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German Election: जर्मनी के राष्ट्रपति का ऐतिहासिक कदम, संसद भंग करने का दिया आदेश, जानिए पूरा मामला 

German Election: जर्मनी के राष्ट्रपति का ऐतिहासिक कदम, संसद भंग करने का दिया आदेश, जानिए पूरा मामला 
Last Updated: 1 दिन पहले

जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर ने चांसलर ओलाफ शोल्ज़ की सरकार के पतन के बाद संसद को भंग कर दिया। 23 फरवरी 2025 को समयपूर्व चुनाव होंगे। संसद भंग होने के 60 दिनों में चुनाव होंगे।

German Election: जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए देश की संसद को भंग करने का आदेश दिया। यह कदम समयपूर्व चुनाव कराने के लिए उठाया गया है, और इसके बाद जर्मनी में 23 फरवरी 2025 को चुनाव होने की संभावना है। राष्ट्रपति ने यह फैसला चांसलर ओलाफ शोल्ज़ के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार के पतन के मद्देनजर लिया है। इस घोषणा के बाद, जर्मनी में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है और नए चुनावों की तैयारियां शुरू हो गई हैं।

संसद भंग करने का कारण

यह फैसला तब लिया गया जब चांसलर ओलाफ शोल्ज़ की गठबंधन सरकार 16 दिसंबर 2023 को विश्वास मत हार गई थी। इसके बाद शोल्ज़ की सरकार अल्पमत में आ गई थी और वह अब देश की स्थिरता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे थे। जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए विवादास्पद फैसलों और वित्तीय संकट के चलते, शोल्ज़ को अपनी सरकार के भीतर गंभीर राजनीतिक विवादों का सामना करना पड़ा।

संसदीय चुनावों के लिए तैयारियां शुरू

जर्मनी के संविधान के अनुसार, संसद भंग होने के बाद 60 दिनों के भीतर चुनाव कराए जाने चाहिए। राष्ट्रपति स्टीनमीयर ने इस पर विचार करने के लिए 21 दिनों का समय लिया, और इसके बाद उन्होंने संसद को भंग करने का फैसला किया। राष्ट्रपति के इस फैसले के बाद, जर्मनी में 23 फरवरी 2025 को चुनाव कराने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं।

प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस पर सहमति जताई है कि चुनाव पहले से निर्धारित समय से सात महीने पहले आयोजित किए जाएंगे। 

चुनाव पर राजनीतिक संकट का असर

राष्ट्रपति स्टीनमीयर के इस फैसले का जर्मनी की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर गहरा असर पड़ने की संभावना है। देश की आर्थिक स्थिरता और सामाजिक नीति को लेकर सरकार के अंदर विवाद बढ़ रहे थे। विशेष रूप से, वित्तीय मुद्दों को लेकर जर्मन सरकार के भीतर मतभेदों ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया था। चांसलर शोल्ज़ की सरकार पर सवाल उठाए जा रहे थे कि वह देश की अर्थव्यवस्था को कैसे पुनर्जीवित करेंगी। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति को संसद भंग करने और समयपूर्व चुनाव कराने का निर्णय लेना पड़ा। 

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