बिहार एनडीए में सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन शुरू हो गया है। 2020 के फॉर्मूले में बदलाव तय माना जा रहा है। इस बार जीतने की क्षमता को प्राथमिकता दी जा रही है।
Bihar NDA Seat: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने आंतरिक तैयारियों की शुरुआत कर दी है। सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए के घटक दलों के बीच इस महीने से बैठकें आरंभ होनी हैं। इन बैठकों का उद्देश्य है कि प्रत्येक सीट पर जीतने की संभावना रखने वाले उम्मीदवार को मौका मिले। इस बार का फॉर्मूला सीटों की संख्या की बजाय 'विनिंग अबिलिटी' यानी जीतने की क्षमता पर आधारित होगा।
2020 के फॉर्मूले में बड़े बदलाव संभव
2020 में जदयू को 115 और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) को सात सीटें दी गई थीं। यानी कुल मिलाकर 122 सीटों पर जदयू और हम ने मिलकर लड़ाई लड़ी थी। भाजपा को 110 सीटें मिली थीं, जिनमें वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) की 11 सीटें भी शामिल थीं। इस बार समीकरण पूरी तरह बदल चुका है। वीआईपी अब महागठबंधन का हिस्सा है और एनडीए में लोजपा (रामविलास), रालोसपा (अब रालोमो) और हम जैसे नए दल शामिल हो चुके हैं।
नए दलों के आने से भाजपा की सीटें हो सकती हैं कम
जदयू के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि लोजपा (रामविलास), हम और रालोमो को लेकर बातचीत भाजपा की जिम्मेदारी है। ऐसे में संभव है कि भाजपा को अपने 110 सीटों के आंकड़े से पीछे हटना पड़े। पिछली बार भाजपा को केवल वीआईपी के लिए 11 सीटें देनी पड़ी थीं, लेकिन इस बार उसे तीन सहयोगी दलों के लिए सीटें निकालनी होंगी। हालांकि, वीआईपी के जाने से एनडीए को 11 अतिरिक्त सीटें भी मिल रही हैं। इसके बावजूद जदयू की 115 सीटों में भी कटौती संभव मानी जा रही है।
वोट शेयर का आकलन भी होगा आधार
सीटों के बंटवारे में 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रत्येक दल के वोट शेयर का भी महत्वपूर्ण रोल होगा। 2020 में भाजपा को 19.8 प्रतिशत, जदयू को 15.7 प्रतिशत, वीआईपी को 1.5 प्रतिशत और हम को 0.9 प्रतिशत वोट मिले थे। लोजपा (रामविलास) ने उस समय अकेले 134 सीटों पर चुनाव लड़ा था और एनडीए का हिस्सा नहीं थी। इसलिए इस बार इन आंकड़ों को देखकर ही कोई संतुलित फॉर्मूला तैयार किया जाएगा।
हर दल ने बना रखी है अपनी रणनीति
एनडीए के हर घटक दल ने आंतरिक रिपोर्ट तैयार कर ली है कि उसे कितनी सीटों पर चुनाव लड़ना है और किन क्षेत्रों में उसका जनाधार है। जिला स्तरीय सम्मेलनों में भी दलों ने अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की है। अब शीर्ष स्तर पर इस पर मंथन शुरू होना बाकी है।
प्रत्याशी चयन में स्थानीय प्रभाव
इस बार सीटों का चयन केवल दलों के आधार पर नहीं बल्कि प्रत्याशियों की स्थानीय पकड़ और छवि को भी ध्यान में रखकर किया जाएगा। एनडीए के रणनीतिकार मानते हैं कि गठबंधन को मजबूती देने के लिए केवल संख्या नहीं, बल्कि 'परफॉर्मेंस ओरिएंटेड' सोच जरूरी है। इसलिए इस बार कई सीटों पर दलों के बीच अदला-बदली भी हो सकती है।
नए सहयोगी दलों को कितनी हिस्सेदारी
लोजपा (रामविलास), हम और रालोमो जैसे नए दलों की हिस्सेदारी कितनी होगी, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है लेकिन यह तय माना जा रहा है कि तीनों को भाजपा कोटे से ही समायोजित किया जाएगा। भाजपा के नेताओं ने संकेत दिया है कि वह सहयोगियों की मांगों पर खुले मन से विचार करेंगे लेकिन अंतिम निर्णय जीतने की क्षमता के आधार पर ही लिया जाएगा।