हाईकोर्ट ने दिया बड़ा बयान, कहा- 'बिहार में शराब सिर्फ पुलिस और तस्करों के लिए ही मुनाफा का जरिया हैं'

हाईकोर्ट ने दिया बड़ा बयान, कहा- 'बिहार में शराब सिर्फ पुलिस और तस्करों के लिए ही मुनाफा का जरिया हैं'
Last Updated: 5 घंटा पहले

बिहार में शराबबंदी के संदर्भ में यह तीखी टिप्पणी पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने की है। जस्टिस पूर्णेदु सिंह एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी करते हुए नजर आए। राज्य में शराबबंदी के मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट की ओर से यह पहली बार ऐसी टिप्पणी आई है।

बिहार में नीतीश सरकार द्वारा लागू की गई शराबबंदी कानून को लेकर समय-समय पर कई सवाल उठते रहे हैं, लेकिन अब पटना हाईकोर्ट ने भी इस मुद्दे पर गंभीर प्रश्न उठाया है। पटना हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए शराबबंदी के संबंध में कड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट के अनुसार, राज्य में शराबबंदी के चलते अवैध शराब के कारोबार में बढ़ोतरी हो रही है।

कोर्ट ने कहा है कि पुलिस, आबकारी, कर और परिवहन विभाग शराब पर रोक को प्राथमिकता दे रहे हैं और इसके पीछे उनकी मोटी कमाई का कारण है। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि शराबबंदी के कारण गरीबों पर अत्याचार बढ़ गया है। पुलिस और तस्करों ने आपस में मिलीभगत करके इसे अपनी आय का एक साधन बना लिया है।

बिहार में शराबबंदी के संबंध में यह कड़ी टिप्पणी पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने की है। जस्टिस पूर्णेदु सिंह एक मामले की सुनवाई कर रहे थे, तभी उन्होंने यह टिप्पणी की। राज्य में शराबबंदी पर पटना हाईकोर्ट की ओर से यह पहली बार ऐसी टिप्पणी आई है।

असल में यह पूरा मामला एक पुलिस अधिकारी के डिमोट किए जाने से संबंधित था, जिस पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था। वर्ष 2020 में बिहार पुलिस के सब-इंस्पेक्टर मुकेश कुमार पासवान, जो पटना के बाईपास पुलिस स्टेशन में तैनात थे, उन्हें डिमोट कर दिया गया था। एसआई मुकेश पासवान के थाना क्षेत्र से थोड़ी दूरी पर एक्साइज विभाग ने छापेमारी कर विदेशी शराब बरामद की थी। इस छापेमारी के बाद 24 नवंबर 2020 को एक सरकारी आदेश जारी किया गया, जिसमें एसआई मुकेश पासवान का डिमोशन कर दिया गया।

मुकेश पासवान के डिमोशन का आधार सरकार के उस आदेश को बनाया गया जिसमें कहा गया था कि जिस पुलिस अधिकारी के क्षेत्र में शराब पकड़ी जाएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। एसआई मुकेश पासवान ने विभागीय जांच में अपना पक्ष रखते हुए खुद को निर्दोष बताया। उन्होंने कहा कि उन्हें कैसे पता चलेगा कि उनके क्षेत्र के किस घर में शराब मौजूद है। विभाग ने जब मुकेश का पक्ष नहीं माना, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की मांग की। ईकोर्ट ने इस मामले में एसआई मुकेश पासवान को राहत दी है और शराबबंदी कानून पर कड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने 29 अक्टूबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए एसआई मुकेश पासवान की डिमोशन की सजा और पूरी विभागीय कार्रवाई को रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

यहां ध्यान देने योग्य यह है कि पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पूर्णेदु सिंह ने अपनी टिप्पणी में क्या कहा। उन्होंने कहा कि शराबबंदी कानून पुलिस के लिए एक उपकरण बन गया है। पुलिस अक्सर तस्करों के साथ मिलीभगत करती है। कानून से बचने के नए नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। यह कानून मुख्य रूप से राज्य के गरीब लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन गया है। राज्य सरकार ने 2016 में शराबबंदी लागू किया था, जिसका मकसद सही था। राज्य सरकार की कोशिश थी कि लोगों का जीवन स्तर सुधरे और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। लेकिन कुछ कारणों से अब इसे इतिहास में गलत निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।

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