आइसलैंड की महिला प्रधानमंत्री खुद हड़ताल पर, देश की सभी महिलाओं से काम पर ना जाने की अपील, सैलरी बराबरी का है मामला

आइसलैंड की महिला प्रधानमंत्री खुद हड़ताल पर, देश की सभी महिलाओं से काम पर ना जाने की अपील, सैलरी बराबरी का है मामला
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Last Updated: 07 नवंबर 2023

आइसलैंड की महिला प्रधानमंत्री खुद हड़ताल पर, देश की सभी महिलाओं से काम पर ना जाने की अपील, सैलरी बराबरी का है मामला 

स्कैंडिनेविआ का ये देश आइसलैंड 370,000 लोगों की आबादी वाला एक छोटा मगर छेत्रफल में यूरोपीय देशों के मुकाबले एक बड़ा देश है। अपनी हरियाली, शुद्धता, शान्ति, और सम्म्पन्ता के लिए मशहूर आइसलैंड तब सुर्ख़ियों में आ गया जब ये खबर आई की खुद इस देश की  प्रधान मंत्री 24 अक्टूबर को हड़ताल पर चली गई साथ ही साथ उन्होंने देश की सभी महिलाओं से उस दिन काम पर न जाने के लिए कहा। यह खबर आप  Iceland Hindi News provider subkuz.com पर पढ़ रहे हैं .

असल में यह उनके विरोध करने का तरीका था, वह इससे पुरे देश में इस बात पर बहस शुरू करवाना चाहती थी की क्यों आखिर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है। वो आइसलैंड अपने समानता के लिए जाना जाता है और वेतन में भी समानता होनी चाहिए। 

आइसलैंड की महिलाओं ने भी कहा कि हालांकि आइसलैंड को समानता का स्वर्ग माना जाता है, लेकिन पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता अभी भी मौजूद है और तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। प्रधान मंत्री कैथरीन जैकब्सडॉटिर ( Katrín Jakobsdóttir ) के आह्वान के बाद हजारों महिलाओं ने एक दिवसीय हड़ताल में भाग लिया। इसे महिला अवकाश भी कहा गया।

आइसलैंड में, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकांश महिलाएं उस दिन हड़ताल पर रहीं, और दिलचस्प बात यह रही कि इस हड़ताल में महिलाओं ने घर के काम को भी शामिल किया, यानी उस दिन के लिए घर का काम भी महिलाओं ने नहीं किया। इस देशव्यापी महिला हड़ताल के कारन आइसलैंड में किंडरगार्टन और प्राइमरी स्कूल मंगलवार को बंद रहे। हड़ताल का असर संग्रहालयों, पुस्तकालयों और चिड़ियाघरों के साथ साथ करीब करीब हर जगह पर महसूस किया गया।

हड़ताल में शामिल आइसलैंड की प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा कि वह और उनके मंत्रिमंडल की सभी महिलाएं काम नहीं करेंगी।

कैथरीन कोबस्टोटिर ( Katrín Jakobsdóttir ) ने हड़ताली महिलाओं के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा कि वह आज काम पर नहीं जाएंगी और घर पर ही रहेंगी और घर के भी किसी काम में हिस्सा नहीं लेंगी. स्थानीय मीडिया से बात करते हुए, प्रधान मंत्री ( Katrín Jakobsdóttir ) 

 ने कहा: जैसा कि आप सब जानते हैं, हमने अपने लैंगिक समानता के लक्ष्यों को पूरी तरह से हासिल नहीं किया है और अभी भी वेतन में लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति 2023 में नहीं बदलेगी. यह स्वीकार करना असंभव है. हमें इसे बदलने की जरुरत है और हमें सबको साथ कम करने की जरुरत है। 

कई लोकल मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने समान वेतन पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वेतन अंतर बढ़ रहा है, ऐसे में सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि तथाकथित महिला-प्रधान व्यवसायों के साथ-साथ पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान व्यवसायों के महत्व को कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस उद्देश्य से चार सरकारी एजेंसियों में एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया गया है।

आइसलैंड का ऐतिहासिक "महिला दिवस" 24 अक्टूबर

इस ऐतिहासिक हड़ताल के लिए  24 अक्टूबर को चुना गया. 24 अक्टूबर यानी वही दिन जब ठीक 48 साल पहले आइसलैंड की महिलाओं ने एक साथ छुट्टियां मनाई थीं या योन कहें की हड़ताल की थी। तब यह एक ऐतिहासिक घटना थी और  24 अक्टूबर 1975 को, लगभग 90 प्रतिशत आइसलैंडिक की महिलाओं ने काम और पारिवारिक जिम्मेदारियों से छुट्टी ले ली थी।

उनका लक्ष्य यह दिखाना था कि महिलाएं समाज और अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके बिना कहीं भी काम नहीं चल सकता. फिर भी, वे पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं। घर के अंदर और बाहर उनके काम के महत्व को कम करके आंका जाता है। अपनी हड़ताल से वह देश और दुनिया को दिखाना चाहती थीं कि जब महिलाएं काम नहीं करतीं या बेरोजगार रहती हैं तो कितना नुकशान होता है, चाहे वो नुकशान घरेलु हो पारिवारिक हो या व्यवसायिक हो, महिलायें हर छेत्र में पुरषों के सहयोग में या बराबर में खड़ी हैं। 

कई लोकल मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने समान वेतन पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वेतन अंतर बढ़ रहा है, ऐसे में सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि तथाकथित महिला-प्रधान व्यवसायों के साथ-साथ पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान व्यवसायों के महत्व को कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस उद्देश्य से चार सरकारी एजेंसियों में एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया गया है।

 

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