महिला वर्ल्ड कप इस बार भारत में आयोजित किया जा रहा है, और टीम इंडिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल में जगह बना ली है। टीम को इस मुकाम तक पहुँचाने में सबसे अहम योगदान रहा युवा बल्लेबाज प्रतिका रावल का, जिनकी बल्लेबाजी ने विरोधी टीमों को चुनौती दी।
स्पोर्ट्स न्यूज़: महिला वर्ल्ड कप 2025 में टीम इंडिया के सेमीफाइनल में पहुंचने में युवा बल्लेबाज प्रतिका रावल का योगदान अहम रहा। खासतौर पर न्यूजीलैंड के खिलाफ उनका शतक और तेज रन स्कोर ने टीम को निर्णायक जीत दिलाई। मात्र 23 पारियों में 1,000 वनडे रन पूरे करने वाली सबसे तेज भारतीय महिला बनने का रिकॉर्ड भी प्रतिका ने अपने नाम किया। लेकिन इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत और पिता प्रदीप रावल की भूमिका सबसे बड़ी रही।
पिता का सपना और बेटी की मेहनत
प्रतिका की क्रिकेट यात्रा की शुरुआत उनके पिता प्रदीप रावल से हुई। प्रदीप चाहते थे कि उनकी बेटी एक दिन बड़े मंच पर क्रिकेट में सफलता हासिल करे। इसके लिए उन्होंने दिल्ली स्थित अपने घर की छत को प्रतिका के अभ्यास का मैदान बनाया। महामारी के दौरान यह छत ही प्रतिका के लिए सबसे बड़ा सहारा बनी।
प्रदीप ने छत पर खंभे और हरे जाल लगाए और रोजाना सुबह-शाम प्रतिका को थ्रोडाउन देने आते। चूंकि प्रदीप खुद तेज गेंदबाज रह चुके हैं, इसलिए थ्रोडाउन देना उनके लिए सहज था। प्रतिका हर दिन 400-500 गेंदों का अभ्यास करती थी और जब तक वह पूरी तरह से अभ्यास नहीं कर लेती थी, वह न सोती और न ही खाना खाती थी। प्रदीप रावल ने कहा, यह प्रतिका के करियर का मुश्किल दौर था। लेकिन हमें विश्वास था कि मेहनत का फल जरूर मिलेगा।
महिला वर्ल्ड कप में निर्णायक पारी
नवी मुंबई में न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में प्रतिका ने 134 गेंदों पर 122 रन बनाए, जिसमें 13 चौके और 2 छक्के शामिल थे। इस पारी ने न सिर्फ भारत को मैच जीतने में मदद की बल्कि टीम इंडिया को सेमीफाइनल में जगह भी पक्की की। प्रतिका ने अपनी इस पारी के दौरान वनडे में सबसे तेज 1,000 रन बनाने वाली महिला का रिकॉर्ड अपने नाम किया।

धीमी शुरुआत के बाद उन्होंने जिस तरह से रन की गति पकड़ी, वह उनकी कड़ी मेहनत और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक थी। कोच अमोल मुज़ुमदार ने मैच से पहले ही कहा था कि प्रतिका एक भरोसेमंद ओपनर हैं और वह टीम के लिए बड़ा योगदान देंगी।
क्रिकेट सफर और शुरुआती संघर्ष
प्रतिका का क्रिकेट सफर रोहतक रोड जिमखाना में कोच श्रवण कुमार के मार्गदर्शन में शुरू हुआ। श्रवण कुमार ने कहा, वह मेरी अकादमी में प्रशिक्षित होने वाली पहली लड़की थी। उसकी प्रतिभा साफ थी और वह अपने से बड़े खिलाड़ियों का सामना करने में पीछे नहीं हटी। प्रतिका ने हमेशा से ही एथलेटिक क्षमता दिखाई। राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल में गोल्ड मेडल जीतने जैसी उपलब्धियों ने उनकी खेल भावना को मजबूत किया।
तीन साल की उम्र में ही प्रदीप रावल ने प्रतिका को बल्ला पकड़ा कर क्रिकेट की ओर मोड़ा। छोटी उम्र से शुरू हुई यह लगन आज टीम इंडिया के लिए निर्णायक साबित हुई। प्रतिका को टीम इंडिया में चयन देर से मिला। उन्हें पहली बार वनडे टीम में शामिल किए जाने पर उनकी उम्र 24 साल थी। प्रदीप रावल ने बताया कि जब उन्हें यह खबर मिली तो उनके खुशी के आँसू नहीं रुके।
अंतरराष्ट्रीय डेब्यू के बाद से प्रतिका ने स्मृति मंधाना के साथ ओपनिंग साझेदारी करके टीम को मजबूती प्रदान की। मंधाना ने कहा, प्रतिका और मैं एक जैसी सोच वाली खिलाड़ी हैं। हम एक-दूसरे को सहज खेलने का मौका देते हैं। प्रतिका के इस सफर ने यह साबित किया कि एक पिता की मेहनत और समर्थन किसी भी खिलाड़ी के लिए प्रेरणा बन सकता है।
प्रतिका रावल की कहानी प्रेरणादायक है। दिल्ली की इस लड़की ने अपने पिता के सपने को साकार किया और खुद भी टीम इंडिया के लिए रिकॉर्ड्स बनाने वाली बल्लेबाज बनी। उनकी मेहनत, धैर्य और पिता के साथ बिताया हर संघर्ष उन्हें आज इस मुकाम तक ले आया।












