आयकर विभाग ने 2015 के ब्लैक मनी एक्ट (BMA) की समीक्षा के लिए दो कमेटियां बनाई हैं। ये कमेटियां कानून के कठोर नियमों, पुराने रिकॉर्ड्स पर सवाल और टैक्स रिकवरी से जुड़े मुद्दों का अध्ययन करेंगी। विशेषज्ञों का सुझाव है कि नई डिस्क्लोज़र स्कीम लाकर टैक्सपेयर्स को राहत दी जा सकती है और सरकार को रेवेन्यू बढ़ाने में मदद मिलेगी।
Black money act review: आयकर विभाग ने ब्लैक मनी एक्ट, 2015 के नियमों की समीक्षा के लिए दो कमेटियां बनाई हैं। पहली कमेटी कानून और BMA के टकराव, पुराने रिकॉर्ड्स पर सवाल उठाने और डेटा मैनेजमेंट पर ध्यान देगी, जबकि दूसरी कमेटी टैक्स इन्वेस्टिगेशन की गुणवत्ता सुधारने पर काम करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि नई डिस्क्लोज़र स्कीम से टैक्सपेयर्स को राहत और सरकार को रेवेन्यू बढ़ाने का अवसर मिलेगा।
टैक्स समीक्षा और नई स्कीम की तैयारी
नई कमेटी यह अध्ययन करेगी कि इनकम टैक्स लॉ और ब्लैक मनी एक्ट के बीच किन मामलों में टकराव हैं। इसके अलावा यह टैक्स लगाने के तरीकों, कानूनी समस्याओं और विदेश से मिलने वाले डेटा को संभालने की चुनौतियों पर भी फोकस करेगी। कमेटी अलग-अलग टैक्स से जुड़े परिदृश्यों और उनके कानूनी प्रभावों की भी जांच करेगी। इस कमेटी की अगुवाई उत्तर प्रदेश (पूर्व) के प्रिंसिपल चीफ इनकम टैक्स कमिश्नर अमल पुष्प कर रहे हैं।
सरकार की दूसरी कमेटी, जिसका नेतृत्व चीफ कमिश्नर जयराम रायपुरा कर रहे हैं, टैक्स इन्वेस्टिगेशन की क्वालिटी को सुधारने पर काम करेगी। इसके अलावा, सरकार नई डिस्क्लोजर स्कीम्स लाने की भी तैयारी कर रही है, ताकि टैक्स रिकवरी को बढ़ाया जा सके।
BMA का उद्देश्य और सख्ती
साल 2015 में शुरू हुआ ब्लैक मनी एक्ट भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम था। इसका मुख्य उद्देश्य स्विस और फॉरेन बैंकों, टैक्स हेवन्स में छिपाए गए काले धन, ट्रस्ट्स और उन कंपनियों पर लगाम लगाना था, जिनके असली मालिक का पता नहीं चलता था।
BMA का सबसे सख्त नियम यह है कि यह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को दशकों पुरानी अघोषित फॉरेन प्रॉपर्टी पर सवाल उठाने का अधिकार देता है। यदि ऐसी संपत्ति अब पकड़ में आती है, तो उसे उसी साल की इनकम माना जाएगा, जिस साल विभाग को इसके बारे में पता चला। नॉर्मल इनकम टैक्स कानून में टैक्स चोरी की जांच के लिए 3-5 साल की सीमा होती है, लेकिन BMA में कोई लिमिट नहीं है।
भारी पेनल्टी और कानूनी कार्रवाई
BMA के तहत अघोषित संपत्ति पर 30% टैक्स और 90% पेनल्टी लग सकती है, यानी कुल 120% देनदारी। वहीं, सामान्य आयकर कानून में अधिकतम 90% तक की लायबिलिटी होती है। इसके अलावा, यदि विदेशी संपत्ति की डिटेल्स नहीं दी जाती हैं, तो केस दर्ज हो सकता है। BMA के तहत टैक्स देनदारी बनने पर इसे मनी लॉन्ड्रिंग प्रिवेंशन लॉ (PMLA) के तहत अपराध माना जाता है और प्रवर्तन निदेशालय कार्रवाई कर सकता है।
संपत्ति नियम रिव्यू व नई डिक्लेरेशन स्कीम
लॉ एक्सपर्ट अशीष मेहता का कहना है कि BMA के कुछ सख्त नियम, खासकर पुरानी संपत्ति पर सवाल उठाने वाले नियम, रिव्यू किए जाने चाहिए। उनके अनुसार, पुराने रिकॉर्ड्स न होने के कारण टैक्सपेयर्स को कठिनाई होती है। चार्टर्ड अकाउंटेंट राजेश पी. शाह का सुझाव है कि सरकार उन लोगों को राहत दे, जिन्होंने विदेशी संपत्ति वैध तरीके से बनाई लेकिन भारत में टैक्स रेजिडेंट बनने के बाद उसे डिक्लेयर नहीं किया।
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को 2015 जैसी नई डिक्लेरेशन स्कीम लानी चाहिए। इससे लोग अपनी अघोषित संपत्ति डिक्लेयर कर सकेंगे, सरकार को रेवेन्यू मिलेगा और टैक्सपेयर्स को लंबित केस से राहत मिलेगी। मेहता के अनुसार 2015 की स्कीम में कई लोग शामिल नहीं हो पाए थे और अब नई स्कीम से सरकार और टैक्सपेयर्स दोनों को लाभ होगा।