Pune

सावन में तीर्थ यात्रा करते समय न करें ये 5 भूल, जानिए शिव कृपा का मार्ग

सावन में तीर्थ यात्रा करते समय न करें ये 5 भूल, जानिए शिव कृपा का मार्ग

सावन का महीना शुरू हो चुका है और देशभर में शिवभक्तों की भीड़ मंदिरों, ज्योतिर्लिंगों और तीर्थ स्थलों की ओर उमड़ने लगी है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए इस माह में लाखों श्रद्धालु कांवड़ लेकर निकलते हैं, रुद्राभिषेक करते हैं और विशेष रूप से तीर्थ यात्राओं का आयोजन करते हैं। लेकिन इस धार्मिक यात्रा को सफल और सार्थक बनाना है तो कुछ बातें बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं। यह यात्रा सिर्फ फोटो खिंचवाने या घूमने का बहाना नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शिव तत्व से जुड़ने का माध्यम होती है।

तीर्थ यात्रा बनाम पर्यटन यात्रा का अंतर समझें

जो लोग शिवालयों और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए निकलते हैं, उन्हें यह बात समझनी होगी कि तीर्थ यात्रा, सामान्य पर्यटन यात्रा से बिल्कुल अलग होती है। घूमने फिरने के दौरान मन बहलता है, लेकिन तीर्थ यात्रा आत्मा को छूती है।

तीर्थ स्थानों पर जाकर सेल्फी लेना, बाजार से खरीदारी करना या खानपान की तलाश में इधर-उधर भटकना इस यात्रा के उद्देश्य को कमजोर कर देता है। तीर्थ यात्रा का भाव होता है – अपने भीतर की यात्रा, आत्मा से संपर्क, और ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करना।

श्रावण मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व

पुराणों और शास्त्रों में कहा गया है – ‘रुद्राभिषेकं कुर्वीत मासमात्रं दिने दिने’। यानी श्रावण मास में यदि व्यक्ति प्रतिदिन रुद्राभिषेक करता है तो उसे शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। भक्तों को इस माह में संयम से रहकर नक्त व्रत (एक समय भोजन) करना चाहिए और रोजाना भगवान शिव का जलाभिषेक या पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए।

मौन व्रत और मन का एकाग्र होना जरूरी

जो लोग लंबी तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं, जैसे अमरनाथ, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ या महाकाल, उन्हें चाहिए कि वह पूरे मार्ग में मौन रहकर, नाम-जप करते हुए आगे बढ़ें। बाहरी दुनिया से बातचीत करने के बजाय अपने मन की आवाज को सुनें। जितना हो सके, मोबाइल का प्रयोग सीमित करें। मन और आत्मा के बीच एक पुल बन जाए – बस यही इस यात्रा की सार्थकता होगी।

वीआईपी बनने का मोह छोड़ें

सावन में शिवालयों और बड़े मंदिरों में भारी भीड़ होती है। ऐसे में कई लोग जल्दी दर्शन के लिए वीआईपी पास या अलग व्यवस्था की कोशिश करते हैं। लेकिन शास्त्रों में यह संकेत मिलता है कि भगवान के दरबार में सभी एक समान होते हैं। घंटों लाइन में लगने के बाद मिले कुछ सेकंड के दर्शन ही जीवन के सबसे अमूल्य क्षण हो सकते हैं।

उन पलों को मोबाइल कैमरे में कैद करने की कोशिश न करें, बल्कि अपने मन में उतार लें। आंखें बंद करें और उस छवि को स्मरण करें। यही ध्यान की अवस्था होती है, जिसमें आत्मा-परमात्मा का मिलन होता है।

खानपान का रखें विशेष ध्यान

श्रावण माह में और खासकर तीर्थ यात्रा के दौरान सात्त्विक और सीमित भोजन करना आवश्यक होता है। प्याज, लहसुन, मांसाहार, मद्यपान जैसे पदार्थों से पूरी तरह दूरी बनानी चाहिए। अधिक तला-भुना और बाहर का खाना खाने से यात्रा में आलस्य और अस्वस्थता बढ़ सकती है, जिससे यात्रा का उद्देश्य बिगड़ सकता है।

शिव को सबसे पहले मानें रक्षक

कई शिवभक्त अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत भगवान को राखी बांधने से करते हैं। यह एक प्रतीक होता है कि यात्रा में सबसे पहले शिव ही उनके रक्षक बनेंगे। सावन के इस पवित्र माह में भगवान शिव को पहला प्रणाम और उनके नाम का पहला उच्चारण, पूरी यात्रा को विशेष बना देता है।

दर्शन से पहले मन को करें शांत

जब आप किसी मंदिर या ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पहुंचे, तो वहां भीड़ देखकर बेचैन न हों। दर्शन की जल्दी में मन अशांत हो सकता है। इसके बजाय जब दर्शन की बारी आए, तो शांत मन से उस क्षण को अपने भीतर बसाएं। आंखें बंद करके उस दर्शन को अपने हृदय में समा लेने का प्रयास करें। ऐसा करने से वह स्वरूप आपके भीतर हमेशा के लिए छप जाएगा।

तीर्थ यात्रा के बाद ध्यान और साधना बढ़ाएं

जब आप तीर्थ यात्रा से लौटें तो उस ऊर्जा को महसूस करें जो आपने वहां प्राप्त की। यदि संभव हो तो कुछ समय रोज सुबह उस दर्शन को याद करते हुए ध्यान करें। यह आत्मिक ऊर्जा को लंबे समय तक टिकाए रखता है और यात्रा को व्यर्थ नहीं जाने देता।

शिवालयों की यात्रा आत्मा की परीक्षा होती है

श्रावण में की गई शिव यात्रा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मा की परीक्षा होती है। इसमें संयम, नियम और त्याग की कसौटी पर खरा उतरना होता है। तभी जाकर शिव की कृपा प्राप्त होती है।

Leave a comment