SC on Reservation: सुप्रीम कोर्ट में आज 2004 का फैसला ख़ारिज, SC-ST के Reservation में होगी सब- कैटेगरी, आरक्षण को लेकर अहम फैसला

SC on Reservation: सुप्रीम कोर्ट में आज 2004 का फैसला ख़ारिज, SC-ST के Reservation में होगी सब- कैटेगरी, आरक्षण को लेकर अहम फैसला
Last Updated: 01 अगस्त 2024

SC on Reservation: सुप्रीम कोर्ट में आज 2004 का फैसला ख़ारिज, SC-ST के Reservation में होगी सब- कैटेगरी, आरक्षण को लेकर अहम फैसला 

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की एक पीठ ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के भीतर सब-कैटेगरी बना सकती हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य मूल और जरूरतमंद कैटेगरी को आरक्षण का अधिक फायदा मिलना है।

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कोटा के भीतर कोटा की अवधारणा को मंजूरी दे दी है। सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अनुसूचित जातियों (SCs) के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जाएगी, जिसका मतलब है कि अनुसूचित जाति के भीतर भी अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग से कोटा प्रदान किया जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकारें अब अनुसूचित जातियों के अंदर भी सब-कैटेगरी बना सकती हैं, ताकि अधिक जरूरतमंद और पिछड़े लोगों को आरक्षण का बेहतर लाभ मिल सके। इस फैसले का उद्देश्य यह है कि आरक्षण की नीति को अधिक प्रभावी और न्यायसंगत तरीके से लागू किया जा सके, ताकि उन लोगों को प्राथमिकता मिले जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं।

आरक्षण के फैसले पर लगाई मुहर

सुप्रीम कोर्ट  ने फैसले के दौरान यह भी स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जातियों के लिए सब कैटेगरी की अनुमति देते समय राज्य किसी उप-श्रेणी के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकती। इसके अलावा, राज्य को उप-श्रेणी की आवश्यकता को उचित ठहरने के लिए अवलोकन द्वारा मिले आंकड़ों और वास्तविक स्थिति के आधार पर साबित किया जा सके, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आरक्षण नीति सभी जरूरतमंदों तक सही तरीके से पहुँच रही है।

इस मुद्दे पर CJI ने क्या कहा?

CJI DY चंद्रचूड़ ने आरक्षण के फैसले पर कहा कि कोर्ट में पेश किए गए इस मुद्दे के पक्ष में 6 राय मिल रही हैं। जजों की सात पीठ में से केवल जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई है। सीजेआई ने कहा कि इसमें शामिल अधिकांश ने 'ईवी चिन्नैया' के फैसले को खारिज करने का फैसला कर लिया है और हमारा मानना हैं कि सब कैटेगरी वर्ग के लिए स्वीकार्य है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 6:1 बहुमत के साथ स्वीकार किया कि आरक्षित वर्गों यानी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC-ST) का सब कैटेगरी स्वीकार्य है।

इसके अलावा, CJI ने अपने फैसले में इतिहास के आंबेडकर के बयानों का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप वर्ग नहीं हैं। सब कैटेगरी संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है और ही संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड नहीं है जो राज्य को किसी जाति को सब कैटेगरी बनाने के लिए रोकता हो।

कोर्ट में 2004 का फैसला ख़ारिज

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने हाल ही में कहा कि सबसे निचले स्तर पर भी किसी वर्ग के लोगों के संघर्ष का प्रतिनिधित्व से अंत नहीं होता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 2004 का चिन्नैया केस का फैसला, जिसमें अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण अस्वीकार्य घोषित किया गया था,उस को खारिज किया जाता है।

CJI ने इस बात पर जोर दिया कि सब कैटेगरी की अनुमति देने से अनुसूचित जातियों के भीतर भी अधिक पिछड़े और जरूरतमंद समूहों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। चिन्नैया के फैसले के विपरीत, जिसमें सब कैटेगरी को अवैध माना गया था। इस दौरान नए निर्णय ने यह मान्यता दी है कि राज्य सरकारों को सब कैटेगरी करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए उचित डेटा और अनुभवजन्य आंकड़े प्रदान करें।

आखिर क्या था 2004 का फैसला

2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दिया था कि राज्यों के पास अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) की सब-कैटेगरी (उप-वर्गीकरण) करने का अधिकार नहीं है। इस दौरान कहा गया था कि SC-ST की सब कैटेगरी का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे लागू नहीं किया जा सकता।

हालांकि, आज यानि 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पुनर्विचार किया और नए दृष्टिकोण को मान्यता दी है। अब कोर्ट को यह तय करना है कि क्या अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणियों के भीतर सब-कैटेगरी (कोटे के भीतर कोटा) बनाने की अनुमति दी जाएगी या नहीं। इस फैसले के माध्यम से कोर्ट यह भी स्पष्ट करेगा कि राज्य विधानसभाओं के पास क्या कोटा के भीतर कोटा लागू करने का अधिकार है या नहीं।

 

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