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पॉक्सो पीड़ितों को मुआवजा क्यों नहीं मिल रहा? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, 18 अगस्त को अहम सुनवाई

पॉक्सो पीड़ितों को मुआवजा क्यों नहीं मिल रहा? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, 18 अगस्त को अहम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, विधि एवं न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को नोटिस जारी किया है। यह याचिका पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत एक समुचित मुआवजा योजना लागू करने की मांग को लेकर दाखिल की गई थी।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण के शिकार बच्चों को पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत उचित मुआवजा, पुनर्वास और कल्याण योजना की अनुपलब्धता पर गंभीर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार, कानून मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह नोटिस 23 मई को उस याचिका पर जारी किया, जिसमें बच्चों की मानसिक, भावनात्मक, शैक्षिक और आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक मुआवजा योजना की मांग की गई थी।

क्या है याचिका की मांग?

याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील प्रज्ञान प्रदीप शर्मा ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा पॉक्सो पीड़ितों के लिए मुआवजा, पुनर्वास, कल्याण और शिक्षा योजना का प्रारूप तैयार किया गया था। यह योजना पीड़ित बच्चों के सर्वांगीण पुनर्वास की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती थी, लेकिन अफसोस की बात यह रही कि केंद्र सरकार ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की और इसे लागू करने की दिशा में ठहराव बना रहा।

शर्मा ने यह भी बताया कि कई राज्य आज भी राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा 2018 में जारी की गई योजना के तहत मुआवजा देने में विफल हैं। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि NALSA की यह योजना बच्चों की व्यावहारिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती।

कोर्ट के सवाल और चिंताएं

सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने याचिकाकर्ता से उन 12 बच्चों की सूची मांगी जो इस याचिका में शामिल हैं और जानना चाहा कि क्या उन्हें कोई मुआवजा मिला है। जब यह जवाब मिला कि एक पैसा भी नहीं मिला, तो कोर्ट ने इस स्थिति को विडंबनापूर्ण बताया। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या भारतीय न्याय संहिता (BNS) या दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत बच्चों के लिए कोई विशेष मुआवजा योजना लागू है। इस पर वकील शर्मा ने स्पष्ट किया कि फिलहाल ऐसी कोई अलग योजना बच्चों पर विशेष रूप से लागू नहीं होती।

राज्यों में स्थिति चिंताजनक

याचिका में यह बात सामने आई है कि लगभग सभी राज्यों में पॉक्सो पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रिया या तो अस्तित्व में नहीं है या बहुत धीमी है। प्रार्थना पत्रों और बार-बार निवेदनों के बावजूद भी न तो मुआवजा दिया गया और न ही बच्चों की शिक्षा या पुनर्वास को लेकर ठोस कदम उठाए गए। 4 साल और 8 साल की उम्र के बलात्कार पीड़ित बच्चे अब भी न्याय की प्रतीक्षा में हैं, यह स्थिति न केवल न्याय प्रणाली की विफलता को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता की भी परीक्षा लेती है।

18 अगस्त को अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हुए अगली सुनवाई की तारीख 18 अगस्त 2025 तय की है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इस मुद्दे पर न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है और मुआवजा प्रक्रिया की निगरानी भी जरूरी है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट कोई ठोस निर्देश जारी करेगा ताकि देशभर में पॉक्सो एक्ट के तहत पीड़ित बच्चों को समय पर न्याय और सहायता मिल सके।

यह मामला केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है। एक तरफ सरकार बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के नारे देती है, तो दूसरी ओर उन बच्चों को अनदेखा कर देती है जो सबसे भयावह अपराधों का शिकार हुए हैं। यदि मुआवजा योजनाएं, पुनर्वास केंद्र और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं तुरंत प्रभाव से लागू नहीं की गईं, तो यह केवल नीति निर्माण की विफलता नहीं, बल्कि संवेदनहीनता का उदाहरण होगा।

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