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JPC विवाद: संसद में विपक्ष का नया मोर्चा, JPC से कांग्रेस की दूरी पर अटकलें तेज

JPC विवाद: संसद में विपक्ष का नया मोर्चा, JPC से कांग्रेस की दूरी पर अटकलें तेज

PM-CM हटाने वाले विधेयक पर विपक्षी दलों का बहिष्कार बढ़ा। TMC, सपा, AAP के बाद कांग्रेस पर भी विपक्षी एकता बनाए रखने का दबाव, JPC में शामिल होने को लेकर दुविधा।

New Delhi: प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गिरफ्तारी के बाद पद से हटाने वाले विधेयक पर राजनीति गरमा गई है। इस बिल की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति यानी JPC से लगातार विपक्षी दल किनारा कर रहे हैं। पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने इसे ‘नौटंकी’ कहकर बहिष्कार किया। इसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी साफ कर दिया कि उनकी पार्टी इसमें शामिल नहीं होगी। 

अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी यही रुख अपनाया है। इन फैसलों से कांग्रेस पर दबाव बढ़ गया है, क्योंकि वह अब तक JPC में शामिल होने के पक्ष में दिख रही थी। लेकिन विपक्षी एकता बनाए रखने के लिए उस पर अपनी लाइन बदलने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

विपक्षी दलों की नाराजगी और कांग्रेस की मुश्किल

संसद में पेश हुआ यह बिल विपक्षी दलों के लिए बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है। TMC, सपा और AAP का कहना है कि सरकार इस बिल के जरिए विपक्षी नेताओं को टारगेट कर सकती है। उनका मानना है कि किसी भी नेता को फर्जी मामलों में फंसाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। अब कांग्रेस के सामने दुविधा है कि वह अपनी पुरानी लाइन पर टिकी रहे या फिर विपक्षी एकता को प्राथमिकता दे। 

पार्टी सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस का मानना है कि संसदीय समितियों की रिपोर्ट अदालतों में अहमियत रखती है और विवादित कानूनों पर जनमत को प्रभावित कर सकती है। लेकिन अब लगातार हो रहे बहिष्कार ने विपक्ष की साझा रणनीति को कमजोर कर दिया है।

अखिलेश यादव का सख्त रुख

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कहा है कि वह इस मुद्दे पर ममता बनर्जी और TMC के साथ खड़े हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब खुद गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि उन्हें कई मामलों में झूठा फंसाया गया, तो फिर यह बिल किस आधार पर लाया जा रहा है। अखिलेश का कहना है कि इस प्रावधान से किसी भी नेता को राजनीतिक कारणों से फंसाकर पद से हटाया जा सकता है। 

उन्होंने अपने नेताओं जैसे आजम खान, रामाकांत यादव और इरफान सोलंकी का उदाहरण दिया, जिन्हें फर्जी मामलों में लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि यह कानून संघीय ढांचे के खिलाफ है, क्योंकि राज्यों में मुख्यमंत्री अपने खिलाफ दर्ज मामलों को वापस ले सकते हैं और केंद्र का उस पर कोई नियंत्रण नहीं होगा।

TMC ने बताया सरकार की ‘नौटंकी’

TMC सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने इस JPC को पूरी तरह ‘नौटंकी’ बताया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जानबूझकर ऐसे मुद्दों को हवा दे रही है ताकि असली सवालों से ध्यान भटकाया जा सके। ओ'ब्रायन का कहना है कि पहले JPC का गठन जनता के प्रति जवाबदेही तय करने के लिए किया जाता था, लेकिन 2014 के बाद से इसे सिर्फ राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा कि लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा के चेयरमैन मिलकर JPC के अध्यक्ष का चयन करते हैं और सदस्यों का नामांकन पार्टी की संख्या के आधार पर होता है। इससे समिति का झुकाव सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में हो जाता है।

कांग्रेस के सामने बढ़ा दबाव

अब कांग्रेस के भीतर ही सवाल उठ रहे हैं कि पार्टी को क्या करना चाहिए। कुछ नेता मानते हैं कि JPC में शामिल होकर पार्टी को इस बिल पर अपनी आपत्तियां रखनी चाहिए, क्योंकि समिति की रिपोर्ट अदालतों और जनता की राय को प्रभावित करती है। लेकिन दूसरी ओर, विपक्षी एकता को बनाए रखने का भी दबाव है। अगर कांग्रेस JPC में बनी रहती है तो विपक्षी गठबंधन में दरार पड़ने का खतरा है। यही वजह है कि कांग्रेस हाईकमान फिलहाल असमंजस में है और जल्द ही इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है।

विधेयक में क्या है खास प्रावधान

20 अगस्त को लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 पेश किए गए। इनका मकसद यह प्रावधान करना है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें अपने पद से हटना पड़ेगा। इस बिल की जांच के लिए बनाई गई JPC में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद शामिल हैं। समिति को अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में पेश करनी है।

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