लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के एक अत्यंत प्रभावशाली नेता और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संस्थापक सदस्य हैं। उनके योगदान ने भारतीय राजनीति की दिशा को नया मोड़ दिया और भाजपा को एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया। आडवाणी जी का राजनीतिक जीवन संघर्ष, समर्पण और नेतृत्व का एक अद्वितीय उदाहरण है, जिसे भारतीय राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा।
प्रारंभिक जीवन और राजनीति में प्रवेश
लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची, जो अब पाकिस्तान में स्थित है, में हुआ था। उनके पिता का नाम के. डी. आडवाणी था, जो एक व्यापारी थे, और माता का नाम ज्ञानी आडवाणी था। आडवाणी जी का पालन-पोषण एक भारतीय संयुक्त परिवार में हुआ, जहाँ भारतीय संस्कृति, समाज और देशभक्ति के मूल्यों को महत्व दिया जाता था।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
आडवाणी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल से प्राप्त की। विभाजन के समय, जब आडवाणी जी की उम्र 20 वर्ष थी, भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ विभाजन उनके जीवन का एक अहम मोड़ था। देश के बंटवारे के दौरान, उनके परिवार को भी पाकिस्तान से भारत आना पड़ा। इस कठिन समय में आडवाणी जी ने अपनी शिक्षा को जारी रखा और मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव
आडवाणी जी का राजनीति में प्रवेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से हुआ, जहां उन्हें युवा अवस्था में ही भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के विचारों से प्रेरणा मिली। केवल 14 वर्ष की आयु में आडवाणी जी ने संघ से जुड़ने का निर्णय लिया और स्वयंसेवक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। संघ के प्रति उनकी निष्ठा और विचारधारा ने उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
आडवाणी जी के मन में देश के लिए कुछ करने की भावना बहुत ही प्रबल थी, जो उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही थी। वे देश के विभाजन के समय भारत आकर दिल्ली में आरएसएस के प्रचारक के तौर पर काम करने लगे। इसके बाद, उन्होंने सिंध से आए हुए प्रवासियों की मदद करना शुरू किया और इस दौरान उन्होंने दिल्ली और राजस्थान में लोगों की सेवा की।
राजनीति में कदम
आडवाणी जी का राजनीति में प्रवेश भारतीय जनसंघ से हुआ, जिसे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में स्थापित किया था। जनसंघ का उद्देश्य भारतीय समाज में सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना था। आडवाणी जी ने युवा कार्यकर्ता के रूप में जनसंघ में काम करना शुरू किया और जल्द ही पार्टी के प्रमुख नेताओं में उनकी गिनती होने लगी।
1960 के दशक में आडवाणी जी को दिल्ली में पार्टी कार्यों के लिए भेजा गया, जहां वे भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेताओं के साथ काम करने लगे। इस समय उन्होंने जनसंघ की नीतियों को जनता तक पहुँचाने के लिए ऑर्गनाइजर नामक एक प्रमुख हिंदी साप्ताहिक पत्रिका में सहायक संपादक के तौर पर भी कार्य किया।
दिल्ली और राजनीति में बढ़ता प्रभाव
आडवाणी जी का दिल्ली में आधिकारिक राजनीतिक काम और पत्रकारिता में कदम रखना उनके राजनीतिक करियर का अहम मोड़ था। इसके बाद, उन्होंने राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों पर काम करना शुरू किया। जनसंघ में बढ़ते प्रभाव के कारण उन्हें दिल्ली के राजधानी क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता और नेता के रूप में स्वीकार किया गया।
आडवाणी जी ने पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए दिन-रात मेहनत की और उनके साथियों ने उन्हें राजनीति का एक सशक्त चेहरा माना। यही कारण था कि वे जल्द ही पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे।
इस प्रकार, उनका प्रारंभिक जीवन न केवल शिक्षा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित था, बल्कि यह एक ऐसी यात्रा थी जिसमें उन्होंने देश के लिए समर्पित होकर अपने जीवन को संघर्ष और सेवा में समर्पित किया। यही वजह थी कि आडवाणी जी का राजनीतिक जीवन भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राजनीति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हुआ।
भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) तक का सफर
