अशोक गहलोत के मानेसर कांड पर ताजा बयान ने राजस्थान राजनीति में हलचल मचा दी। उन्होंने कहा कि 2020 में सरकार गिराने का षड्यंत्र 'थ्योरिटिकल नहीं बल्कि प्रैक्टिकल' था और FIR मिलने से केस खत्म नहीं होता।
जयपुर: राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर से अशोक गहलोत के बयान ने हलचल मचा दी है। पूर्व मुख्यमंत्री ने मानेसर कांड और 2020 में सरकार गिराने की कथित साजिश पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसी भी मामले में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) मिलने से केस खत्म नहीं होता। गहलोत ने इसे 'थ्योरिटिकल नहीं बल्कि प्रैक्टिकल षड्यंत्र' करार दिया और कोर्ट द्वारा एफआर को खारिज न किए जाने का भी हवाला दिया।
गहलोत का FIR पर बयान
अशोक गहलोत ने स्पष्ट किया कि 2020 में सरकार गिराने की कथित साजिश को लेकर कोर्ट द्वारा एफआर जारी करने का मतलब यह नहीं कि मामला खत्म हो गया। उन्होंने कहा, "कोर्ट ने एफआर को खारिज नहीं किया है, और केस की प्रैक्टिकल परिस्थितियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी भी केस में एफआर मिलने से क्रिमिनल केस अपने आप समाप्त नहीं हो जाता।"
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि उनकी टिप्पणियों का उद्देश्य मामले को राजनीतिक दृष्टिकोण से समझाना नहीं है, बल्कि यह बताना है कि सरकार गिराने का प्रयास सिद्धांत में नहीं बल्कि वास्तविक रूप में हुआ। उनका मानना है कि तथ्यों और घटनाओं का सही तरीके से विश्लेषण करना जरूरी है।
2020 मानेसर कांड
मानेसर कांड 2020 में राजस्थान की राजनीति का एक बड़ा घटनाक्रम था। उस समय सचिन पायलट और उनके समर्थक 18 विधायक बगावत कर मानेसर चले गए थे। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट और अन्य पर सरकार गिराने और विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए थे।
राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) को जिम्मेदारी सौंपी। जांच के बाद कोर्ट ने सचिन पायलट, भरत मालानी और अशोक सिंह को क्लीन चिट दे दी। कोर्ट ने एसीबी की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया और कहा कि आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं मिले।
सचिन पायलट और विधायकों की मानेसर बगावत
2020 में मानेसर जाने वाले विधायकों में कई बड़े नाम शामिल थे। इन विधायकों की बगावत ने तत्कालीन राज्य सरकार के लिए संकट पैदा कर दिया था। सचिन पायलट और उनके समर्थकों का यह कदम उस समय राजनीतिक उथल-पुथल का कारण बना।
गहलोत ने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में प्रैक्टिकल साजिश की भूमिका थी, जिसे केवल थ्योरिटिकल तौर पर नहीं देखा जा सकता। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोर्ट द्वारा एफआर को मंजूर करने के बावजूद यह तथ्य बदलता नहीं कि यह घटना वास्तविक और गंभीर राजनीतिक संकट के रूप में हुई थी।