Yogesh Kumar Sabharwal: योगेश कुमार सभरवाल की जयंती 14 जनवरी को मनाई जाती है, क्योंकि उनका जन्म 14 जनवरी 1942 को हुआ था। यह दिन उनके योगदान और उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को याद करने का अवसर होता है। भारत के 36वें मुख्य न्यायाधीश, श्री योगेश कुमार सभरवाल (14 जनवरी 1942 – 3 जुलाई 2015), ने न्यायिक सेवा में एक लंबा और प्रभावशाली सफर तय किया। उनकी उपस्थिति भारतीय न्यायपालिका में एक प्रमुख मील का पत्थर बन चुकी थी, और उनके निर्णयों ने भारतीय न्याय व्यवस्था को दिशा देने का कार्य किया।
न्यायिक सफर की शुरुआत
योगेश कुमार सभरवाल ने अपने करियर की शुरुआत 1969 में भारतीय रेलवे के वकील के रूप में की। इसके बाद उन्होंने 1973 से 1977 तक दिल्ली प्रशासन के वकील के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने 1980 से 1986 तक केंद्र सरकार के वकील के रूप में कार्य किया और दिल्ली में बार काउंसिल ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व भी किया।
दिल्ली उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक
17 नवंबर 1986 को, सभरवाल को दिल्ली उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद वह जल्दी ही न्यायाधीश बने। 3 फरवरी 1999 को उन्हें बॉम्बे उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और फिर उसी वर्ष भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल
1 नवंबर 2005 को, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री आरसी लाहोटी सेवानिवृत्त हुए, तो श्री सभरवाल को उनकी जगह मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उनका कार्यकाल 31 अक्टूबर 2007 तक रहा।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, श्री सभरवाल ने कई महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णय दिए। एक महत्वपूर्ण मामला अक्टूबर 2005 में आया, जब उन्होंने बिहार विधानसभा को असंवैधानिक रूप से भंग करने के राज्यपाल की रिपोर्ट को स्वीकार किया, हालांकि उन्होंने इसे तत्काल वापस नहीं लिया और चुनावों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
उनके नेतृत्व में एक अन्य विवादास्पद मामला दिल्ली के सीलिंग अभियान से जुड़ा था। इस अभियान के दौरान, कई अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया गया, लेकिन इसमें उनके बेटे के रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े होने के आरोप उठे, जो न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं।
परिवार से जुड़ी विवादास्पद बातें
उनके बेटे, चेतन और नितिन सभरवाल, पर आरोप था कि वे दिल्ली के रियल एस्टेट कारोबार में शामिल थे, विशेषकर 2006 में जब दिल्ली में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माणों को ध्वस्त किया जा रहा था। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनके बेटे के व्यापार के संदर्भ में कई आपत्तिजनक स्थितियाँ सामने आईं, जैसे पवन इम्पेक्स और अन्य कंपनियों के साथ उनके संबंध, जो बाद में प्रमुख रियल एस्टेट निवेशकों द्वारा समर्थित पाई गईं।
इन आरोपों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए। हालांकि, सभरवाल ने इन आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया और कहा कि उन्हें इस बारे में पूरी जानकारी नहीं थी।
शाही निर्णय और विवाद
सभरवाल के फैसलों में संवैधानिक अधिकारों के प्रति उनका गहरा समर्पण दिखता है, लेकिन उनका यह भी मानना था कि न्यायपालिका को अपने निर्णयों में सार्वजनिक हित का ध्यान रखना चाहिए। एक मामले में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं, तो उन्हें अवमाननापूर्ण नहीं माना जा सकता।
साथ ही, न्यायमूर्ति सभरवाल के खिलाफ कुछ विवाद भी थे, जिनमें उनके परिवार के रियल एस्टेट कारोबार के आरोप प्रमुख थे। इन आरोपों के कारण न्यायपालिका की छवि पर प्रभाव पड़ा और इसने मीडिया में काफी चर्चा का विषय बना।
सेवानिवृत्ति और निधन
3 जुलाई 2015 को 73 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से योगेश कुमार सभरवाल का निधन हो गया। उनका निधन भारतीय न्यायपालिका के लिए एक बड़ी क्षति थी, और उनकी न्यायिक सेवा को हमेशा याद किया जाएगा।
उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके द्वारा किए गए निर्णय और उनके योगदान न्यायपालिका के इतिहास में महत्वपूर्ण माने जाते हैं। योगेश कुमार सभरवाल को न केवल उनके निर्णयों के लिए, बल्कि उनके न्यायिक समर्पण के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा।
योगेश कुमार सभरवाल का जीवन भारतीय न्यायपालिका के प्रति उनके समर्पण और उनके योगदान का प्रतीक था। उनके द्वारा किए गए कई महत्वपूर्ण फैसले आज भी भारतीय न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। उनका निधन भारतीय न्यायपालिका के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनके कार्य और न्यायिक दृष्टिकोण हमेशा हमें मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।