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International Everest Day: जानिए इस पर्वत और पर्व के पीछे की पूरी कहानी

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हर साल 29 मई को इंटरनेशनल एवरेस्ट डे (International Everest Day) मनाया जाता है। यह दिन दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट और उन साहसी पर्वतारोहियों को समर्पित है जिन्होंने इस कठिन शिखर को छूने का साहस किया। एवरेस्ट केवल एक पहाड़ नहीं है, यह इंसानी हौसले, जिद और आत्मबल का प्रतीक है।

इस खास दिन पर हम आपको बताएंगे कि एवरेस्ट डे क्यों मनाया जाता है, माउंट एवरेस्ट से जुड़ी ऐतिहासिक और रोचक बातें क्या हैं, साथ ही इसे कैसे सेलिब्रेट कर सकते हैं – आइए जानते हैं इस पर्व की पूरी कहानी आसान भाषा में।

इंटरनेशनल एवरेस्ट डे क्यों मनाया जाता है?

29 मई 1953 को तेनजिंग नॉरगे (Tenzing Norgay) और एडमंड हिलेरी (Edmund Hillary) ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहली बार सफलतापूर्वक कदम रखा था। यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि यह दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर तक पहुंचने की पहली रिकॉर्डेड सफलता थी।

जब एडमंड हिलेरी का 2008 में निधन हुआ, तब नेपाल सरकार ने उनकी स्मृति में हर साल 29 मई को इंटरनेशनल एवरेस्ट डे मनाने की घोषणा की। यह पर्व दुनिया भर में पर्वतारोहण प्रेमियों, रोमांच के शौकीनों और साहसी आत्माओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

एवरेस्ट: दुनिया की सबसे ऊंची चोटी 

ऊंचाई: लगभग 8,848.86 मीटर (29,031 फीट)

स्थान: नेपाल और तिब्बत (चीन) की सीमा पर स्थित

नेपाली नाम: सगरमाथा (Sagarmāthā – 'आकाश का सिर')

तिब्बती नाम: चोमोलुंगमा (Chomolungma – 'दुनिया की माता')

यह पहाड़ न केवल भौगोलिक रूप से ऊंचा है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर शेरपा समुदाय के लिए जो इसे एक पवित्र स्थल मानते हैं।

एवरेस्ट विजय की कहानी

1920 के दशक में ही एवरेस्ट पर चढ़ाई के प्रयास शुरू हो गए थे। 1924 में जॉर्ज मल्लोरी और एंड्रयू इरविन ने आखिरी बार देखा गया था, और उनकी मृत्यु के बाद यह रहस्य बना रहा कि क्या वे चोटी तक पहुंचे थे या नहीं।

1953 में ब्रिटिश एक्सपेडिशन के तहत तेनजिंग नॉरगे और एडमंड हिलेरी ने आखिरकार 29 मई को सुबह 11:30 बजे एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर इतिहास रच दिया।

एवरेस्ट पर चढ़ाई: रोमांच के साथ जोखिम भी

  • ऑक्सीजन की कमी: 8,000 मीटर से ऊपर की ऊंचाई को "डेथ ज़ोन" कहा जाता है। यहां ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम होती है और क्लाइंबर्स को ऑक्सीजन सिलेंडर की मदद लेनी पड़ती है।
  • बर्फीला तूफान: अचानक मौसम खराब होना यहां आम बात है। 1996 में आए तूफान में 8 पर्वतारोहियों की जान चली गई थी।
  • हिमस्खलन: 2014 और 2015 में हुए भयंकर हिमस्खलनों में दर्जनों जानें गईं।
  • खुंबू आइसफॉल: यह क्षेत्र सबसे खतरनाक है जहां गहरे दरारें और बर्फ की अस्थिर परतें हैं।

अब तक एवरेस्ट पर 300 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसलिए एवरेस्ट पर चढ़ाई केवल प्रशिक्षित और अनुभवी पर्वतारोहियों के लिए ही उपयुक्त है।

इंटरनेशनल एवरेस्ट डे कैसे मनाएं?

स्थानीय पहाड़ी या ट्रेकिंग करें: अगर आप किसी पहाड़ी इलाके में रहते हैं, तो इस दिन अपने इलाके की किसी छोटी पहाड़ी पर चढ़ाई कर सकते हैं। यह आपके अपने 'एवरेस्ट' को जीतने जैसा अनुभव होगा।

एवरेस्ट से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री देखें:

Everest: Death Zone – शेरपा समुदाय की बहादुरी को दिखाती है।

Sherpa – 2014 की हिमस्खलन त्रासदी पर आधारित।

Everest (2015) – 1996 के तूफान पर आधारित फिल्म।

Ultimate Survival: Everest – पर्वतारोहियों की चुनौतियों पर आधारित सीरीज़।

एवरेस्ट पर चढ़ाई के बारे में पढ़ें या कोर्स शुरू करें: यदि आप सच में कभी एवरेस्ट पर चढ़ने का सपना देखते हैं, तो इस दिन से अपने प्रशिक्षण की शुरुआत कर सकते हैं। आप किसी स्थानीय पर्वतारोहण क्लब से जुड़ सकते हैं या बेसिक माउंटेन क्लाइंबिंग कोर्स कर सकते हैं। 

सोशल मीडिया पर जानकारी साझा करें: एवरेस्ट डे के बारे में जागरूकता फैलाना भी इस पर्व की सच्ची भावना है। सोशल मीडिया पर पोस्ट, रील या ब्लॉग शेयर करके दूसरों को प्रेरित करें।

शेरपा समुदाय का योगदान

एवरेस्ट विजय की हर कहानी में शेरपा गाइड्स का योगदान सबसे अहम होता है। ये बहादुर पर्वतगामी न केवल चढ़ाई में मदद करते हैं, बल्कि रास्ते की सफाई और पर्यावरण संरक्षण में भी आगे रहते हैं।

हर चढ़ाई से पहले शेरपा समुदाय 'पूजा सेरेमनी' करता है, जिसमें पर्वत से अनुमति ली जाती है। उनके अनुसार, एवरेस्ट सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि ‘माँ’ है – जिसे छूने से पहले श्रद्धा ज़रूरी है।

माउंट एवरेस्ट न केवल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है, बल्कि यह मानव साहस, दृढ़ता और आत्मविश्वास का प्रतीक भी है। इंटरनेशनल एवरेस्ट डे हमें उन सभी बहादुर पर्वतारोहियों और शेरपा समुदाय की श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर देता है, जिन्होंने इस चुनौतीपूर्ण पर्वत को सफलतापूर्वक पार किया। यह दिन हमें प्रकृति के प्रति सम्मान, साहस की प्रेरणा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है।

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