आज, 26 फरवरी, वीर सावरकर की पुण्यतिथि पर, हम उनके राष्ट्रवादी विचारों और कश्मीर को लेकर उनकी दूरदृष्टि पर चर्चा कर रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम के इस महानायक ने भारत की अखंडता और सुरक्षा को लेकर जो विचार व्यक्त किए थे, वे आज भी प्रासंगिक हैं।
सावरकर का जीवन परिचय
वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गांव में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से बीए किया। वे पढ़ाई में तेज होने के साथ-साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में भी सक्रिय थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी गतिविधियों के कारण उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई और अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल में कैद किया गया। वहां उन्होंने अमानवीय यातनाएं झेलीं, लेकिन उनके विचार और राष्ट्रभक्ति की भावना अडिग रही।
सावरकर का कश्मीर और अखंड भारत का दृष्टिकोण
वीर सावरकर हमेशा ‘अखंड भारत’ के प्रबल समर्थक रहे। उनका मानना था कि भारत सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से एक अविभाज्य राष्ट्र है— "कश्मीर से रामेश्वरम तक एक भारत"। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि कश्मीर सिर्फ एक भूभाग नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है। 1942 में, खराब स्वास्थ्य के बावजूद, सावरकर कश्मीर पहुंचे, जहां उन्होंने व्यापक समर्थन हासिल किया।
जब रावलपिंडी में उनसे पूछा गया कि मुस्लिम बहुल कश्मीर में हिंदू राजा क्यों होना चाहिए, तो उन्होंने तर्क दिया कि यही सिद्धांत भोपाल और हैदराबाद में भी लागू होना चाहिए, जहां हिंदू बहुल आबादी पर मुस्लिम शासक थे।
आजादी के तुरंत बाद कश्मीर पर दी चेतावनी
सितंबर 1947 में, भारत को आजादी मिलने के कुछ ही हफ्तों बाद, सावरकर ने पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमले की आशंका जताई थी। उन्होंने सरकार से सतर्क रहने और निर्णायक कदम उठाने की अपील की थी। कुछ ही महीनों बाद, अक्टूबर 1947 में, उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया और भारत को सैन्य हस्तक्षेप करना पड़ा।
सावरकर न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे एक लेखक, वक्ता, और प्रखर राष्ट्रवादी भी थे। उन्होंने भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए जो विचार रखे, वे आज भी प्रेरणा देते हैं। उनकी कश्मीर नीति और दूरदर्शिता यह साबित करती है कि वे न केवल अपने समय के बल्कि आने वाले समय के भी महान विचारक थे।
सावरकर की विरासत और प्रेरणा
वीर सावरकर ने 'हिंदुत्व' की अवधारणा को विस्तार दिया और इसे एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि हिंदुत्व केवल धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ी और आज भी वे विचारधारा के स्तर पर चर्चा के केंद्र में हैं।
26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी जीवित हैं। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति और राष्ट्रवाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में अपने राष्ट्र और सिद्धांतों के प्रति अडिग रहना ही सच्ची देशभक्ति हैं।