नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना के साथ जौ बोने की परंपरा घर में सुख, समृद्धि और उन्नति का प्रतीक मानी जाती है। श्रद्धालु साफ मिट्टी, गंगाजल और बीज के साथ यह विधि निभाते हैं। मान्यता है कि जितना हरा-भरा जौ उगेगा, उतनी ही माता रानी की कृपा और घर में खुशहाली बढ़ेगी।
नवरात्रि 2025: देशभर में नवरात्रि की शुरुआत होते ही श्रद्धालु कलश स्थापना के साथ जौ बोने की तैयारी करते हैं। यह रस्म हर साल नवरात्रि के पहले दिन घर-घर में होती है और इसे देवी दुर्गा के स्वागत का प्रतीक माना जाता है। इस परंपरा के अनुसार साफ मिट्टी, गंगाजल और चुने हुए जौ के बीज लेकर विधिविधान से बोए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि में जितना हरा-भरा जौ अंकुरित होता है, उतना ही घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता आती है।
कलश स्थापना के साथ जौ बोने का महत्व
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के समय जौ बोने की परंपरा कई सदियों से चली आ रही है। इसे ‘जवारे बोना’ भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि कलश स्थापना और जौ बोना देवी दुर्गा के स्वागत का प्रतीक है। यह भी माना जाता है कि जौ का उगना आने वाले समय में घर की उन्नति, धन और समृद्धि का संकेत देता है।
आम तौर पर भक्त पहले पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करते हैं, फिर विधिविधान से कलश स्थापना के साथ जौ बोते हैं। घर-घर में यह रस्म एक ही दिन संपन्न होती है। कई जगहों पर तो इस परंपरा को देवी के नौ रूपों के पूजन जितना ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
जौ बोने से पहले की तैयारी
जौ बोने के लिए कुछ चीज़ों का तैयार होना जरूरी है। सबसे पहले साफ मिट्टी, अच्छे क्वालिटी के जौ के बीज, गंगाजल, शुद्ध पानी और चौकोर या गोल पात्र। ये सामान पूजा के साथ ही आसानी से जुटाया जा सकता है।
जौ को बेहतर अंकुरण के लिए रातभर पानी में भिगोकर रखना शुभ माना जाता है। अगर किसी कारण से रात में भिगोना संभव न हो तो नवरात्रि के पहले दिन सुबह भोर में भी बीज बोए जा सकते हैं। इस प्रक्रिया का मकसद बीज को नमी देना और अंकुरण की संभावना बढ़ाना है।
जौ बोने की पूरी प्रक्रिया
नवरात्रि के पहले दिन पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ कर लें। इसके बाद विधिविधान से कलश स्थापना करें।
कलश स्थापना के बाद जौ बोने की शुरुआत की जाती है। सबसे पहले चुने हुए पात्र में साफ मिट्टी डालें और उसे हल्का दबा दें। इसके बाद जौ के दानों को मिट्टी के ऊपर समान रूप से छिड़कें। फिर ऊपर से हल्की परत में मिट्टी डालकर बीज को ढक दें।
गंगाजल या शुद्ध पानी हल्के छिड़काव के रूप में डालें। यह ध्यान रहे कि पानी जरूरत से ज्यादा न हो।
नवरात्रि के नौ दिनों तक हर दिन थोड़ा-थोड़ा पानी डालना जरूरी है। अधिक पानी डालने से बीज सड़ सकते हैं, इसलिए संतुलन बनाए रखना जरूरी है। इस तरह बोए गए जौ नवमी या दशमी तक अच्छी तरह अंकुरित हो जाते हैं।
धार्मिक महत्व और समापन
जवारे के उगने को शुभ संकेत माना जाता है। लोग इसे घर में धन-धान्य और खुशहाली का प्रतीक मानते हैं। नवरात्रि के अंत में उगे हुए जौ का विसर्जन किसी नदी, तालाब या फिर पीपल व बरगद के पेड़ के नीचे किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से माता रानी की पूजा पूर्ण होती है और आने वाला वर्ष समृद्धि और खुशियों से भरा होता है।
धार्मिक दृष्टि से जौ बोना सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति और श्रद्धा का संगम भी है। मिट्टी, पानी और बीज का यह मेल श्रद्धालुओं को प्रकृति से जोड़ता है और धैर्य व नियमितता सिखाता है।
धार्मिक परंपराओं के जानकारों के मुताबिक जौ बोने की यह प्रक्रिया केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक भी है। पूजा स्थल पर हरे-भरे जौ अंकुरित होना सकारात्मक संकेत माना जाता है।
इसके साथ ही आधुनिक जीवन में भी लोग इस परंपरा को निभाने में रुचि रखते हैं, क्योंकि यह न केवल धार्मिक आस्था बल्कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का भी संदेश देती है।