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चित्तौड़गढ़ में बंदर की मौत पर गांव ने किया वैदिक अंतिम संस्कार, सैकड़ों लोग हुए शामिल

चित्तौड़गढ़ में बंदर की मौत पर गांव ने किया वैदिक अंतिम संस्कार, सैकड़ों लोग हुए शामिल

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के धीरजी का खेड़ा गांव में मंदिर का हिस्सा रहे बंदर की मौत पर पूरे गांव ने वैदिक रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार किया। सैकड़ों लोग भंडारे में शामिल हुए और उसकी याद में श्रद्धांजलि दी।

चित्तौड़गढ़: राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के धीरजी का खेड़ा गांव में दो साल से मंदिर का हिस्सा रहे बंदर की मौत पर पूरे गांव ने वैदिक विधि से अंतिम संस्कार किया। ढोल-नगाड़ों के साथ शवयात्रा निकाली गई और सैकड़ों लोगों ने भंडारे में भाग लिया। बंदर प्रतिदिन मंदिर की आरती में शामिल होता, बच्चों के साथ खेलता और शांत स्वभाव के कारण गांव के लोगों का प्रिय बन गया था। ग्रामीणों ने उसे हनुमानजी का स्वरूप मानकर श्रद्धा और सम्मान के साथ विदाई दी।

बंदर को वैदिक मंत्रों के साथ दी गई अंतिम यात्रा

बंदर की मौत के बाद ग्रामीणों ने उसकी अर्थी सजाकर पूरे गांव में यात्रा निकाली। इस दौरान ढोल-ताशे की आवाज के बीच लोग हाथ जोड़कर अंतिम दर्शन करते रहे। शवयात्रा उसी मंदिर के सामने समाप्त हुई, जहां बंदर प्रतिदिन बैठता और श्रद्धालुओं के साथ समय बिताता था।

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने इस अंतिम संस्कार में वैदिक मंत्रोच्चार का पालन किया ताकि इसे सम्मानपूर्वक विदाई दी जा सके। लोगों ने इसे केवल एक पशु की मौत नहीं, बल्कि हनुमानजी के प्रतीक की मृत्यु के रूप में देखा।

अंतिम संस्कार के बाद पगड़ी की रस्म निभाई गई

गांव के 11 लोग, जिन्हें हनुमानजी का भक्त माना जाता है, ने बंदर के लिए मुंडन संस्कार किया। इसके बाद उसकी अस्थियों का विसर्जन मातृकुंडिया में किया गया। अंतिम संस्कार के बाद पगड़ी की रस्म निभाई गई और भंडारे का आयोजन हुआ। इस भंडारे में सैकड़ों लोग शामिल हुए और उन्होंने बंदर को श्रद्धांजलि अर्पित की।

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस तरह का आयोजन बंदर के प्रति उनके श्रद्धा और प्यार को दर्शाता है। उन्होंने इसे अपने परिवार के किसी सदस्य के अंतिम संस्कार के समान महत्व दिया।

बंदर दो साल से खाकल देवजी मंदिर में रहता था

ग्रामीणों ने बताया कि यह बंदर लगभग दो साल पहले खाकल देवजी के मंदिर में आकर बस गया था। वह मंदिर की रोज़ाना होने वाली आरती में शामिल होता, श्रद्धालुओं के साथ बैठता और बच्चों के साथ खेलता था। उसका स्वभाव शांत और मित्रवत था।

गांव के लोग मानते थे कि यह बंदर हनुमानजी का स्वरूप था। उसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया, न झपट्टा मारा और न चोट पहुंचाई। इसी कारण उसकी मौत पर पूरे गांव में शोक का माहौल था और इसे सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई दी गई।

बंदर मंदिर और गांव की संस्कृति का हिस्सा बना

मुकेश सुथार, मानसिंह, भगवत सिंह, भेरूलाल गुर्जर और बबलू सेन सहित 11 ग्रामीणों ने परंपरानुसार मुंडन संस्कार में भाग लिया। उनका कहना था कि यह बंदर सिर्फ एक जानवर नहीं था, बल्कि मंदिर और गांव की संस्कृति का हिस्सा बन गया था।

स्थानीय लोग इसे हनुमानजी के स्वरूप के रूप में देखने के कारण उसके अंतिम संस्कार में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ शामिल हुए। इस घटना ने गांव में एकजुटता और धार्मिक आस्था को भी प्रदर्शित किया।

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