भाद्रपद की अष्टमी रात, जब कंस का आतंक चरम पर था, तब जन्मे श्रीकृष्ण — अधर्म का अंत करने के लिए।
माखन चुराना, गोपियों से नटखट शरारतें — कृष्ण की बाल लीलाएँ हर दिल को मोह लेती हैं।
राधा और कृष्ण का प्रेम लौकिक नहीं, आत्मिक था — जिसमें समर्पण ही सब कुछ था।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश आज भी जीवन का मार्गदर्शन करते हैं।
झूला सजाना, माखन-मिश्री का भोग, रात्रि जागरण और मटकी फोड़ — उत्सव में उमड़ती है भक्ति।
अमेरिका से अफ्रीका तक, ISKCON जैसे संगठनों ने श्रीकृष्ण की भक्ति को विश्वभर में फैलाया है।
कृष्ण का जीवन — प्रेम, युद्ध, धर्म और नीति का संतुलन सिखाता है।