक कार्यों के लिए नहीं।
वैज्ञानिक कारण
होलाष्टक केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी हैं।
मौसम परिवर्तन
यह समय सर्दी से गर्मी में बदलाव का होता है, जिससे बैक्टीरिया और वायरस अधिक सक्रिय हो जाते हैं।
इस दौरान शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है, इसलिए खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
होलिका दहन का वैज्ञानिक महत्व
होलिका दहन में गाय के गोबर से बने कंडे, पीपल, पलाश, नीम जैसी लकड़ियां जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। इनसे निकलने वाला धुआं बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है।
होलाष्टक में कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं?
• विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, भूमि पूजन आदि शुभ कार्य इस दौरान नहीं किए जाते।
• कोई भी नया व्यवसाय या बड़ा निवेश करने से बचना चाहिए।
• यज्ञ, हवन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी इस अवधि में न करने की सलाह दी जाती है।
• नवविवाहित महिलाओं को मायके में ही रहने की परंपरा है, ताकि ससुराल में किसी प्रकार की अनहोनी न हो।
होलाष्टक केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक, ज्योतिषीय और तांत्रिक पहलू भी जुड़े हैं। यह समय ध्यान, साधना और आध्यात्मिक ऊर्जा को मजबूत करने का है, लेकिन शुभ कार्यों के लिए इसे उचित नहीं माना जाता।
नोट : यह जानकारी धार्मिक ग्रंथों, शास्त्रों और लोक मान्यताओं पर आधारित है।