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वेब सीरीज रिव्यू: मिट्टी- एक नई पहचान, सामाजिक संदेश और आत्मखोज की प्रेरक कहानी

वेब सीरीज रिव्यू: मिट्टी- एक नई पहचान, सामाजिक संदेश और आत्मखोज की प्रेरक कहानी

'पंचायत' जैसी वेब सीरीज की सफलता के बाद OTT की दुनिया में "गांव" एक नया ट्रेंड बन गया है। जहां पहले 'पंचायत', 'दुपहिया' और 'ग्राम चिकित्सालय' जैसी सीरीज ने हास्य और हल्के-फुल्के ग्रामीण किरदारों के जरिए दर्शकों का दिल जीता।

  • वेब सीरीज रिव्यू: मिट्टी- एक नई पहचान
  • ऐक्टर: इश्वाक सिंह,अरुणव सेनगुप्ता,दीक्षा जुनेजा,आकाश चावला,योगेंद्र टीकू,अलका अमीन,पीयूष कुमार,प्रांजल पटेरिया,राजेश कुमार
  • डायरेक्टर: आलोक कुमार,गगनजीत सिंह
  • श्रेणी: Hindi, Drama
  • क्रिटिक रेटिंग: 3.0/5

Web Series: ‘Panchayat’ जैसी ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित वेब सीरीजों की सफलता के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देहात की मिट्टी की महक और वहां की कहानियां एक बार फिर दर्शकों का ध्यान खींच रही हैं। Amazon MX Player पर रिलीज हुई नई वेब सीरीज ‘मिट्टी – एक नई पहचान’ (Mitti - Ek Nai Pehchaan) उसी सिलसिले की एक गूढ़ लेकिन प्रेरणादायक कड़ी है। इस वेब सीरीज को आलोक कुमार और गगनजीत सिंह ने निर्देशित किया है और इसका केंद्रबिंदु है – एक युवा का अपनी जड़ों से जुड़ना और किसानों की दुर्दशा से लड़ते हुए खेती को सम्मान दिलाने की कोशिश।

कहानी: आत्मखोज और खेती से जुड़ाव की प्रेरणादायक यात्रा

इस वेब सीरीज की कहानी राघव शर्मा (इश्वाक सिंह) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक सफल ad world professional है और शहर की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी जी रहा है। लेकिन अपने दादा के निधन के बाद जब वह गांव लौटता है, तो वहां की मिट्टी की खुशबू और दादा-दादी के साथ बिताए गए बचपन के पल उसे वापस अपनी जड़ों की ओर खींच लेते हैं।

राघव को यह जानकर झटका लगता है कि उसके दादा ने खेती में आधुनिक तकनीकों को अपनाकर बदलाव लाने की कोशिश की थी, लेकिन असफल प्रयोगों और कर्ज के बोझ ने उनकी जान ले ली। अपने दादा की अधूरी कोशिशों को पूरा करने और गांव की हालत सुधारने के लिए राघव अपने शहरी सपनों को पीछे छोड़ खेती के मिशन में जुट जाता है।

अभिनय: सादगी में गहराई का अद्भुत मेल

इश्वाक सिंह ने राघव के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाया है। एक सफल शहरी युवा से लेकर संघर्षशील किसान बनने के सफर को उन्होंने बारीकी से दर्शाया है। खासकर उनके एक्सप्रेशन और संवाद अदायगी में गहराई है। दीक्षा जुनेजा (स्तुति) ने सीमित स्क्रीन टाइम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वहीं अलका अमीन (दादी) और योगेंद्र टीकू (दादा) का अभिनय सीरीज को भावनात्मक मजबूती देता है।

पीयूष कुमार और प्रांजल पटेरिया के ग्रामीण किरदार माहू और बैजू ने हल्के-फुल्के हास्य से कहानी को संतुलित रखा है। वहीं सरकारी अफसर कृतिका के रोल में श्रुति सिन्हा भी प्रभावशाली लगी हैं।

निर्देशन और पटकथा

निर्देशक आलोक कुमार और गगनजीत सिंह ने कहानी को सरलता और संवेदनशीलता के साथ पेश किया है। सीरीज न तो नाटकीय है और न ही अतिरंजित। हालांकि बीच के कुछ एपिसोड्स में कहानी थोड़ी खिंची हुई लगती है और राजनीतिक ड्रामा व खेती प्रदर्शनी वाले दृश्य थोड़े अतिरिक्त महसूस होते हैं, लेकिन फिनाले में जो संदेश आता है, वह इस यात्रा को सार्थक बना देता है।

क्या खास है 'मिट्टी – एक नई पहचान' में?

  • गांव की मिट्टी से जुड़ा भावनात्मक जुड़ाव, जो आज के युवाओं को सोचने पर मजबूर करता है।
  • किसानों की स्थिति, सरकारी योजनाओं की असलियत, और आधुनिक खेती के संघर्ष को सटीकता से दर्शाना।
  • कहानी में व्यक्तिगत बलिदान, सामाजिक जिम्मेदारी और आत्म-परिवर्तन का त्रिकोण है।
  • पॉलिटिकल, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को बिना प्रवचन के परोसती है।
  • डायलॉग्स में सहजता और पात्रों में सच्चाई है, जो इसे ‘OTT ड्रामा’ से अधिक ‘जमीनी हकीकत’ बनाते हैं।
  • जो दर्शक तेज़-तर्रार कंटेंट या थ्रिलर व मारधाड़ वाले शोज़ के शौकीन हैं, उन्हें यह शो थोड़ा स्लो या प्रिडिक्टेबल लग सकता है। इसके अलावा, कुछ दृश्य ज्यादा खिंचे हुए प्रतीत होते हैं जिन्हें थोड़ा एडिट किया जा सकता था।

क्यों देखें यह सीरीज?

यदि आप ‘Panchayat’, ‘Gullak’ या ‘Dhoop Ki Deewar’ जैसी सादगी और सच्चाई से भरी कहानियों के प्रशंसक हैं, तो ‘मिट्टी – एक नई पहचान’ आपको निराश नहीं करेगी। यह सीरीज न सिर्फ मनोरंजन करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि विकास सिर्फ शहरों में नहीं, गांवों में भी जरूरी है – और उसके लिए युवाओं का जुड़ना अनिवार्य है।

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