कानपुर के बुद्धा पार्क में शिवालय पार्क बनाने के प्रस्ताव को लेकर उठे विवाद पर आखिरकार रोक लगा दी गई है। योगी सरकार ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया है। सरकार के इस फैसले का बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने स्वागत किया है।
कानपूर: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा मोड़ आया जब योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानपुर के बुद्धा पार्क को शिवालय पार्क बनाने के प्रस्ताव को वापस ले लिया। इस विवादित प्रस्ताव को रद्द करने के फैसले का स्वागत बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) ने किया है। उन्होंने इस कदम के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देते हुए कहा कि समाज में भाईचारा और आपसी सौहार्द बनाए रखना बेहद ज़रूरी है।
मायावती ने ट्वीट कर जताई प्रतिक्रिया
बसपा प्रमुख मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा: कानपुर के प्रसिद्ध बुद्धा पार्क में शिवालय पार्क बनाने का यह अति-विवादित प्रस्ताव रद्द किये जाने की आज मीडिया में ख़बर छपी है, जिसका स्वागत व यूपी सरकार को इसके लिये धन्यवाद भी है। उन्होंने आगे कहा कि उम्मीद है सरकार आगे भी ऐसे किसी विवाद को जन्म देने वाले षडयंत्रों पर सख्ती से रोक लगाएगी, ताकि समाज में शांति, व्यवस्था, भाईचारा और सौहार्द का वातावरण बिगड़ने न पाए।
कानपुर के कल्याणपुर स्थित इंद्रानगर में बुद्धा पार्क का निर्माण वर्ष 1997 में मायावती सरकार के कार्यकाल में कराया गया था। यह पार्क बौद्ध धर्म अनुयायियों और डॉ. भीमराव आंबेडकर के समर्थकों के लिए आस्था का केंद्र माना जाता है। हाल ही में राज्य सरकार ने इस पार्क में प्रयागराज के शिवालय पार्क की तर्ज पर 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था। जैसे ही यह योजना सामने आई, विवाद गहराने लगा।
मायावती और अन्य नेताओं ने जताई थी आपत्ति
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि: यहां हर धर्म के लोगों के अपने-अपने पूजास्थल हैं। बुद्धा पार्क, बौद्ध धर्म और आंबेडकर अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। ऐसे में दूसरे धर्म के पूजा स्थल का निर्माण इस पार्क में करना उचित नहीं है। सरकार को इस फैसले पर रोक लगानी चाहिए।
सिर्फ मायावती ही नहीं, बल्कि नगीना से सांसद और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने भी इस फैसले का विरोध किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर प्रस्ताव को वापस लेने की मांग की थी। लगातार बढ़ते विवाद और विपक्ष की कड़ी आपत्ति के बाद योगी सरकार ने प्रस्ताव पर रोक लगाते हुए इसे रद्द कर दिया। सरकार ने साफ किया कि उसका उद्देश्य किसी भी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं था, और अब इस फैसले से किसी भी प्रकार का विवाद खत्म हो जाएगा।