पतंजलि का यह कृषि मॉडल केवल किसानों की आय बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर भी विशेष ध्यान देता है। देश के किसानों के लिए एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। पतंजलि आयुर्वेद द्वारा शुरू किया गया 'किसान समृद्धि कार्यक्रम' जैविक खेती के जरिए ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल रहा है। यह मॉडल न सिर्फ किसानों की आय बढ़ा रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी बचाने में मदद कर रहा है।
क्या है पतंजलि का किसान समृद्धि मॉडल?
पतंजलि का यह कार्यक्रम तीन मुख्य बातों पर काम करता है:
- जैविक खेती को बढ़ावा: किसानों को मुफ्त में जैविक खाद, अच्छे बीज और प्राकृतिक कीटनाशक दिए जाते हैं।
- बिचौलियों को हटाना: कंपनी सीधे किसानों से फसल खरीदती है, जिससे उन्हें अच्छी कीमत मिलती है।
- प्रशिक्षण और तकनीक: किसानों को आधुनिक तरीकों से खेती करना सिखाया जाता है।
- इस मॉडल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना रहा है। मध्य प्रदेश के मऊगंज जैसे इलाकों में जहां पहले खेती मुश्किल थी, वहां अब अच्छी फसल हो रही है।
किसानों को कैसे मिल रहा फायदा?
- कम लागत, ज्यादा मुनाफा: जैविक खेती से किसानों की लागत कम हो गई है और फसल की कीमत ज्यादा मिल रही है।
- नई तकनीक का फायदा: किसानों को आधुनिक तरीके सिखाए जा रहे हैं, जिससे उत्पादन बढ़ा है।
- सीधी बिक्री का लाभ: बिचौलिए न होने से किसानों को उनकी मेहनत का पूरा दाम मिल रहा है।
- रामस्वरूप, एक छोटे किसान ने बताया, "पहले मैं रासायनिक खाद और कीटनाशक पर हर साल 20-25 हजार रुपये खर्च करता था। अब जैविक तरीके से खेती करके मेरी लागत आधी हो गई है और फसल की कीमत भी 30% ज्यादा मिल रही है।"
गांवों में आ रहा है बदलाव
पतंजलि के इस मॉडल से ग्रामीण इलाकों में कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं:
- रोजगार के नए अवसर: प्रसंस्करण इकाइयों और अन्य गतिविधियों से गांव के युवाओं को काम मिल रहा है।
- महिला सशक्तिकरण: कई महिला स्वयं सहायता समूह जैविक उत्पाद बना रहे हैं।
- पर्यावरण सुरक्षा: रासायनिक खाद के कम इस्तेमाल से मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
भविष्य की योजनाएं
पतंजलि ने अगले 5 साल में इस मॉडल को 10,000 गांवों तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। कंपनी विंध्य क्षेत्र में एक औद्योगिक पार्क भी बना रही है, जिससे और ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। कृषि विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कहना है, यह मॉडल वास्तव में क्रांतिकारी है। अगर ऐसी और पहल होती हैं, तो भारत की कृषि व्यवस्था पूरी तरह बदल सकती है।