आचार्य चाणक्य के अनुसार, इंसान का सबसे बड़ा रोग और सबसे बड़ा सुख कौन सा है, जानें
कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नामों से विख्यात आचार्य चाणक्य के बुद्धि कौशल को उनके शत्रु भी मानते थे। आचार्य न केवल विभिन्न विषयों के ज्ञाता थे, बल्कि एक योग्य गुरु, मार्गदर्शक और रणनीतिकार भी थे। आचार्य का व्यक्तित्व असाधारण था और उन्होंने अपने अनुभवों और जनहित को ध्यान में रखते हुए जो कुछ भी कहा, वह आज भी सटीक साबित होता है।
आइए जानते हैं इस लेख में आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में सबसे बड़ा सुख, तप, रोग और धर्म किसे माना है।
सबसे बड़ा सुख: संतोष
आचार्य चाणक्य ने संतोष को सबसे बड़ा सुख माना है। उनका मानना था कि जिस व्यक्ति के पास संतुष्टि है, वह संसार में सबसे अधिक सुखी है। इंसान की कामना ही उसकी सबसे बड़ी शत्रु है। संतुष्ट व्यक्ति दूसरों के सुख को देखकर ईर्ष्या नहीं करता और खुश रहता है।
सबसे बड़ा तप: शांति
आचार्य चाणक्य शांति को सबसे बड़ा तप मानते थे। उनका मानना था कि कुछ लोगों के पास दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं होती हैं, लेकिन फिर भी उनके पास शांति नहीं होती। शांति तभी आती है, जब व्यक्ति अपने मन को अपने वश में कर लेता है। जिसने शांति को पा लिया, उसका जीवन सफल हो जाता है।
सबसे बड़ा शत्रु: लालच
व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु उसका लालच है। लालची व्यक्ति को कितना भी मिल जाए, उसे कभी संतुष्टि नहीं मिलती। वह दूसरों की चीजों पर भी बुरी नजर रखता है और उन्हें हड़पने की कोशिश करता है। ऐसे व्यक्ति के पास न संतुष्टि होती है और न ही शांति। जिसने लालच पर विजय प्राप्त कर ली, उसने आधी जंग जीत ली।
सबसे बड़ा धर्म: दया
दूसरों के प्रति दया का भाव रखना सबसे बड़ा धर्म है। आचार्य चाणक्य मानते थे कि यदि इंसान में दया नहीं है तो वह पशु के समान है। भगवान ने इंसान को इस योग्य बनाया है कि वह दूसरों की मदद कर सके। इसलिए दया को सबसे बड़ा धर्म माना गया है।