जासूस राजा और सत्य का चमत्कार

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चाणक्यपुरी राज्य में महाराज विक्रमसिंह का शासन था। वे न्यायप्रिय और तेजस्वी राजा थे, लेकिन इन दिनों राज्य में चोरियों की घटनाएँ बढ़ गई थीं। महल का खजाना भी सुरक्षित नहीं था। इससे परेशान होकर राजा ने फैसला किया कि वे स्वयं भेष बदलकर इन चोरियों की जाँच करेंगे।

संत और चोर की मुलाकात

एक दिन, संध्या के समय, राजा एक साधारण वेशभूषा में महल से निकले। उसी समय, एक संत नगर में आए। उन्होंने रास्ते में एक व्यक्ति को छुपते हुए देखा।
संत बोले, “वत्स, तुम कौन हो और छुप क्यों रहे हो?”

व्यक्ति सकपकाया, फिर बोला, “महाराज, मैं चोर हूँ। चोरी करने जा रहा था, लेकिन आपको देखकर ठहर गया।
संत मुस्कराए, “पुत्र, सत्य बड़ा बलवान होता है। एक वचन दो, तुम चाहे कुछ भी करो, लेकिन कभी झूठ मत बोलना।”
चोर बोला, “महाराज, चोरी मेरी मजबूरी है, लेकिन मैं वचन देता हूँ कि कभी झूठ नहीं बोलूँगा।”
संत ने आशीर्वाद दिया और आगे बढ़ गए।

राजमहल में चोरी

रात के अंधेरे में चोर अपने एक साथी से मिला। साथी बोला, “आज राजमहल में चोरी करेंगे।”
चोर पहले हिचकिचाया, लेकिन साथी ने कहा, “मुझे गुप्त रास्तों की जानकारी है। चिंता मत करो।”

दोनों महल में घुस गए। चोर ने वही किया जो साथी ने कहा। खजाने से उसने दो हीरे निकाले, लेकिन तीसरा हीरा वहीं छोड़ दिया। बाहर आकर उसने एक हीरा साथी को दिया और एक अपने पास रख लिया।

सच बोलने की कीमत

सुबह महल में हंगामा मच गया। राजा ने आदेश दिया कि चोर को ढूँढा जाए। सिपाहियों ने जल्द ही उस चोर को पकड़ लिया और राजा के सामने प्रस्तुत किया।
राजा बोले, “क्या तुमने चोरी की?”
चोर बोला, “हाँ, महाराज।”
राजा, “क्या तुम अकेले थे?”

चोर, “नहीं, मेरा एक साथी भी था, लेकिन मैं उसका नाम नहीं जानता।”
मंत्री बोला, “झूठ बोल रहा है! खजाने से तीन हीरे चोरी हुए थे, लेकिन यह सिर्फ दो की बात कर रहा है।”
चोर बोला, “नहीं मंत्रीजी, मैंने केवल दो हीरे लिए थे, तीसरा वहीं छोड़ दिया था।”

राजा मुस्कराए, “तो तीसरा हीरा कहाँ गया?”
मंत्री चुप हो गया। राजा उठे और बोले, “मैं तुम्हारा साथी था!”

राजा ने अपनी जेब से एक हीरा निकाला और सामने रख दिया। पूरी सभा स्तब्ध रह गई। राजा बोले, “रात को मैंने भेष बदलकर इस चोर की परीक्षा ली थी। इसने सच ही कहा था कि उसने दो हीरे चुराए। तीसरा हीरा मंत्री ने लिया है।”

मंत्री घबरा गया और अपने वस्त्रों से तीसरा हीरा निकालकर राजा को सौंप दिया। राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि मंत्री को कारागार में डाल दिया जाए।

चोर बना मंत्री

राजा बोले, “तुमने चोरी की, लेकिन सत्य को नहीं छोड़ा। तुम्हारे सत्य की शक्ति ने तुम्हें आज इस सभा में निर्दोष सिद्ध किया। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे मंत्री बनो।”

चोर हाथ जोड़कर बोला, “महाराज, मुझे क्षमा करें। यह परिवर्तन मेरी साधारण बुद्धि का नहीं, बल्कि उस संत का चमत्कार है, जिनसे मैंने सत्य का वचन लिया था। मैं उन्हीं की सेवा करना चाहता हूँ।”

राजा बोले, “ऐसे संत को हम भी मिलना चाहेंगे। यदि उनका एक उपदेश एक चोर को ईमानदार बना सकता है, तो वे हमारे राज्य के लिए बहुत कल्याणकारी होंगे।”

राजा ने संत को बुलवाया और उन्हें राजगुरु का स्थान दिया। चोर भी संत की प्रेरणा से मंत्री पद स्वीकार कर राज्य सेवा में लग गया।

इस प्रकार सत्य और सद्गुण के प्रभाव से चाणक्यपुरी राज्य को एक ईमानदार मंत्री और एक महान संत का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, और वहां फिर कभी कोई चोरी नहीं हुई। 

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