दुनिया भर में ऊर्जा संकट और बढ़ती खपत के बीच विश्व ऊर्जा दक्षता दिवस हर साल 5 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा के विवेकपूर्ण उपयोग और टिकाऊ भविष्य की दिशा में कदम उठाना है। 1998 में ऑस्ट्रिया में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय बैठक के दौरान शुरू की गई इस पहल का मुख्य मकसद ऊर्जा बचत को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना है।
बढ़ती मांग के बीच ऊर्जा दक्षता की जरूरत
औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण ऊर्जा की खपत तेजी से बढ़ रही है, जिससे पारंपरिक स्रोतों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऊर्जा दक्षता केवल खपत कम करने तक सीमित नहीं है, बल्कि स्मार्ट टेक्नोलॉजी, अक्षय ऊर्जा स्रोतों और बेहतर प्रबंधन रणनीतियों को अपनाने से भी जुड़ी हुई है।
कैसे बचा सकते हैं ऊर्जा?
• विशेषज्ञों के अनुसार, ऊर्जा की बचत के लिए कुछ आसान लेकिन प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं:
• दिन के उजाले का अधिकतम उपयोग करें और गैर-जरूरी लाइटें बंद रखें।
• ऊर्जा-कुशल उपकरणों का इस्तेमाल करें जो कम बिजली की खपत करते हैं और दीर्घकालिक बचत प्रदान करते हैं।
• पारंपरिक बल्ब की जगह एलईडी का उपयोग करें, जिससे 80% तक ऊर्जा बचाई जा सकती है।
• सार्वजनिक परिवहन, साइकिलिंग और कार-पूलिंग को प्राथमिकता दें ताकि ईंधन की खपत कम हो और प्रदूषण घटे।
LEED और BREEAM: ऊर्जा दक्षता के अंतरराष्ट्रीय मानक
इमारतों में ऊर्जा दक्षता को लेकर LEED (लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायरनमेंटल डिज़ाइन) और BREEAM (बिल्डिंग रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट एनवायरनमेंटल असेसमेंट मेथड) जैसी वैश्विक प्रमाणन प्रणालियाँ लागू की जाती हैं।
• LEED प्रमाणन अमेरिका में विकसित किया गया है और इसमें ऊर्जा दक्षता, जल संरक्षण और पर्यावरणीय गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जाता है।
• BREEAM प्रमाणन ब्रिटेन में विकसित प्रणाली है, जो ऊर्जा प्रबंधन, परिवहन, अपशिष्ट प्रबंधन और टिकाऊ भूमि उपयोग पर केंद्रित है।
सरकार और उद्योग जगत की पहल
भारत सरकार भी ऊर्जा बचत को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिनमें ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, स्टार रेटिंग प्रोग्राम, और ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) जैसी पहलें शामिल हैं। निजी क्षेत्र भी हरित ऊर्जा समाधानों की ओर अग्रसर हो रहा है।
सतत भविष्य की ओर कदम
विश्व ऊर्जा दक्षता दिवस सिर्फ एक औपचारिक दिवस नहीं है, बल्कि यह हमें ऊर्जा उपभोग की अपनी आदतों पर पुनर्विचार करने और सतत विकास की दिशा में ठोस कदम उठाने की प्रेरणा देता है। सरकार, उद्योग और आम नागरिकों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और पर्यावरण-संवेदनशील भविष्य मिल सके।