सोनेपुर मेला न केवल दुनिया का सबसे बड़ा पशु मेला है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन का भी अद्भुत संगम है। बिहार के सारण जिले में गंगा और गंडक नदियों के संगम पर स्थित सोनेपुर शहर में आयोजित होने वाला यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवंबर) के समय शुरू होता है और लगभग एक महीने तक चलता है। इसे छत्तर मेला भी कहा जाता है, और इसका आयोजन महाभारत काल से जुड़ा माना जाता है।
इतिहास और महत्व
सोनेपुर मेले का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त इस मेले में हाथियों और घोड़ों को खरीदकर अपनी सेना के लिए तैयार करते थे। यह मेला उस समय में एक प्रमुख व्यापारिक स्थल था, जहाँ युद्ध के लिए आवश्यक पशु और संसाधन खरीदे-बेचे जाते थे। इसके बाद, मुगलों और अंग्रेजों के शासन के दौरान भी यह मेला पशु व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा।
पशु व्यापार की अद्वितीयता
सोनेपुर मेले की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ पर होने वाला पशु व्यापार है। हाथी, घोड़े, ऊँट, भैंस, गाय, बैल, बकरी, और पक्षियों सहित विभिन्न प्रकार के पशु यहाँ व्यापार के लिए लाए जाते हैं। मेले में हाथियों की बिक्री खास आकर्षण होती है, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ कानूनी रूप से हाथियों का व्यापार किया जाता है। यहाँ हाथियों को सजाया जाता है और पारंपरिक रूप से उनका प्रदर्शन भी किया जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू
मेले का आयोजन सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है। यह मेला एक धार्मिक महत्व भी रखता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखों श्रद्धालु गंगा और गंडक नदी में स्नान करते हैं और सोनेपुर स्थित हरिहरनाथ मंदिर में भगवान विष्णु और शिव की पूजा करते हैं। इस धार्मिक स्नान और पूजा का बहुत बड़ा महत्व है, और लोग मानते हैं कि इससे उन्हें पवित्रता और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सांस्कृतिक धरोहर और आकर्षण
सोनेपुर मेला एक महीने तक चलने वाला एक विशाल उत्सव है, जहाँ पशु व्यापार के साथ-साथ सर्कस, नाटक, जादू शो, लोक गीत-नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। यहाँ आने वाले लोग पारंपरिक हस्तशिल्प, वस्त्र, सजावटी सामान, और खानपान की विभिन्न वस्तुओं की दुकानों का आनंद लेते हैं।
आधुनिक स्वरूप
आज के समय में, सोनेपुर मेला सिर्फ पशु व्यापार का मेला नहीं रह गया है, बल्कि यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बन गया है। बिहार सरकार द्वारा इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, और यहाँ पर्यटकों के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। यहाँ आने वाले लोग बिहार की संस्कृति, परंपरा और लोककला से भी रूबरू होते हैं।
दिलचस्प तथ्य:
सोनेपुर मेला की शुरुआत का सही दिन महाभारत युग से जुड़ा हुआ माना जाता है।
प्राचीन काल में, सोनेपुर मेले में नेपाल तक के व्यापारी हिस्सा लेते थे, जो इसे एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र बनाता था।
यह मेला अब सिर्फ पशु व्यापार का नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव का भी केंद्र बन चुका है, जहाँ लाखों लोग शामिल होते हैं।
सोनेपुर मेला आज भी अपनी ऐतिहासिकता, धार्मिकता और व्यापारिक महत्व के कारण दुनिया के सबसे अनूठे मेलों में से एक है।