boAt के IPO से पहले कंपनी के अंदरूनी हालात पर सवाल उठने लगे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कंपनी का employee attrition rate 34% तक पहुंच गया है और फाउंडर्स Aman Gupta व Sameer Mehta ने DRHP फाइलिंग से पहले ही पद छोड़ दिए हैं।
boAt IPO Update: भारत की प्रमुख audio और wearables ब्रांड boAt के IPO से पहले ही कंपनी मुश्किलों में घिरी नजर आ रही है। मार्केट एक्सपर्ट जयंत मुंधरा के अनुसार, कंपनी के Updated Draft Red Herring Prospectus (UDRHP) में कई red flags दिखाई दे रहे हैं। 34% employee attrition rate और ESOP नीति के बावजूद कर्मचारियों को रोक पाने में नाकामी ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है, खासकर जब शीर्ष फाउंडर्स Aman Gupta और Sameer Mehta ने DRHP फाइलिंग से पहले ही अपने पदों से इस्तीफा दे दिया।
IPO फाइलिंग से ठीक पहले फाउंडर्स का अचानक कदम
boAt के दोनों को-फाउंडर्स, Aman Gupta और Sameer Ashok Mehta, ने IPO फाइलिंग से महज 29 दिन पहले अपने एक्सिक्यूटिव पदों से इस्तीफा दे दिया। कंपनी के DRHP के अनुसार, Mehta ने Chief Executive Officer (CEO) और Gupta ने Chief Marketing Officer (CMO) पद छोड़ दिए हैं। यह फैसला उस समय आया जब कंपनी अपने बहुप्रतीक्षित पब्लिक ऑफरिंग की तैयारी में थी।
मार्केट एनालिस्ट्स का मानना है कि इतना बड़ा बदलाव IPO से ठीक पहले होना निवेशकों के लिए एक बड़ा संकेत है। जब किसी कंपनी के टॉप लीडर्स अचानक पीछे हटते हैं, तो यह उसकी ऑपरेशनल स्थिरता और रणनीतिक दिशा को लेकर अनिश्चितता पैदा कर सकता है।
बोर्ड-लेवल पर नई भूमिका, लेकिन बिना वेतन के
DRHP के मुताबिक, दोनों फाउंडर्स अब कंपनी में बोर्ड-लेवल पोजिशन पर बने रहेंगे। Sameer Mehta को Executive Director और Aman Gupta को Non-Executive Director नियुक्त किया गया है। खास बात यह है कि दोनों को अब किसी भी तरह का वेतन या “sitting fees” नहीं मिलेगा। FY25 में दोनों की सालाना सैलरी करीब ₹2.5 करोड़ थी, जो अब पूरी तरह समाप्त कर दी गई है।
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कदम एक “strategic pre-IPO move” हो सकता है, जिससे फाउंडर्स खुद को ऑपरेशनल जिम्मेदारियों से दूर रखकर कंपनी की पब्लिक इमेज को स्थिर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, यह बदलाव निवेशकों के बीच भरोसे को लेकर सवाल भी खड़े कर रहा है।
ऑपरेशनल जिम्मेदारियों से दूरी या रणनीतिक तैयारी?
मार्केट कमेंटेटर जयंत मुंधरा ने इस बदलाव को “calculated pre-IPO pivot” बताया है। उनके मुताबिक, फाउंडर्स का ऑपरेशनल कंट्रोल से दूर होना किसी प्लान्ड सक्सेशन से ज्यादा एक रणनीतिक दूरी दिखाता है। यह इंगित करता है कि boAt IPO से पहले अपनी मैनेजमेंट स्ट्रक्चर को पुनर्गठित कर रही है, ताकि निवेशकों को स्थिरता और पारदर्शिता का संदेश दिया जा सके।
दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय पर लिए गए ऐसे फैसले से बाजार में गलत संकेत जा सकता है। IPO से पहले मैनेजमेंट के शीर्ष स्तर पर बदलाव को कई बार “confidence risk” के रूप में देखा जाता है, जिससे रिटेल और संस्थागत निवेशक सतर्क हो जाते हैं।
कर्मचारियों में बढ़ती अस्थिरता, ESOP से भी नहीं मिली राहत
कंपनी के भीतर बढ़ती employee attrition भी चिंता का विषय है। DRHP में खुलासा हुआ है कि boAt में कर्मचारियों की छोड़ने की दर 34% तक पहुंच चुकी है। बड़ी ESOP पॉलिसी के बावजूद कंपनी टैलेंट को बनाए रखने में नाकाम रही है। इससे पता चलता है कि कंपनी की आंतरिक स्थिति IPO से पहले अस्थिर हो सकती है।
इंडस्ट्री एनालिस्ट्स का कहना है कि जब फाउंडर्स पीछे हटते हैं और कर्मचारी तेजी से कंपनी छोड़ते हैं, तो यह निवेशकों के भरोसे को कमजोर कर सकता है। ऐसे में boAt को IPO से पहले न केवल अपने वित्तीय प्रदर्शन बल्कि अपनी human capital strategy पर भी ध्यान देना होगा।
निवेशकों की नजर अब कंपनी की पारदर्शिता पर
boAt का IPO भारतीय बाजार में काफी चर्चित माना जा रहा है, लेकिन हालिया घटनाक्रम ने निवेशकों के मन में शंका पैदा कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब कंपनी को अपनी कॉर्पोरेट गवर्नेंस और लीडरशिप स्ट्रक्चर पर स्पष्टता दिखानी होगी।
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