शाहपुर गांव में एक ऐसा आदमी रहता था, जिसे लोग उसके असली नाम से कम और "पल्टूराम" के नाम से ज्यादा जानते थे। उसका असली नाम था गोविन्द, लेकिन उसकी झूठ बोलने और हर बार अपनी बात से पलट जाने की आदत के कारण गांव वालों ने उसे यह नाम दे दिया था।
झूठ का खेल और गांव वालों की परेशानी
पल्टूराम का स्वभाव ही ऐसा था कि वह किसी से भी कुछ वादा करता और फिर पलट जाता। इसी आदत की वजह से गांव का कोई भी व्यक्ति उस पर विश्वास नहीं करता था। वह नाई की दुकान पर जाता, उधार में बाल कटवाता और पैसे देने का झूठा बहाना बनाकर गायब हो जाता। दुकानदारों से उधार सामान लेता और फिर अपनी ही बात से मुकर जाता। धीरे-धीरे गांव वाले उससे तंग आ गए थे।
गांव से निकाले जाने की चेतावनी
एक दिन गांव के मुखिया और कुछ बुजुर्ग पल्टूराम के घर पहुंचे और उसकी मां से शिकायत करने लगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पल्टूराम नहीं सुधरा, तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगा। मां बहुत दुखी हुई और बोली— "अब इसका एक ही उपाय है— शादी। शायद जिम्मेदारी पड़ने से यह सुधर जाए।"
लाजो का आगमन और बदलाव की शुरुआत
कुछ ही दिनों में पल्टूराम की शादी लाजवन्ती से हो गई। सभी उसे प्यार से "लाजो" कहकर बुलाते थे। वह बहुत समझदार और होशियार थी। शादी के बाद जब वह गांव की औरतों से मिली, तो उन्होंने उसे पल्टूराम की करतूतों के बारे में बता दिया। घर लौटकर लाजो ने पल्टूराम से साफ-साफ कह दिया— "अगर तुम अपनी झूठ बोलने की आदत नहीं छोड़ोगे, तो मैं अपने मायके लौट जाऊंगी!"
मौन व्रत— झूठ से छुटकारे की अनोखी तरकीब
पल्टूराम को डर था कि लाजो उसे छोड़कर चली जाएगी। उसने अपनी पत्नी से वादा किया कि अब वह झूठ नहीं बोलेगा। लाजो ने उसे एक नया तरीका सुझाया— "आज से तुम किसी के सामने अपना मुंह नहीं खोलोगे, जब तक तुम पूरी तरह बदल नहीं जाते!" अब पल्टूराम गांव के खेतों में काम करने जाने लगा। दुकानदारों से उधार चुकाने लगा और बिना कुछ बोले अपने सारे काम करने लगा। धीरे-धीरे गांव के लोग उस पर भरोसा करने लगे।
गलतफहमी और पल्टूराम की परीक्षा
एक दिन गांव के कुछ लोग चौपाल पर बैठे थे। उन्होंने जब पल्टूराम को खेतों से लौटते देखा, तो उसे रोक लिया। मुखिया ने हंसते हुए कहा— "क्या बात है पल्टूराम! शादी होते ही सुधर गए?"
पल्टूराम फंस गया। अगर वह बोलता, तो उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली जाती, और अगर नहीं बोलता, तो गांव वाले उसे जाने नहीं देते। वह इशारों में समझाने लगा कि अगर लाजो उसे छोड़कर चली गई, तो वह फांसी लगा लेगा।
लेकिन गांव वालों ने इसे गलत समझ लिया। उन्होंने सोचा कि लाजो ने फांसी लगा ली है! सारे गांव वाले घबराकर उसके घर दौड़ पड़े, लेकिन लाजो को सही-सलामत देखकर उन्हें गुस्सा आ गया। उन्होंने पल्टूराम को मारना शुरू कर दिया।
सच्चाई का उजागर और नया नाम
लाजो को जब यह खबर मिली, तो वह दौड़ती हुई वहां पहुंची और गांव वालों को पूरी सच्चाई बता दी। "मैंने ही इसे मौन रहने के लिए कहा था, ताकि इसकी झूठ बोलने की आदत छूट जाए। इतने दिनों में इसने किसी का कोई नुकसान नहीं किया, फिर भी आप सबने इसे सजा दी?"
गांव वालों को अपनी भूल का एहसास हुआ। मुखिया ने तुरंत सबके सामने ऐलान किया—"आज से इसे कोई पल्टूराम नहीं कहेगा, बल्कि इसके असली नाम गोविन्द से सम्मानपूर्वक पुकारेगा।"
एक नई पहचान और खुशी का जीवन
गांव वाले अब पल्टूराम को सम्मान देने लगे। उसकी मां बहुत खुश थी कि उसकी बहू लाजो ने उसके बेटे को एक नई पहचान दिलाई। अब गोविन्द और लाजो खुशी-खुशी अपने जीवन को आगे बढ़ाने लगे।
कहानी की सीख: झूठ से सिर्फ बदनामी मिलती है, लेकिन सच्चाई और ईमानदारी से सम्मान और पहचान।