परिवार की डोर: एक टूटते रिश्ते की जुड़ती कड़ी

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बबली स्कूल से लौटते ही जैसे ही घर में घुसी, उसकी मम्मी कंचन ने कड़क आवाज़ में कहा, "बबली, सीधे ऊपर आओ!"

"मम्मी, पहले ताई जी से चीज़ लेने जाऊंगी," बबली ने ज़िद की।

लेकिन कंचन का स्वर और सख्त हो गया, "अगर ताई जी के कमरे में गई तो पिटाई पड़ेगी!"

बबली डर गई और सीधा ऊपर चली गई। गुस्से में बोली, "मम्मी, ताई जी हमेशा मेरे लिए कुछ न कुछ रखती हैं। स्वीटी आएगी, तो उसे सब मिल जाएगा और मैं रह जाऊंगी!"

"आज के बाद ताई जी के पास जाने की ज़रूरत नहीं," कंचन ने सख्ती से कहा।

नीचे स्वीटी की स्कूल बस रुकी। कंचन ने उसे भी ऊपर बुला लिया। दोनों बहनें परेशान थीं। स्वीटी ने पूछा, "मम्मी, ताई जी से कुछ हुआ है क्या?"

कंचन ने संक्षेप में कहा, "अब हम यहां नहीं रहेंगे। तुम्हारे पापा किराए का मकान ढूंढ रहे हैं।"

"लेकिन हुआ क्या, मम्मी?" बबली ने पूछा।

"कुछ नहीं, बस अब हम अलग रहेंगे।"

शाम को पूरे घर में सन्नाटा था। दोनों परिवार एक ही घर में रहते थे, लेकिन अब सब अपने-अपने कमरों में थे। बबली और स्वीटी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

अगली सुबह, सारा सामान पैक हो चुका था। गाड़ी दरवाजे पर खड़ी थी। बबली और स्वीटी की आंखें ताउजी-ताई जी को देखने के लिए तरस रही थीं, लेकिन उनके दरवाजे बंद थे। गाड़ी चली, तो दोनों बहनों ने दरवाजा पीटा, लेकिन अंदर से कोई आवाज़ नहीं आई।

बिछड़ने की वजह

किराए के नए घर में पहुंचकर कंचन ने सामान जमाना शुरू किया। बबली और स्वीटी चुपचाप देख रही थीं। सौरभ जी ने समझाया, "बेटा, हमें भी बुरा लग रहा है, लेकिन तुम्हें पता नहीं कि हमारे साथ क्या हुआ। हमारी पुश्तैनी दुकान पर ताउजी ने कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने अपने बेटे रोहन के लिए अलग दुकान खोल दी और कहा, 'तुम्हारी तो बेटियां हैं, तुम्हें क्या चाहिए?'"

धीरे-धीरे, सौरभ और कंचन ने बेटियों के मन में ताउजी-ताई जी के लिए नफरत भर दी। चार साल बीत गए। बाजार में कभी ताई जी या रोहन दिखते, तो दोनों बहनें नज़रअंदाज़ कर देतीं।

एक फोन कॉल ने बदली कहानी

रात के दो बजे कन्हैयालाल जी का फोन बजा। नींद में थे, लेकिन जब देखा कि सौरभ का फोन है, तो चौंक गए। उन्होंने कॉल उठाई, तो दूसरी तरफ से स्वीटी रो रही थी, "ताउजी, पापा अचानक बेहोश हो गए हैं। बहुत डर लग रहा है। जल्दी आइए!" कन्हैयालाल जी तुरंत पत्नी और रोहन को लेकर पहुंचे। डॉक्टर ने बताया कि माइनर हार्ट अटैक था। सही समय पर इलाज मिलने से जान बच गई।

जब कंचन ने कांपते हुए कहा, "दीदी, आज आप न होतीं तो पता नहीं क्या हो जाता। हमें माफ कर दीजिए," तो सौरभ भी बोल पड़े, "भैया, मुझे आपको छोड़कर नहीं आना चाहिए था।"

कन्हैयालाल जी मुस्कुराए, "तू मेरा छोटा भाई है, ये सब भूल जा। मैंने तुम्हारी बेटियों के नाम पुरानी दुकान कर दी है। कागज़ घर पर रखे हैं।" सौरभ की आंखों में आंसू आ गए, "भैया, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस वादा कीजिए कि अगर मुझे कुछ हो जाए, तो मेरे परिवार का ध्यान रखेंगे।"

शांति जी ने प्यार से कहा, "तू मेरा देवर है, पर मैंने तुझमें और रोहन में फर्क नहीं समझा। हमने दुकान इसलिए अलग करवाई थी ताकि तीर्थ यात्रा पर जा सकें, लेकिन शायद हम तुम्हें समझा नहीं पाए।"

राखी की पुकार

तभी रोहन बोला, "अब मेरी बहनें मुझे राखी बांधेंगी? चार साल से मेरी कलाई सूनी है।" सभी हंस पड़े। परिवार फिर एक हो गया। वे अपने पुराने घर लौट आए और नया मकान किराए पर दे दिया। एक गलतफहमी ने रिश्तों को तोड़ दिया था, लेकिन समय ने उन्हें फिर जोड़ दिया। क्योंकि परिवार की डोर जितनी भी उलझे, प्यार की एक गांठ उसे हमेशा जोड़ सकती है।

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