सरकार अब राज्य राजमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की प्रक्रिया को धीमा करने की योजना बना रही है। इसका मतलब यह है कि भविष्य में किसी राज्य की सड़क को नेशनल हाईवे का दर्जा देने में पहले की तुलना में ज्यादा समय लग सकता है।
State Highways and National Highways: देश के सड़क नेटवर्क को लेकर केंद्र सरकार एक बड़ा बदलाव करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। अब तक जो नीति राज्य हाईवे को सीधे नेशनल हाईवे में बदलने की रही है, उसमें बदलाव किया जा रहा है। अब राज्य सरकारों को उनके स्टेट हाईवे के रखरखाव और सुधार के लिए केंद्र की ओर से आर्थिक मदद मिलेगी, लेकिन उन्हें नेशनल हाईवे का दर्जा नहीं दिया जाएगा। सरकार की इस नई रणनीति का असर आम लोगों के सफर और राज्यों की सड़क विकास योजनाओं पर भी दिखाई देगा।
अब स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे बनाने की रफ्तार धीमी होगी
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय अब राज्य स्तरीय सड़कों को सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने के बजाय, राज्यों को प्रोत्साहित करेगा कि वे खुद अपने स्टेट हाईवे का सुधार करें और उसे बनाए रखें। इसके पीछे कारण यह है कि देश में पहले से ही एक विशाल राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क तैयार हो चुका है। अब प्राथमिकता नए ग्रीनफील्ड हाईवे, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को दी जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सड़क परिवहन मंत्रालय को यह निर्देश दिया है कि वे जुलाई के अंत तक ऐसी नीति तैयार करें जिससे राज्यों के भीतर के हाईवे प्रोजेक्ट्स और छोटे बंदरगाहों के साथ कनेक्टिविटी को बेहतर किया जा सके। इससे न केवल राज्यों की भूमिका बढ़ेगी, बल्कि केंद्र के ऊपर पड़ने वाला वित्तीय दबाव भी घटेगा।
अब तक का रिकॉर्ड और नया नजरिया
पिछले 11 वर्षों में केंद्र सरकार ने करीब 55,000 किलोमीटर राज्य राजमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया है। इस प्रकार अब देश में कुल नेशनल हाईवे नेटवर्क 1.46 लाख किलोमीटर से भी अधिक हो चुका है। सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मानती है क्योंकि इसका असर देश की लॉजिस्टिक्स लागत, कनेक्टिविटी और इकोनॉमिक डेवलपमेंट पर साफ दिखता है।
लेकिन अब जब यह नेटवर्क एक परिपक्व अवस्था में पहुंच चुका है, तो सरकार की प्राथमिकता नई सड़कों के निर्माण और मौजूदा नेशनल हाईवे के विस्तार तथा रखरखाव की ओर मुड़ रही है।
पहले और अब की नीति में फर्क
अब तक की नीति के तहत, राज्य सरकारें अगर किसी स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में बदलने का प्रस्ताव देती थीं और वह तकनीकी एवं रणनीतिक रूप से उपयुक्त माना जाता था, तो केंद्र उसे राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित कर देता था। इससे सड़क के रखरखाव, चौड़ीकरण और सुधार की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की हो जाती थी।
लेकिन अब नई नीति के अनुसार, राज्य को अपनी सड़कों की देखभाल खुद करनी होगी। केंद्र सिर्फ वित्तीय सहायता प्रदान करेगा। इससे राज्य स्तर पर योजना निर्माण, क्रियान्वयन और निगरानी की जिम्मेदारी बढ़ेगी।
लोगों पर क्या होगा असर
- स्थानीय कनेक्टिविटी होगी बेहतर: अब राज्य सरकारें अपने-अपने हाईवे नेटवर्क को प्राथमिकता के आधार पर सुधारेंगी। इससे ग्रामीण और छोटे शहरों की कनेक्टिविटी में सुधार हो सकता है।
- सड़क सुधार योजनाओं में तेजी: राज्यों को केंद्र से सीधे वित्तीय सहायता मिलने पर वे अपने रोड इंफ्रास्ट्रक्चर को जल्द दुरुस्त करने में सक्षम होंगे। इससे ट्रैफिक की समस्या और यात्रा समय में कमी आ सकती है।
- ग्रीनफील्ड हाईवे का विस्तार: केंद्र अब पूरी तरह से नए हाईवे नेटवर्क, जैसे कि ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स, पर ध्यान देगा। ये हाईवे नई जगहों से गुजरते हुए बेहतर कनेक्टिविटी देंगे और नए औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित करने में मददगार होंगे।
- राज्यों की जिम्मेदारी बढ़ेगी: अब राज्य सरकारों को अपने स्तर पर परियोजनाएं बनानी होंगी, बजट प्रावधान करने होंगे और गुणवत्ता की निगरानी करनी होगी। इससे उनकी जवाबदेही भी बढ़ेगी।
- यात्रा की सुविधा में बदलाव: आम लोगों को यह बदलाव जल्द तो महसूस नहीं होगा, लेकिन दीर्घकाल में राज्यों की सड़कों की हालत में सुधार होने से यात्रा करना आसान, सुरक्षित और तेज होगा।
राज्य सरकारों की भूमिका होगी निर्णायक
नई व्यवस्था के तहत राज्य सरकारों को सड़कों की प्लानिंग, फंड मैनेजमेंट और निर्माण की प्रक्रिया को स्वयं नियंत्रित करना होगा। हालांकि केंद्र सरकार तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, लेकिन काम का दायित्व राज्यों का होगा।
यह बदलाव एक ओर जहां राज्यों को आत्मनिर्भर बनाएगा, वहीं दूसरी ओर केंद्र के पास यह अवसर होगा कि वह राष्ट्रीय स्तर की सड़कों और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को और अधिक सशक्त बना सके।
लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को होगा लाभ
सड़क नेटवर्क के दोहरे विकास मॉडल से लॉजिस्टिक्स उद्योग को भी फायदा मिलेगा। जहां राज्य अपने क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बढ़ाएंगे, वहीं केंद्र राष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर और लॉजिस्टिक्स हब का विकास करेगा। इससे माल ढुलाई की लागत घटेगी और समय की भी बचत होगी।
नवीन ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट्स की ओर झुकाव
सरकार का अब मुख्य ध्यान ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर और इकोनॉमिक जोन से जोड़ने वाले हाईवे पर रहेगा। इसके लिए दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेसवे, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसी योजनाओं पर काम जारी है। इनसे न केवल अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी बल्कि देश के कोने-कोने को जोड़ा जा सकेगा।
संभावित चुनौतियां
- राज्यों की वित्तीय स्थिति: सभी राज्य एक समान वित्तीय क्षमता नहीं रखते। कुछ राज्यों के लिए अपने हाईवे को बेहतर बनाना एक चुनौती हो सकता है।
- तकनीकी दक्षता की कमी: सड़क निर्माण और निगरानी के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता सभी राज्यों के पास नहीं होती।
- केंद्र-राज्य समन्वय: योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए केंद्र और राज्य के बीच समन्वय अत्यंत आवश्यक है। कहीं असहमति या देरी न हो, इसका विशेष ध्यान रखना होगा।