लाल कृष्ण आडवाणी का राजनीतिक जीवन भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) तक के सफर को समझना भारतीय राजनीति के विकास को समझने के बराबर है। आडवाणी जी ने भारतीय जनसंघ के गठन से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार और उसे एक शक्तिशाली पार्टी बनाने में अपना अहम योगदान दिया। उनके नेतृत्व में भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाई और भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी।
भारतीय जनसंघ का गठन (1951)
भारतीय जनसंघ की स्थापना 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा की गई थी। भारतीय जनसंघ का उद्देश्य भारतीय समाज में सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना था। भारतीय जनसंघ ने राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता के लिए संघर्ष करने और समाजवादी नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
आडवाणी जी ने भारतीय जनसंघ में एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में शामिल होकर पार्टी की विचारधारा को फैलाना शुरू किया। वे भारतीय जनसंघ के एक समर्पित प्रचारक बन गए, जिन्होंने न केवल दिल्ली में, बल्कि देशभर में पार्टी की नीतियों और विचारों को फैलाया। आडवाणी जी ने अपनी मेहनत से पार्टी को एक मजबूत आधार दिया और जल्द ही वे पार्टी के प्रमुख नेताओं में शामिल हो गए।
आडवाणी जी का नेतृत्व और जनसंघ की राजनीति में प्रभाव
आडवाणी जी के नेतृत्व में जनसंघ का प्रभाव बढ़ने लगा। उन्होंने पार्टी के संगठन को मजबूत किया और पार्टी की विचारधारा को आम जनता तक पहुँचाने के लिए कई यात्राएँ कीं। 1970 के दशक में आडवाणी जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने और इस दौरान उन्होंने पार्टी को एक मजबूत दिशा दी।
1975 में आपातकाल के दौरान, जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया, आडवाणी जी और अटल बिहारी वाजपेयी समेत जनसंघ के नेता गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए। इस कठिन समय में आडवाणी जी ने अपनी देशभक्ति और संघर्ष की मिसाल कायम की। आपातकाल के बाद, 1977 में जब जनता पार्टी गठित हुई, तो भारतीय जनसंघ उसका हिस्सा बन गया और आडवाणी जी को केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर मिला।
भा.ज.पा. का गठन (1980)
1980 में जब भारतीय जनसंघ और जनता पार्टी का विलय हुआ, तो भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का गठन हुआ। इस नए संगठन की स्थापना में आडवाणी जी और अटल बिहारी वाजपेयी का अहम योगदान था। भाजपा की शुरुआत में ही आडवाणी जी ने उसे भारतीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान दिलाने के लिए सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया।
आडवाणी जी ने भाजपा को एक ऐसा पार्टी के रूप में स्थापित किया, जिसने भारतीय राजनीति में संस्कृतिवादी और राष्ट्रवादी विचारधारा को मुख्यधारा में लाया। उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक मजबूती प्रदान की और भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार के लिए रणनीतियाँ बनाई। भाजपा के पहले कुछ वर्षों में पार्टी को खास सफलता नहीं मिली, लेकिन आडवाणी जी ने लगातार पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत की।
राम रथ यात्रा (1990)
भा.ज.पा. की लोकप्रियता को बढ़ाने में आडवाणी जी की राम रथ यात्रा का ऐतिहासिक योगदान रहा। 1990 में उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा शुरू की, जिसका उद्देश्य राम मंदिर आंदोलन को समर्थन देना और भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार को बढ़ावा देना था। यह यात्रा भारतीय राजनीति में एक बड़े बदलाव की शुरुआत थी और इसके माध्यम से आडवाणी जी ने खुद को एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया।
राम रथ यात्रा के दौरान आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता में और वृद्धि हुई और भाजपा को एक नई दिशा मिली। इस यात्रा ने भाजपा को संघीय राजनीति में एक शक्तिशाली ताकत बना दिया।
1990 के दशक में भाजपा की बढ़ती ताकत
1990 के दशक में भाजपा ने लोकसभा चुनाव 1991 में शानदार प्रदर्शन किया। हालांकि पार्टी कांग्रेस के मुकाबले कमजोर थी, लेकिन भाजपा ने बढ़ती संख्या में सीटें जीतीं और भारतीय राजनीति में खुद को स्थापित किया। 1996 में भाजपा ने पहली बार लोकसभा चुनावों में 161 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1996 में भाजपा ने सरकार बनाई, हालांकि यह सरकार सिर्फ 13 दिनों तक चली।
आडवाणी जी की नेतृत्व में भाजपा ने 1998 में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के तहत केंद्र में अपनी सरकार बनाई और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। आडवाणी जी को गृह मंत्री के रूप में कार्यभार सौंपा गया।
आडवाणी जी का राष्ट्रीय राजनीति में अहम स्थान
