विश्व जनसंख्या दिवस हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन को सेलिब्रेट करने की शुरुआत UNO की ओर से 11 जुलाई, 1989 को की गई थी। सयुंक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबाद चीन की तुलना में 2.9 मिलियन अधिक हो गई है।
क्यों मनाते हैं विश्व जनसंख्या दिवस
विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) की स्थापना 11 जुलाई, 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल - यूएनडीपी (UNDP) द्वारा की गई थी। 11 जुलाई, 1987 को दुनियभर की आबादी पांच अरब हो गई थी। इस दिन की प्रेरणा 'पांच अरब दिवस' के जश्न में बढ़ती सार्वजनिक रुचि थी। इस तिथि को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'विश्व जनसंख्या दिवस' के रूप में मनाने का फैसला किया था और इसके अगले साल संकल्प 45/216 ने दिसंबर 1990 में इसे आधिकारिक बना दिया। दुनियाभर में 11 जुलाई, 1990 को पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया।
विश्व जनसंख्या दिवस : उद्देश्य
वर्तमान समय में विश्व की जनसंख्या 8 अरब से ज्यादा है जिसका नकारात्मक प्रभाव दुनियाभर के पर्यावरण पर तेजी से पड़ रहा है। इसी वजह से पर्यावरण में हो रहे तेजी से बदलाव रोकने और लोगों के शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना इसका प्रमुख महत्व है। इसके साथ ही दुनियाभर को इसके लिए प्रेरित करना है कि एक दिन विश्व स्थाई जनसंख्या को प्राप्त कर सके और पर्यावरण को कोई भी नुकसान या हानि न हो।
विश्व जनसंख्या दिवस 2023: थीम
विश्वभर में किसी भी दिन को सेलिब्रेट करने का कोई मुख्य उद्देश्य होता है। सयुंक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) हर साल विश्व जनसंख्या दिवस पर एक थीम जारी करता है। इसी दौरान विश्व जनसंख्या दिवस (World Population Day) 2023 की थीम - 'एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना जहां हम सभी से 8 अरब लोगों का भविष्य आशाओं और संभावनाओं से भरपूर हो' (Imagine A World Where Everyone All 8 Billion of us Has a Future Bursting With Promise and Potential) तय की गई है।
विश्व जनसंख्या की प्रवृत्ति
विश्वभर की जनसंख्या को 1 अरब तक होने में सैकड़ों हजारों वर्ष लग गए। आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 200 वर्षों में, यह 7 गुना बढ़ गई। 2011 में, वैश्विक जनसंख्या के आंकड़े 7 अरब तक पहुंच गए। वर्ष 2021 में यह लगभग 7.9 अरब हो गई। यूनाइटेड नेशंस के आंकड़ों के अनुसार, 2030 में यह बढ़कर लगभग 8.5 अरब, और वहीं, 2050 में 9.7 अरब, 2100 में 10.9 अरब होने की संभावना है।
आंकड़ों के मुताबिक, यह वृद्धि बड़े पैमाने पर प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण हुई है, और इसके साथ प्रजनन दर में बदलाव, प्रवासन और शहरीकरण में वृद्धि आई है। इन प्रवृत्तियों से आने वाली पीढ़ियों पर काफी प्रभाव पड़ेगा।
1970 के दशक की शुरुआत में, प्रत्येक महिला के औसतन 4.5 बच्चे थे, मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 तक विश्व की कुल प्रजनन क्षमता 2.5 बच्चों/महिला से कम हो गई थी। इस दौरान, 1990 के दशक की शुरुआत में औसत वैश्विक जीवनकाल 64.6 वर्ष से बढ़कर 2019 में 72.6 वर्ष हो गया है।
इसके अलावा, दुनिया में उच्च स्तर का प्रवासन और शहरीकरण तेजी से देखा जा रहा है। 2007 पहला वर्ष था जब ग्रामीण की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग रहते थे। अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्ष 2050 तक विश्व की करीब 66 % आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास कर रही होगी।
वर्तमान में विश्व जनसंख्या
सयुंक्त राष्ट्र (UN) के आंकड़ों के अनुसार, फ़िलहाल, विश्व की कुल आबादी लगभग 8 अरब तक पहुँच गई है। इसमें 65% आबादी 15- 64 साल की उम्र के लोगों की है। 10 % आबादी 65 साल से ऊपर और 25% 14 साल से कम उम्र के लोगों की है।
विश्व में भारत की आबादी
यूएनएफपीए के आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी 142.86 करोड़ हो गई है। भारत अब चीन को पीछे छोड़ विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला राष्ट्र बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक, चीन की आबादी 142.57 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की नई रिपोर्ट के अनसार, भारत की 25% जनसंख्या 0-14 (वर्ष) आयु वर्ग की, 18% 10 से 19 आयु वर्ग, 26% 10 से 24 आयु वर्ग, 68% 15 से 64 आयु वर्ग की और 7% आबादी 65 वर्ष से अधिक आयु की है। ऐसे में भारत की आबादी करीब 3 दशकों तक बढ़ते रहने की उम्मीद है।