भारतीय संत परंपरा में संत कबीरदास का स्थान अत्यंत ऊंचा है। उनके विचार, दोहे और जीवनदर्शन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सदियों पहले थे। कबीरदास जयंती न केवल उनकी जन्मतिथि के रूप में मनाई जाती है, बल्कि यह एक अवसर होता है उनके विचारों, उपदेशों और मानवीय मूल्यों को फिर से आत्मसात करने का।
कबीरदास जयंती 2025 को लेकर लोगों में तारीख को लेकर कुछ भ्रम है, इसलिए हम इस लेख में इसकी सटीक जानकारी देंगे। साथ ही जानेंगे कबीरदास जी के प्रमुख दोहे, उनके जीवन का सार और आज के समाज में उनकी शिक्षाओं की प्रासंगिकता।
संत कबीरदास जयंती 2025: तारीख और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, कबीरदास जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि चंद्रमा के पूर्ण रूप में आने की स्थिति को दर्शाती है। साल 2025 में यह तिथि 10 जून को सुबह 11:35 बजे शुरू होकर 11 जून को दोपहर 1:13 बजे समाप्त होगी। इसलिए धर्मशास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा तिथि का उदयकाल 11 जून 2025 को हो रहा है, इस कारण से इस दिन को कबीरदास जयंती के रूप में मनाना शास्त्रीय रूप से उपयुक्त होगा।
कबीरदास जी का जीवन परिचय: अलौकिक जीवन की सादगी
संत कबीरदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। उनके जन्म को लेकर कई मतभेद हैं, लेकिन लोकप्रिय मान्यता के अनुसार वे काशी (वर्तमान वाराणसी) में जन्मे थे। कुछ ग्रंथों के अनुसार वे एक मुस्लिम जुलाहा दंपति के यहाँ पले-बढ़े, जबकि कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार वे कमाल नामक मुस्लिम परिवार को मिले हुए बालक थे, जो बाद में एक संत के रूप में पहचाने गए।
कबीरदास जी ने विवाह किया और उनका एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली थी। वे पेशे से बुनकर थे लेकिन उनका मन सदैव आध्यात्मिक साधना में लगा रहता था। उनका जीवन सादगी, सेवा, तप और आत्मचिंतन का प्रतीक था।
कबीर के विचार: भक्ति और ज्ञान का संतुलन
कबीरदास जी का दर्शन अद्वैतवादी था, लेकिन उन्होंने इसे किसी पंथ या मजहब की सीमाओं में नहीं बाँधा। वे मूर्ति पूजा, जात-पात, कर्मकांड, पाखंड और धार्मिक दिखावे के विरोधी थे। उनका विश्वास था कि ईश्वर सर्वत्र है और उसे पाने का मार्ग आत्मज्ञान, सच्चाई और प्रेम है। उन्होंने न केवल हिंदू धर्म के ब्राह्मणवाद और कर्मकांड पर कटाक्ष किया, बल्कि इस्लाम में मौजूद कट्टरता और बाह्य आडंबर का भी विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि:
कंकर पाथर जोरि के, मस्जिद लई चुनाय।
ता ऊपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय?
कबीर के दोहे: जीवन का दर्पण
कबीरदास जी के दोहे अत्यंत सरल भाषा में गहरी जीवनदृष्टि प्रदान करते हैं। उनके कुछ प्रसिद्ध दोहों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है:
1. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
भावार्थ: किताबें पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता। सच्चा ज्ञान प्रेम, करुणा और विनम्रता को समझने और अपनाने में है।
2. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
भावार्थ: व्यक्ति की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और आचरण से होनी चाहिए। जैसे तलवार की कीमत उसकी धार से होती है, म्यान से नहीं।
3. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
भावार्थ: हर कार्य का समय होता है। अधीरता से कुछ नहीं होता। फल तभी आते हैं जब सही समय आता है।
4. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
भावार्थ: जब हम दूसरों में बुराई ढूंढने जाते हैं, तब असल बुराई अपने ही भीतर मिलती है। आत्मचिंतन आवश्यक है।
कबीरदास जयंती का महत्व
कबीरदास जयंती सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं है, यह एक सामाजिक चेतना का उत्सव है। कबीरदास जी की शिक्षाएं आज भी हमारे समाज में मौजूद धार्मिक कट्टरता, जातिवाद, भेदभाव, और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा देती हैं। इस दिन:
- कबीरपंथी मठों और आश्रमों में भजन-कीर्तन और सत्संग आयोजित होते हैं।
- कबीर साहेब के दोहों का पाठ किया जाता है।
- विचार गोष्ठियाँ, प्रवचन और सामूहिक भोज का आयोजन होता है।
- कई स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर, रक्तदान और समाज सेवा के कार्यक्रम भी रखे जाते हैं।
आज के समाज में कबीर की प्रासंगिकता
कबीरदास जी के विचार आधुनिक समाज के लिए एक दिशासूचक की तरह हैं। उन्होंने जिन सामाजिक बुराइयों पर प्रहार किया था – जैसे जातिवाद, धार्मिक पाखंड, सामाजिक विषमता – वे आज भी समाज में किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। कबीर का "मानवता धर्म" आज के सामाजिक और राजनीतिक माहौल में सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। आज भी जब समाज धर्म और जाति के नाम पर विभाजित हो रहा है, कबीरदास जी का यह दोहा एक नई दिशा देता है:
हिंदू कहें मोहि राम पियारा, तुरक कहें रहमाना।
आपस में दोऊ लड़ी-लड़ी मूए, मरम न काहू जाना।।
कबीरदास जयंती 2025 एक अद्वितीय अवसर है, जब हम न केवल इस महान संत की शिक्षाओं को याद कर सकते हैं, बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारने का भी संकल्प ले सकते हैं। संत कबीर का जीवन, उनके दोहे और उनका चिंतन हमें सिखाते हैं कि धर्म का वास्तविक अर्थ प्रेम, सहिष्णुता और मानवता है।