Jyeshtha Purnima 2024: 22 जून ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत, इस दिन गंगा स्नान-दान के सतह करें ये काम, जानें इस दिन का महत्व

Jyeshtha Purnima 2024: 22 जून ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत, इस दिन गंगा स्नान-दान के सतह करें ये काम, जानें इस दिन का महत्व
Last Updated: 23 जून 2024

हिन्दू पंचांग के मुताबिक, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा आती है। इसी दौरान आज 22 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखा जा रहा है। इस दिन गंगा स्नान दान-पुण्य चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है।

Jyeshtha Purnima: सनातन धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष की लास्ट तिथिको पूर्णिमा आती है। इस वर्ष यह 22 जून यानी आज के दिन मनाई जा रही है। बता दें कि ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत को वट सावित्री पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है।

इस शुभ अवसर पर गंगा स्नान के सतह ही दान करना सबसे फलदायी भी माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसरा, इस दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना भी की जाती है। इसके साथ ही गंगा स्नान के बाद पूजा अर्चना करके दान दक्षिणा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा का आज शुभ मुहूर्त

इस वर्ष 2024 की ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि कल यानि 21 जून, शुक्रवार की सुबह 7: 31 बजे से शुरू हो चुकी है और आज 22 जून यानी शनिवार को सुबह 6:37 बजे तक होगी। बता दें कि, व्रत तिथि के मुताबिक, ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत 22 जून यानी आज ही मनाया जा रहा है। वहीं, गंगा स्नान-दान का समय आज शनिवार की सुबह 5 बजे से शुरू होकर सुबह 6: 30 बजे तक रहेगा।

व्रत पूजन विधि: ज्येष्ठ पूर्णिमा

subkuz.com के अनुसार, हिन्दू धर्म में इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करके नए वस्त्र और सोलह श्रंगार करती है। उसके बाद शाम के समय वट सावित्री की पूजा के लिए व्रती सुहागने बरगद के पेड़ के नीचे सच्चे मन से सावित्री देवी की पूजा अर्चना करती है।

पूजा के बाद महिलाओं को पेड़ की जड़ो में जल चढ़ाना होता है। इसके बाद वृक्ष को प्रसाद का भोग देकर उसे धूप-दीपक करती हैं। पूजा अर्चन एके बाद सभी महिलाएं हाथ पंखे से वट वृक्ष की हवा कर मां सवित्री से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

इस प्रक्रिया के बाद सभी सुहागनें अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधती हैं। अंत में वट वृक्ष के नीचे ही सभी एक साथ सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं।

 इसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करके उनका आशीर्वाद लेती हैं। फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि का सेवन कर शाम के समय मीठे भोजन से अपना व्रत खोलती हैं।

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