हर साल 14 अप्रैल को जब सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करता है, तो यह परिवर्तन मेष संक्रांति कहलाता है। इसी शुभ संक्रांति के दिन उत्तर भारत के कई राज्यों विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और मध्य प्रदेश में सतुआन पर्व बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। गर्मी की दस्तक के साथ उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में सतुआन पर्व की पारंपरिक गूंज आज फिर सुनाई दे रही है।
सूर्यदेव के मेष राशि में प्रवेश के साथ खरमास की समाप्ति और सौर नववर्ष की शुरुआत हो चुकी है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में इस पर्व को पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
सतुआन परंपरा: आस्था, स्वास्थ्य और संस्कृति का संगम
इस दिन सत्तू, कच्चा आम, गुड़, दही और बेल शरबत जैसे ठंडे और पोषक पदार्थों का सेवन न केवल परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह शरीर को मौसम के अनुसार ढालने का वैज्ञानिक उपाय भी माना जाता है। पंडित प्रभात मिश्र के अनुसार, सतुआन सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि शुद्धता, शीतलता और शुभता का प्रतीक है।
सतुआन के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत
सतुआन के दिन से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत हो जाती है। इसे धार्मिक दृष्टि से सबसे शुभ तिथि माना गया है क्योंकि चैत्र नवरात्रि के समापन के बाद यह पहला ऐसा दिन होता है, जब नवग्रहों की स्थिति अनुकूल मानी जाती है।
पूजन, तर्पण और दान का विशेष महत्व
लोग इस दिन कुलदेवताओं की पूजा, पितरों का तर्पण और सत्तू, गुड़, ककड़ी जैसे शीतल खाद्य पदार्थों का दान करते हैं। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अपने बच्चों को जल से शीतलता प्रदान करने की परंपरा निभाती हैं, जबकि कुएं, तालाब जैसे जल स्रोतों की सफाई कर सामाजिक जिम्मेदारी भी निभाई जाती है।मुजफ्फरपुर, दरभंगा, गया, वाराणसी और सासाराम जैसे शहरों के बाजारों में चना, जौ और मक्के के सत्तू की भारी बिक्री देखी जा रही है। उत्तर प्रदेश से आए भुंजा कारोबारी इस मौके पर लाखों का कारोबार कर रहे हैं। रविवार रात से ही बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी थी, जो सोमवार को भी जारी रही।
सत्तू का धार्मिक और स्वास्थ्य लाभ
• इस दिन सत्तू का विशेष महत्व होता है।
• मिट्टी के बर्तन में पानी, गेहूं, जौ, चना और मकई का सत्तू रखा जाता है।
• साथ में आम का टिकोरा भी रखा जाता है और भगवान को भोग अर्पित किया जाता है।
• फिर यही प्रसाद के रूप में पूरे परिवार द्वारा ग्रहण किया जाता है।
• सत्तू न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सेहत के लिए भी लाभकारी माना जाता है। गर्मी में इसका सेवन शरीर को ठंडक देता है, लू से बचाता है और लंबे समय तक भूख नहीं लगने देता।
पौराणिक मान्यता और लोक परंपरा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जब राजा बलि को पराजित किया, तब उन्होंने सत्तू का सेवन किया था। इसी मान्यता के आधार पर सत्तू को इस दिन देवताओं और पितरों को अर्पित किया जाता है। वहीं, मिथिला में इस समय सत्तू और बेसन की ताजा पैदावार होती है, जिससे इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है।
सतुआन के अगले दिन यानी पर्व के दूसरे दिन ‘धुरलेख’ मनाया जाता है। इस दिन गांववाले सामूहिक रूप से कुएं और जल स्रोतों की सफाई करते हैं। चूल्हों को आराम दिया जाता है और रात्रि में मांसाहारी भोजन बनाने की परंपरा होती है।