Neuralink की नई ब्रेन चिप 'Blindsight' ने बंदर को काल्पनिक दृश्य दिखाए। यह तकनीक दृष्टिहीनों को देखने में मदद कर सकती है। जल्द ही मानव परीक्षण की उम्मीद।
Neuralink BlinSight Chip: एलन मस्क की ब्रेन-टेक्नोलॉजी कंपनी Neuralink ने एक बार फिर दुनिया को चौंका दिया है। इस बार कंपनी की नई ‘Blindsight’ तकनीक ने एक बंदर को ऐसी चीज़ें देखने में सक्षम बनाया है, जो असल में मौजूद ही नहीं थीं। इसे कृत्रिम दृष्टि यानी वर्चुअल विज़न का पहला सफल कदम माना जा रहा है, जिससे दृष्टिहीन लोगों के लिए उम्मीदों का एक नया द्वार खुल सकता है।
क्या है Neuralink की Blindsight तकनीक?
‘Blindsight’ एक विशेष ब्रेन इम्प्लांट है जो मस्तिष्क के विज़ुअल कॉर्टेक्स में छोटे-छोटे इलेक्ट्रोड्स के माध्यम से दृश्य संकेतों को भेजता है। इसका मकसद आंखों के बिना मस्तिष्क में ऐसा भ्रम पैदा करना है जैसे व्यक्ति किसी वस्तु को देख रहा हो।
Neuralink के सीनियर इंजीनियर जोसेफ ओ'डोहार्टी के अनुसार, इस तकनीक का हाल ही में बंदर पर सफल परीक्षण किया गया। बंदर ने उन काल्पनिक चीज़ों की तरफ़ अपनी आंखें घुमाईं जो वहां थीं ही नहीं। यह साबित करता है कि मस्तिष्क को सीधे सिग्नल भेजकर वास्तविकता का आभास कराया जा सकता है।
कैसे हुआ परीक्षण?
इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने बंदर के ब्रेन के विज़ुअल हिस्से में Blindsight डिवाइस इम्प्लांट की। इसके बाद विशिष्ट न्यूरल संकेत भेजे गए, जिससे बंदर को यह प्रतीत हुआ कि उसके सामने कोई वस्तु है। परीक्षण के दौरान बंदर ने करीब 66% बार सही प्रतिक्रिया दी, यानी वह उन काल्पनिक वस्तुओं की ओर देखने लगा जो दरअसल वहां नहीं थीं।
दृष्टिहीनों के लिए नई उम्मीद
इस तकनीक का प्राथमिक उद्देश्य दृष्टिहीन लोगों को फिर से देखने में मदद करना है। चूंकि आंखों की अनुपस्थिति में भी मस्तिष्क का विज़ुअल सेंटर सक्रिय रहता है, Neuralink का मानना है कि Blindsight तकनीक से दृष्टिहीनों को ऐसा अनुभव कराया जा सकता है मानो वे वस्तुओं को देख रहे हों।
मस्क का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है। कंपनी का दीर्घकालिक लक्ष्य है कि इंसानों को सुपरह्यूमन विजन प्रदान किया जाए, जिसमें वे इन्फ्रारेड या नाइट विज़न जैसी क्षमताएं भी हासिल कर सकें।
इंसानों पर भी हो रहा है परीक्षण
Neuralink फिलहाल FDA (अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन) से मानव परीक्षण की मंज़ूरी की प्रतीक्षा कर रही है। हालांकि इससे पहले कंपनी ने पांच मानवों पर Neuralink डिवाइस का परीक्षण किया है। इनमें से तीन को 2024 में और दो को 2025 में इम्प्लांट किया गया।
इन सभी यूजर्स ने Brain-Computer Interface (BCI) के ज़रिए कंप्यूटर को मस्तिष्क से कंट्रोल करने, गेम खेलने और वर्चुअल कीबोर्ड के माध्यम से टाइप करने जैसी क्रियाएं की हैं।
लकवाग्रस्त लोगों के लिए भी वरदान
Neuralink की टीम का एक और उद्देश्य है स्पाइनल कॉर्ड डैमेज से पीड़ित मरीजों को चलने-फिरने में सक्षम बनाना। कंपनी इस दिशा में बंदरों पर Spine Stimulation टेस्ट कर रही है, जिसमें ब्रेन से सीधे न्यूरल कमांड भेजकर शरीर के अंगों को मूव कराया जा रहा है। अगर यह सफल होता है तो भविष्य में लकवाग्रस्त व्यक्ति फिर से चलने-फिरने की क्षमता पा सकते हैं।
Blindsight के भविष्य की चुनौतियां
हालांकि यह तकनीक बेहद क्रांतिकारी प्रतीत होती है, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियां और नैतिक प्रश्न भी जुड़े हुए हैं:
- डेटा प्राइवेसी: जब मस्तिष्क से सीधा कनेक्शन होता है, तब यूज़र की सोच, यादें और भावनाएं भी रिस्क में आ सकती हैं।
- डिवाइस की स्थिरता: शुरुआती ट्रायल में कई बार Neuralink के इलेक्ट्रोड्स सही जगह पर टिक नहीं पाए थे, जिससे सिग्नल डिस्टर्ब हुए।
- नैतिकता की बहस: मस्तिष्क में तकनीक घुसाना क्या नैतिक है? क्या इसे सिर्फ चिकित्सा के लिए इस्तेमाल होना चाहिए या मनोरंजन के लिए भी?
कब आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी यह तकनीक?
Neuralink ने अभी तक Blindsight की लॉन्च डेट या कमर्शियल उपलब्धता की कोई जानकारी नहीं दी है। हालांकि, यदि FDA से अनुमति मिल जाती है, तो 2025 के अंत तक सीमित मानव परीक्षण शुरू हो सकते हैं।
माना जा रहा है कि अगले 2-3 वर्षों में यह तकनीक विशेष क्लीनिकल उपयोग के लिए उपलब्ध हो सकती है।