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Morarji Desai: भारत-पाक दोनों के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित इकलौते प्रधानमंत्री, पढ़ें उनकी अनसुनी कहानी

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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भारतीय राजनीति में एक ऐसा नाम हैं, जिन्होंने अपने सिद्धांतों और ईमानदारी के बल पर इतिहास रच दिया। वे न केवल भारत के लिए आदर्श राजनेता रहे, बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान से भी उन्हें वह सम्मान मिला, जो अब तक किसी और भारतीय नेता को नहीं मिला। मोरारजी देसाई भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजे गए पहले और अब तक के इकलौते प्रधानमंत्री हैं।

पाकिस्तान से मिला ‘निशान-ए-पाकिस्तान’

14 अगस्त 1990 को पाकिस्तान ने मोरारजी देसाई को 'निशान-ए-पाकिस्तान' सम्मान प्रदान किया। यह पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो आमतौर पर किसी विदेशी नागरिक को अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में दिया जाता है। इस सम्मान से नवाजा जाना, मोरारजी देसाई की नीतियों और दोनों देशों के बीच शांति के प्रयासों का एक प्रतीक माना गया।

एक सिद्धांतवादी राजनेता जिनका आदर्श अडिग रहा

मोरारजी देसाई उन गिने-चुने नेताओं में रहे जिन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। चाहे वह इंदिरा गांधी के खिलाफ सख्त विरोध हो या आपातकाल के समय उनकी निडर भूमिका। देसाई ने अपने हर राजनीतिक फैसले में दृढ़ता दिखाई। प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में प्रवेश करना भी इसी दृढ़ निष्ठा का परिचायक था।

क्या इस वजह से मिला पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान?

इस सम्मान को लेकर कई तरह की थ्योरियां सामने आती रही हैं। एक चर्चित अनुमान के मुताबिक, जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे, तब इजरायली विमानों को पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर हमले के लिए भारत की जमीन से उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी गई थी। कहा जाता है कि इससे पाकिस्तान को राहत मिली और इस कदम को 'शांति की दिशा में प्रयास' के रूप में देखा गया।

हालांकि, डिफेंस एक्सपर्ट आलोक बंसल इस थ्योरी को खारिज करते हैं और मानते हैं कि भारत सरकार द्वारा सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान को भारत रत्न दिए जाने के जवाब में पाकिस्तान ने भी सद्भावना के तहत मोरारजी देसाई को सम्मानित किया।

‘गूंगी गुड़िया’ से लेकर प्रधानमंत्री पद तक का संघर्ष

देसाई की इंदिरा गांधी के साथ राजनीतिक टकराहट जगजाहिर रही है। जब 1966 में प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा गांधी और मोरारजी आमने-सामने थे, तो देसाई ने इंदिरा को ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर आलोचना की थी। बावजूद इसके इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के भीतर अपना प्रभाव बढ़ाया और प्रधानमंत्री बनीं, जबकि देसाई विपक्ष में चले गए।

जयप्रकाश नारायण के समर्थन से बनी पीएम की राह

आपातकाल के विरोध में उभरी जनता पार्टी की लहर में मोरारजी देसाई शामिल हुए और 1977 में ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उस समय चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम भी दावेदार थे, लेकिन जयप्रकाश नारायण के समर्थन से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल 1979 तक चला, जिसे उनकी ईमानदारी और सादगी के लिए जाना जाता है।

मोरारजी देसाई की राजनीतिक यात्रा सिद्धांतों, सादगी और पारदर्शिता की मिसाल रही। भारत के भीतर वे जहां अडिग विचारों के प्रतीक रहे, वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान से सम्मान प्राप्त कर उन्होंने एक नई मिसाल कायम की। उनकी विरासत आज भी प्रेरणा देती है कि राजनीति केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि सिद्धांतों की भी एक परिपाटी हो सकती है।

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