आडवाणी जी का भारतीय राजनीति में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। वे केवल भाजपा के संरक्षक ही नहीं थे, बल्कि भारतीय राजनीति के एक प्रमुख चेहरा भी बने। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई ऐतिहासिक जीतें हासिल कीं, जिनमें 1999 के आम चुनाव और 2004 के चुनाव भी शामिल हैं।
1999 में भाजपा को वाजपेयी सरकार के तहत सत्ता में आने का मौका मिला और आडवाणी जी को उपप्रधानमंत्री का पद सौंपा गया। इस दौरान वे गृह मंत्री के तौर पर भी सक्रिय रहे।
भा.ज.पा. का संकुल विस्तार और आडवाणी जी की विरासत
आडवाणी जी के नेतृत्व में भाजपा ने न केवल अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई, बल्कि वह भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रमुख प्रतीक बना दिया। उन्होंने भाजपा के विचारधारा को भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया, और पार्टी के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों को सशक्त तरीके से पेश किया।
आखिरकार, लाल कृष्ण आडवाणी का भारतीय जनसंघ से भाजपा तक का सफर एक लंबी यात्रा रही, जिसमें उन्होंने न केवल भाजपा को सशक्त किया, बल्कि उसे एक राष्ट्रीय ताकत बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व ने पार्टी को वह दिशा दी, जिससे आज भाजपा भारत की सबसे बड़ी और प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।
केन्द्रीय सरकार में लाल कृष्ण आडवाणी जी का योगदान
लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता रहे हैं, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और भारतीय राजनीति को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आडवाणी जी ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और भारतीय राजनीति के अहम मोड़ों पर अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया। उनकी भूमिका विशेष रूप से केन्द्रीय सरकार में महत्वपूर्ण रही, जहां उन्होंने गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले लिए।
गृह मंत्री के रूप में योगदान (1998-2004)
आडवाणी जी ने 1998 में भा.ज.पा. की एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार में गृह मंत्री के रूप में शपथ ली। इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारतीय सुरक्षा, आतंकवाद और आंतरिक मामलों से संबंधित कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनके कार्यकाल में सुरक्षा के मामले में कुछ प्रमुख कदम उठाए गए, जिनका असर आज तक भारतीय राजनीति और सुरक्षा नीति पर देखा जा सकता है।
मुख्य योगदान
कश्मीर में आतंकवाद का सामना: गृह मंत्री के तौर पर आडवाणी जी का सबसे बड़ा काम कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद से निपटना था। उन्होंने आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की और सुरक्षा बलों को सशक्त किया। उनकी नीतियों ने भारतीय सुरक्षा बलों को कश्मीर घाटी में आतंकवाद से लड़ने में मदद की।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पाकिस्तान से संबंध: आडवाणी जी के गृह मंत्री बनने के दौरान भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी कई अहम मोड़ आए। 1999 में भारत ने करगिल युद्ध का सामना किया, जिसमें पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ भारतीय सेना ने सशक्त प्रतिक्रिया दी। आडवाणी जी के नेतृत्व में गृह मंत्रालय ने कड़ी कार्रवाई की और भारतीय सैनिकों की वीरता को एक नई पहचान दिलाई। इसके अलावा, पाकिस्तान के साथ समझौते और संबंधों को लेकर भी आडवाणी जी का अहम योगदान रहा।
आतंकी हमलों के खिलाफ कड़ा रुख: आडवाणी जी के कार्यकाल में कई आतंकवादी हमले हुए, जिनमें 1999 का कंधार विमान अपहरण और 2001 का संसद हमला प्रमुख थे। इन हमलों के जवाब में आडवाणी जी ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया और आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाए। इसके साथ ही, उन्होंने पाकिस्तान से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी आवाज उठाई।
सुरक्षा क़ानूनों में सुधार: आडवाणी जी ने POTA (Prevention of Terrorism Act) और TADA (Terrorist and Disruptive Activities Act) जैसे कड़े कानूनों को लागू करने के लिए समर्थन किया। ये कानून सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए अतिरिक्त अधिकार देते थे। हालांकि, इन कानूनों को लेकर कुछ विवाद भी हुआ, लेकिन उनका उद्देश्य भारतीय सुरक्षा को मजबूत करना था।
उपप्रधानमंत्री के रूप में योगदान (2002-2004)
