कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने और लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए संसद में विधेयक लाने का आग्रह किया है।
Congress Demand Jammu Kashmir Full Statehood Demand: जम्मू-कश्मीर को एक बार फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग अब तेज हो गई है। संसद के आगामी मानसून सत्र से पहले इस मुद्दे को लेकर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने बड़ा कदम उठाया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक औपचारिक पत्र लिखा है।
पत्र में उन्होंने जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देने और लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए संसद में विधेयक लाने का आग्रह किया है।
क्या लिखा राहुल गांधी और खरगे ने अपने पत्र में?
अपने पत्र में खरगे और राहुल गांधी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं और संवैधानिक अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि सरकार पहले भी संसद, सुप्रीम कोर्ट और मीडिया मंचों पर यह वादा कर चुकी है कि जम्मू-कश्मीर को पुन: राज्य का दर्जा दिया जाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि संसद के आगामी सत्र में इस पर विधेयक लाकर लंबे समय से लंबित इस मांग को पूरा किया जाए।
कांग्रेस नेताओं ने पत्र में लिखा, जम्मू-कश्मीर के लोगों की मांग जायज है। वे लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं। सरकार को अब इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए।
लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग
खरगे और राहुल गांधी ने अपने पत्र में लद्दाख के बारे में भी विशेष रूप से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि वहां के लोगों की सांस्कृतिक, राजनीतिक और विकासात्मक आकांक्षाओं की रक्षा हो सके। छठी अनुसूची के तहत कुछ जनजातीय क्षेत्रों को विशेष अधिकार और स्वायत्तता दी जाती है, जिससे वे अपने रीति-रिवाज, परंपरा और जमीन के अधिकारों की रक्षा कर सकें।
वर्तमान में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों को यह दर्जा प्राप्त है। कांग्रेस ने लद्दाख के संदर्भ में कहा कि इस कदम से वहां के लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों को संरक्षण मिलेगा और विकास की राह भी मजबूत होगी।
कांग्रेस का सियासी दांव या लोगों की आवाज?
कांग्रेस की इस मांग के साथ सियासत भी गरमाई हुई है। संसद सत्र से ठीक पहले उठाया गया यह मुद्दा केवल राजनीतिक रणनीति नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के मूलभूत अधिकारों की लड़ाई के तौर पर भी देखा जा रहा है। कांग्रेस अब समान विचारधारा वाले अन्य दलों से भी इस मुहिम में समर्थन जुटाने की योजना बना रही है, ताकि केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा सके।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस नेताओं की इस पहल का स्वागत किया है। उमर अब्दुल्ला ने कहा, हम लंबे समय से इंतजार कर रहे थे कि संसद में कोई हमारी आवाज बुलंद करे। यह अच्छा कदम है। जम्मू-कश्मीर के लोग वर्षों से अपने राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर रहे हैं। हम कांग्रेस के इस प्रयास का स्वागत करते हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले भी पहलगाम आतंकी हमले के दौरान उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि वह "खून पर राजनीति नहीं करेंगे", लेकिन अब जब विपक्ष ने यह मुद्दा संसद में उठाने का फैसला किया है तो उन्होंने समर्थन दिया है।
सरकार का क्या रुख होगा?
फिलहाल केंद्र सरकार की ओर से इस पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन जिस तरह से यह मुद्दा संसद में जोर पकड़ रहा है, उससे केंद्र सरकार के लिए इसे नजरअंदाज करना आसान नहीं रहेगा। संसद में विधेयक लाने का निर्णय पूरी तरह सरकार के हाथ में है। अब देखना होगा कि सरकार इस मांग पर आने वाले सत्र में क्या रुख अपनाती है।
जम्मू-कश्मीर को 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। इसके बाद से वहां के नागरिक लगातार राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर रहे हैं। राज्य का दर्जा न होने से वहां स्थानीय स्वायत्तता, रोजगार, संसाधनों पर अधिकार और सांस्कृतिक पहचान पर सवाल उठते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य था जिसे केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील किया गया।