फिर विक्रमादित्य ने पेड़ पर चढ़कर बेताल को उतारा और अपने कंधे पर रख कर चलना शुरू कर दिया। बेताल ने फिर से कहानी सुनानी शुरू कर दी। एक समय की बात है पाटलिपुत्र में सत्यपाल नामक एक धनी व्यापारी रहता था। सत्यपाल के साथ एक चंद्र नाथ नाम का बालक रहता था। वह उसका दूर का रिश्तेदार था, जो बचपन से अनाथ था। सत्यपाल उस बालक के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करता था, जिससे चंद्र नाथ को बहुत दुख होता था। चंद्रनाथ सत्यपाल की तरह अमीर बनने का सपना देखने लगा था।
एक दिन दोपहर में जब चंद्रनाथ सो रहा था तब उसने एक सपना देखा कि वह एक धनी व्यापारी बन गया है और सत्यपाल उसका नौकर। वह नींद में ही बड़बड़ाने लगा, “ वो मूर्ख सत्यपाल! उधर से गुजर रहा था तभी उसने चंद्रनाथ को नींदों में बड़बड़ाते हुए सुन लिया उसे बहुत गुस्सा आया और उसने क्रोधित होकर चंद्रनाथ को जूता फेंक कर मारा और अपने घर से बाहर निकाल दिया। चंद्रनाथ के पास अब रहने के लिए भी ठिकाना नहीं था।
वह दिन भर सड़कों पर भटकता रहता। अपनी बेइज्जती वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। मन ही मन उसने सत्यपाल से बदला लेने का सोचा। चलते चलते वह जंगल में जा पहुंचा। जंगल में एक साधु रहते थे। चंद्रनाथ साधु के पैरों में गिर गया। साधु ने पूछा, “ पुत्र, तुम इतने दुखी क्यों हो?” चंद्रनाथ ने उन्हें अपनी आप बीती कहानी सुना दी। साधु ने कहानी सुनकर दया भाव से कहा, “ मैं तुम्हें एक मंत्र दूंगा। सपना देखने के बाद यदि तुम कुछ मंत्र को पढ़ोगे तो तुम्हारा सपना पूरा होगा। परंतु तुम इस मंत्र को केवल 3 बार ही प्रयोग कर पाओगे।” ऐसा कहकर साधु ने उसे मंत्र सिखा दिया।
चंद्रनाथ को जैसे खजाना मिल गया था। प्रसन्न मन से वह वापस शहर आ गया। वह एक कुटिया के सामने सीढ़ियों पर लेट गया। लेटते ही उसकी आंख लग गई और उसने एक सपना देखा कि सत्यपाल उससे क्षमा याचना कर रहा है। वह अपने किए पर शर्मिंदा है और अपनी पुत्री सत्यवती के साथ उसका विवाह करना चाहता है। चंद्रनाथ सो कर उठा और सोचने लगा, “ सपना तो बहुत अच्छा था। मंत्र को जांचने का यह अच्छा अवसर है” और वह मंत्र पढ़ने लगा।
सत्यपाल चंद्रनाथ को ढूंढ रहा था। कुटिया की सीढ़ियों पर बैठा देख वह उसके पास आया और अपने किए के लिए उसे क्षमा मांगने लगा। फिर उसने अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव भी उसके सामने रखा। चंद्रनाथ को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मंत्र ने काम कर दिया था। और उसका सपना भी पूरा हो रहा था। चंद्रनाथ ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और सत्यवती से विवाह कर लिया। सत्यपाल ने चंद्रनाथ को एक अलग व्यापार करवा दिया, जिससे वह और उसकी पुत्री दोनों सुख पूर्वक रहने लगे।
एक दिन चंद्रनाथ ने फिर एक सपना देखा की व्यापार खूब चल रहा है और वह शहर का सबसे धनी व्यापारी बन गया है। सपने से जाग कर उसने फिर उसी मंत्र को पढ़ा। मंत्र के प्रभाव से उसका व्यापार जल्दी ही खूब चलने लगा और उसने खूब धन कमाया। सपने के अनुसार वह मंत्र के प्रभाव से शहर का सबसे धनी व्यापारी बन गया था। शहर के अन्य सभी व्यापारी उससे ईर्ष्या करने लगे थे। चारों ओर चंद्रनाथ के व्यापार की बातें होने लगी कि कैसे धनी बनने के लिए उसने क्या अवहेलना की है।
यह सभी अफवाहें धीरे धीरे राजा के कानों तक भी पहुंच गई। राजा ने अपने सिपाहियों से इन अफवाहों की जांच करवाई तो उन्हें सच पाया। चंद्रनाथ को सजा के तौर पर, उसने जितने भी धन की अवहेलना की थी, उसका 10 गुना राजा को देना था। इन सभी बातों से चंद्रनाथ क्रोधित हो उठा था। उसी रात उसने सपना देखा कि वह पाटलिपुत्र का राजा बन गया है और उसके बारे में जिन व्यापारियों ने अफवाहें उड़ाई थी, उन सब को वह सजा दे रहा है। सुबह उठने पर वह जैसे ही अंतिम बार मंत्र पढ़ने जा रहा था, उसे कुछ आभास हुआ।
चंद्रनाथ रोने लगा। उसने मंत्र नहीं पढ़ा और सीधा जंगल में साधु के पास जाकर उनसे मंत्र की शक्ति वापस लेने का अनुरोध किया। साधु उसकी बातों को सुन कर मुस्कुरा उठे। बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा, राजन्,चंद्रनाथ ने मंत्र क्यों नहीं पड़ा और पाटलिपुत्र का राजा क्यों नहीं बना?” विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, “ चंद्रकांत को यह आभास हो गया था कि कड़ी मेहनत के बिना प्रसिद्धि और सफलता नहीं मिलती है ऐसा जीवन जीने में कोई मजा नहीं है, जहां सारे सपने आसानी से साकार हो। उसे साधु ने मंत्र की शक्ति के द्वारा बहुत ही मूल्यवान सीख दी थी।” “राजन, तुम महान हो। क्षमा करना, मुझे जाना पड़ेगा।” हंसता हुआ बेताल ऐसा कहकर वापस पेड़ पर चला गया