आडवाणी जी का योगदान केवल गृह मंत्री तक सीमित नहीं था, बल्कि 2002 से 2004 तक उन्होंने उपप्रधानमंत्री के रूप में भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में आडवाणी जी को यह पद सौंपा गया था। उपप्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने भारतीय राजनीति, विदेश नीति और सुरक्षा मामलों में अपनी छाप छोड़ी।
मुख्य योगदान
विदेश नीति में अहम भूमिका: आडवाणी जी ने एनडीए सरकार के दौरान भारत की विदेश नीति को मजबूत किया। उनके नेतृत्व में, भारत ने अमेरिका और अन्य देशों के साथ रिश्ते बेहतर किए। अमेरिका के साथ सामरिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए आडवाणी जी ने कई महत्वपूर्ण पहल कीं।
विकास और आंतरिक सुधार: आडवाणी जी के उपप्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय राजनीति में कुछ महत्वपूर्ण आंतरिक सुधार हुए। उनकी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर, कृषि, और सामाजिक कल्याण योजनाओं में कई अहम कदम उठाए। उनके योगदान से भारत में विकास के नए रास्ते खोले गए।
आंतरिक सुरक्षा को प्राथमिकता: आडवाणी जी ने अपने उपप्रधानमंत्री रहते हुए आंतरिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। वे हमेशा आतंकवाद से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की बात करते थे। उनकी सरकार ने आतंकवादियों को पाकिस्तान से मदद मिलने के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया और भारत की सुरक्षा नीति को मजबूत किया।
राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता: आडवाणी जी ने उपप्रधानमंत्री रहते हुए भारतीय राजनीति को स्थिर बनाए रखने की पूरी कोशिश की। उन्होंने भारतीय राजनीति के भीतर सहमति और मतभेदों के बीच संतुलन बनाए रखा और सत्ता के दलों के बीच सहयोग और सामंजस्य स्थापित किया।
भारत रत्न सम्मान और सराहना
लाल कृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न सम्मान
लाल कृष्ण आडवाणी जी, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर, को 31 मार्च 2024 को भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की गई। यह सम्मान उनके भारतीय राजनीति में असाधारण योगदान और भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित करने में उनकी भूमिका को मान्यता देने के रूप में दिया गया है।
आडवाणी जी को यह सम्मान भारतीय राजनीति के एक अभिन्न हिस्से के रूप में उनके कार्यों, विचारधारा और नीतियों के लिए दिया गया है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को न केवल एक राजनीतिक पार्टी के रूप में आकार दिया, बल्कि भारतीय राजनीति में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उनकी नेतृत्व क्षमता, दृढ़ता, सिद्धांतों पर अडिग विश्वास और राष्ट्र निर्माण की दिशा में उनके योगदान को मान्यता दी गई है।
भारत रत्न मिलने की प्रक्रिया
भारत रत्न पुरस्कार के लिए पात्रता के कोई विशेष नियम नहीं होते, हालांकि यह सामान्यतः उन्हीं व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने किसी भी क्षेत्र में असाधारण योगदान किया हो। भारत रत्न का चयन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है, और प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा यह सम्मान प्रदान किया जाता है। किसी भी व्यक्ति को यह सम्मान देने का निर्णय भारत सरकार की एक समिति द्वारा लिया जाता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने वाले व्यक्तियों का मूल्यांकन करती है।
भारत रत्न के प्राप्तकर्ता को स्वर्ण पदक और एक प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार बहुत ही प्रतिष्ठित है और प्राप्तकर्ता के जीवन में एक ऐतिहासिक मोड़ होता है, क्योंकि यह न केवल उनके काम की सराहना है, बल्कि भारतीय राष्ट्र के प्रति उनके योगदान का एक समर्पण भी है।
आडवाणी जी का योगदान और भारत रत्न की सराहना
लाल कृष्ण आडवाणी जी का भारत रत्न से सम्मानित होना भारतीय राजनीति और भाजपा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। उनकी लंबी और संघर्षपूर्ण राजनीतिक यात्रा को देखते हुए, उनका यह सम्मान अत्यंत उपयुक्त और सराहनीय है। आडवाणी जी ने भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई और भारतीय जनता पार्टी को संविधान और राष्ट्रवाद के सिद्धांतों पर आधारित एक शक्तिशाली राजनीतिक दल के रूप में खड़ा किया।
उनकी राम रथ यात्रा, सुरक्षा नीति, और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। भारत रत्न से उन्हें सम्मानित करके भारत सरकार ने उनके योगदान को उचित मान्यता दी है। यह पुरस्कार उन्हें ना केवल उनके पार्टी के नेतृत्व के लिए दिया गया है, बल्कि उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण, विचारधारा, और जनता के प्रति उनकी निष्ठा को भी मान्यता दी गई है।