श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित की पुण्यतिथि 1 दिसंबर को मनाई जाती है। विजय लक्ष्मी पंडित (1900-1990) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजनयिक थीं। वह पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं और भारतीय राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए याद किया जाता हैं।
1 दिसंबर 1990, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख हस्ती और विश्व राजनीति में भारत की पहली महिला राजनयिक, श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित की पुण्यतिथि के रूप में याद किया जाता है। विजय लक्ष्मी पंडित ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अद्वितीय योगदान दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत की पहचान को मजबूत किया। उनके जीवन की कहानी साहस, समर्पण और देशभक्ति का प्रतीक हैं।
प्रारंभिक जीवन और परिवार
विजय लक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 को उत्तर प्रदेश के एक प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ। उनके पिता मोतीलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता और कांग्रेस के अध्यक्ष थे। जवाहरलाल नेहरू उनके बड़े भाई थे, जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। उनका परिवार स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाने वाला नेहरू-गांधी परिवार था।
शिक्षा और परिवार से मिली प्रेरणा ने विजय लक्ष्मी को राजनीति और सामाजिक कार्यों के लिए प्रेरित किया।
राजनीतिक जीवन स्वतंत्रता संग्राम और जेल यात्राएँ
विजय लक्ष्मी पंडित ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की। उन्होंने महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू के साथ काम किया और असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा।
• 1931: पहली बार उन्हें 18 महीने की जेल हुई।
• 1942: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 7 महीने जेल में रहीं।
• जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने बंगाल के अकाल पीड़ितों की मदद की और समाजसेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
• राजनयिक सफलता भारत की पहली महिला राजदूत
• स्वतंत्रता के बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने राजनयिक सेवा में प्रवेश किया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष (1953)
विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला और एकमात्र भारतीय थीं। इस उपलब्धि ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
राजदूत के रूप में सेवा
उन्होंने सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, आयरलैंड और स्पेन में भारत के राजदूत के रूप में काम किया। उनकी कूटनीतिक कुशलता और संवाद की क्षमता ने भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को सुदृढ़ किया।
राजनीति में वापसी और संघर्ष
• विजय लक्ष्मी पंडित 1962 से 1964 तक महाराष्ट्र की राज्यपाल रहीं। इसके बाद उन्होंने फूलपुर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया।
• हालांकि, इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के दौरान उनके और विजय लक्ष्मी के बीच राजनीतिक मतभेद उभरकर सामने आए। आपातकाल (1975-77) के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी की आलोचना की और जनता पार्टी के पक्ष में प्रचार किया।
समाज सेवा और महिला अधिकारों के लिए योगदान
अपने पति रंजीत पंडित की मृत्यु के बाद, विजय लक्ष्मी ने भारतीय उत्तराधिकार कानूनों में सुधार के लिए काम किया। उन्होंने विधवाओं के अधिकारों के लिए अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के साथ मिलकर अभियान चलाया।
व्यक्तिगत जीवन और साहित्यिक योगदान
उनकी आत्मकथा, "The Scope of Happiness", उनके जीवन के संघर्षों और उपलब्धियों का सजीव चित्रण है। उनकी अन्य कृतियाँ भारत के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास को दर्शाती हैं।
मृत्यु और विरासत
• 1 दिसंबर 1990 को विजय लक्ष्मी पंडित का देहरादून में निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने भारत को उसकी सबसे प्रेरणादायक महिला नेता और राजनयिकों में से एक से वंचित कर दिया।
• उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें उनकी देशभक्ति, साहस और दूरदृष्टि के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। विजय लक्ष्मी पंडित का जीवन हमें यह सिखाता है कि प्रतिबद्धता और संकल्प के साथ कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता हैं।