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सोना ही क्यों है सबसे मजबूत निवेश? जानें 30 सालों की तुलना में इसका दमदार प्रदर्शन

वेल्थ एडवाइजर आलोक जैन के अनुसार, सोना सिर्फ धन को सुरक्षित रखने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह महंगाई के दौर में भी बेहतर प्रदर्शन करता है। 

नई दिल्ली: अगर आप सोचते हैं कि सिर्फ जमीन-जायदाद या फ्लैट की कीमत ही समय के साथ बढ़ती है, तो यह खबर आपके नजरिये को पूरी तरह बदल सकती है। वेल्थ एडवाइजर आलोक जैन ने हाल ही में एक रिपोर्ट साझा की है जिसमें उन्होंने 1996 से लेकर 2025 तक के बीच विभिन्न चीजों की कीमतों की तुलना रुपये में नहीं, बल्कि सोने के वजन में की है। नतीजा चौंकाने वाला है – कई महंगी चीजें आज भी लगभग उतने ही ग्राम या किलो सोने में खरीदी जा सकती हैं, जितने में 30 साल पहले खरीदी जाती थीं।

इस गणना का मुख्य मकसद यह दिखाना था कि सोना न सिर्फ संपत्ति की सुरक्षा करता है, बल्कि समय के साथ महंगाई को मात भी देता है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि यदि आपने अपने पैसे को सोने में निवेश किया होता, तो आपकी परचेजिंग पावर आज भी वैसी ही बनी रहती और कई मामलों में उससे बेहतर होती।

एक फ्लैट, दो दौर, एक ही सोने की कीमत

आलोक जैन ने अपने आकलन में बताया कि 1996 में साउथ दिल्ली में एक शानदार 4 बीएचके अपार्टमेंट की कीमत करीब 30 लाख रुपये थी। उस समय 1 किलो सोने की कीमत लगभग 5 लाख रुपये थी। इस हिसाब से फ्लैट की कीमत 6 किलो सोने के बराबर बैठती थी। आज वही फ्लैट 6 करोड़ रुपये में बिक रहा है। और मौजूदा दौर में 1 किलो सोने की कीमत लगभग 1 करोड़ रुपये है। यानी आज भी वही फ्लैट लगभग 6 किलो सोने में खरीदा जा सकता है।

इस आंकड़े से यह साफ हो जाता है कि सोने ने रियल एस्टेट जैसी तेजी से बढ़ने वाली संपत्ति श्रेणी के साथ कदम मिलाकर चलने की क्षमता दिखाई है।

BMW कार भी आई सस्ती, लेकिन सोने में

1996 में एक BMW 3 सीरीज की कीमत लगभग 25 लाख रुपये थी। उस दौर में यह करीब 5 किलो सोने के बराबर आती थी। अब वही कार 60 लाख रुपये की मिलती है, लेकिन यह कीमत आज के समय में सिर्फ 0.6 किलो सोने के बराबर है। यानी सोने की कीमत इतनी बढ़ चुकी है कि लग्जरी कार आज की तारीख में पुराने समय से काफी कम सोने में खरीदी जा सकती है।

डिनर, ट्रैवल और लग्जरी में सोने की ताकत

आलोक जैन ने रोजमर्रा की चीजों की तुलना भी सोने के हिसाब से की। 1996 में किसी 5-स्टार होटल में डिनर करने पर करीब 500 रुपये खर्च होते थे, जो उस समय 1 ग्राम सोने के बराबर था। अब वही डिनर करीब 7,000 रुपये में मिलता है, लेकिन यह अब सिर्फ 0.7 ग्राम सोने के बराबर है।

इसी तरह, 1996 में यूरोप का ट्रैवल पैकेज दो लोगों के लिए एक हफ्ते का करीब 3 लाख रुपये का होता था, यानी 0.6 किलो सोना। अब वही ट्रिप 6 लाख रुपये में मिल जाती है, जो कि केवल 0.06 किलो सोना है।

इससे साबित होता है कि जिन चीजों की कीमत रुपये में दोगुनी-तिगुनी हो गई है, वे सोने के हिसाब से सस्ती हो चुकी हैं।

महंगाई के मुकाबले सोना आगे

भारत में महंगाई हर साल औसतन 5 से 7 प्रतिशत के दर से बढ़ी है। जबकि सोने ने बीते 30 वर्षों में इससे कहीं ज्यादा बढ़त दिखाई है। उदाहरण के तौर पर, 1996 में 24 कैरेट सोने की कीमत करीब 5,000 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। अब यह बढ़कर 1,00,510 रुपये प्रति 10 ग्राम हो चुकी है। यानी करीब 20 गुना बढ़त। इतने वर्षों में रुपया कमजोर हुआ है, लेकिन सोने की परचेजिंग पावर मजबूत होती गई है।

सिर्फ सुरक्षित निवेश नहीं, बढ़ती हुई संपत्ति

आलोक जैन ने अपनी पोस्ट में स्पष्ट किया कि वे भविष्यवाणी नहीं कर रहे, बल्कि यह दिखा रहे हैं कि कैसे सोने में निवेश करना समय के साथ परचेजिंग पावर को बरकरार रखता है। उनके अनुसार, महंगाई और मुद्रा अवमूल्यन के दौर में जहां पैसे की कीमत घटती है, वहीं सोना उसे मात देता है।

यह केवल एक निवेश विकल्प नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा के लिए एक अहम जरिया है। सोने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह विश्वव्यापी मुद्रा के तौर पर देखा जाता है और वैश्विक अस्थिरता के दौर में भी इसकी मांग बनी रहती है।

विशेषज्ञों की राय

फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स का मानना है कि सोने की यह ताकत केवल भारत तक सीमित नहीं है। दुनिया भर में यह एक सुरक्षित निवेश माना जाता है। जब भी शेयर बाजार गिरता है या वैश्विक संकट होता है, तो निवेशक सोने की ओर रुख करते हैं। यही वजह है कि इसकी कीमत स्थिरता के साथ-साथ वृद्धि भी दर्ज करती है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि सोने को पोर्टफोलियो का हिस्सा बनाना लंबी अवधि के लिए लाभकारी होता है। यह न केवल महंगाई से रक्षा करता है, बल्कि अस्थिर बाजार में स्थिरता प्रदान करता है।

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