दस दिनों की धूमधाम के बाद आज, अनंत चतुर्दशी के अवसर पर सभी बप्पा को विदाई देने की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में गणपति विसर्जन की धूमधाम देखने को मिल रही है। इसी के तहत मुंबई के लालबागचा राजा भी विदाई के लिए निकल चुके हैं। इस खास मौके पर आइए नजर डालते हैं लालबागचा राजा (Navsacha Ganpati) की साल 1934 से लेकर आज तक की कुछ यादगार झलकियों पर।
Lalbaugcha Raja 2024: गणपति विसर्जन का त्योहार पूरे देश में हर्षोल्लास और भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। हर गली और सड़क पर "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयकारों के साथ भक्त गणपति बप्पा को विदा कर रहे हैं। दस दिनों तक बप्पा की सेवा और आराधना करने के बाद, अब नम आंखों के साथ भक्त उन्हें अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करते हुए विदा कर रहे हैं। यह दृश्य हर साल गणेश चतुर्थी के दस दिन बाद, अनंत चतुर्दशी के दिन देखने को मिलता है, और विशेष रूप से महाराष्ट्र में इस पर्व की अद्भुत धूम रहती है।
मुंबई, जो सपनों की नगरी कहलाती है, इस अवसर पर विशेष रूप से सजती है। यहां हर साल कई भव्य गणपति पंडाल लगाए जाते हैं, लेकिन लालबागचा राजा, जिसे "नवसाचा गणपति" भी कहा जाता है, सबसे अधिक प्रसिद्ध है। लाखों भक्त इस गणपति के दर्शन करने आते हैं, अपनी मुरादें मांगते हैं और विसर्जन के समय पूरे भक्ति भाव से बप्पा को विदाई देते हैं। विसर्जन यात्रा के दौरान शहर की सड़कों पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है, और यह दृश्य भक्तों की गहरी आस्था और भगवान गणेश के प्रति उनके अपार प्रेम को दर्शाता है।
लालबागचा का 10 वर्षों का स्वरूप
लालबागचा राजा, जिसे "नवसाचा गणपति" के नाम से भी जाना जाता है, मुंबई के सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय गणपति पंडालों में से एक है। इसकी शुरुआत 1934 में हुई थी और तब से हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। गणपति उत्सव के दौरान लालबागचा राजा के स्वरूप में बदलाव होते रहे हैं, और यह हर साल नए रूप में भक्तों को आकर्षित करता है।
इन 90 वर्षों के दौरान, लालबागचा राजा का स्वरूप, सजावट और भव्यता में काफी परिवर्तन हुआ है। पहले साधारण पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती थी, लेकिन आज यह एक विशाल और भव्य आयोजन बन चुका है। पंडालों की डिजाइन, सजावट, और गणपति की मूर्तियों की बनावट हर साल और भी आकर्षक होती जाती है।
सन 1934 में स्वरूप
सन 1934 में स्थापित 'लालबागचा राजा' गणेश प्रतिमा की यह पहली तस्वीर बहुत ऐतिहासिक महत्व रखती है। इस पंडाल में भगवान गणेश की मूर्ति उस समय श्रीहरि विष्णु के समान दिखती थी, जो एक विशेष आकर्षण का केंद्र बनी। उस समय की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें पंडाल के शुरूआती वर्षों की झलक देती हैं और गणेशोत्सव के इस प्रमुख आयोजन की प्राचीनता और विकास को दर्शाती हैं। 'लालबागचा राजा' की मूर्ति और पंडाल की यह शुरुआत आज भी दर्शकों के बीच एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनी हुई है।
सन 1944 में झलक
साल 1944 में 'लालबागचा राजा' की गणेश प्रतिमा का स्वरूप खास था, जिसमें भगवान गणेश को राजा के रूप में दर्शाया गया था। इस स्वरूप में गणेश के हाथों में गदा और चक्र थे, और वे सिंहासन पर बैठकर अत्यंत भव्य और आकर्षक लग रहे थे। इस समय की प्रतिमा वास्तव में एक विशेष दृश्य पेश करती है, जो आज की तुलना में काफी अलग और अनोखी थी।
सन 1954 की झलक
साल 1954 में 'लालबागचा राजा' की गणेश प्रतिमा साधु के वेश में प्रस्तुत की गई थी। इस साल गणपति बप्पा ने साधु के वस्त्र और रुद्राक्ष के आभूषण पहने हुए थे, जो उनकी भव्यता और दिव्यता को और भी बढ़ाते हैं। इस स्वरूप ने भक्तों के दिलों को छू लिया और एक अनूठा धार्मिक अनुभव प्रस्तुत किया। साधु का वेश और रुद्राक्ष के आभूषणों के साथ गणेश की यह छवि उस समय के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।
सन 1964 की झलक
इस साल के पंडाल की सजावट में भारत की सियासत और महाभारत के रणक्षेत्र की झलक देखी जा सकती है, जो एक अनूठी धार्मिक और ऐतिहासिक चित्रण पेश करती है। गणेश के हाथों में गदा और चक्र थे, और वे विश्राम की मुद्रा में नजर आ रहे थे। इस दृश्य ने पंडाल की भव्यता को और भी बढ़ा दिया और भक्तों को एक विशेष धार्मिक अनुभव प्रदान किया।
सन 1974 की झलक
साल 1974 में 'लालबागचा राजा' के पंडाल में एक विशिष्ट थीम देखने को मिली, जिसमें मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की झलक प्रदर्शित की गई थी। इस साल भगवान गणेश गदा और चक्र के साथ एक भव्य स्वरूप में थे, और उनके आस-पास शिवाजी महाराज और अंग्रेजी अफसरों की प्रतिमाएं भी थीं।
सन 1984 की झलक
इस साल की तस्वीर में भगवान गणेश अब रंगीन और भव्य नजर आ रहे थे, जो पहले के वर्षों की तुलना में एक नया रूप था। गणेश इस बार केवल अपने सिंहासन पर गदा लिए हुए दिखाई दे रहे थे, और उनकी यह सजावट अधिक आधुनिक और मनमोहक थी। यह बदलाव पंडाल की परंपरा और उसके विकास को दर्शाता है, और दर्शकों को एक नया और ताजगी भरा धार्मिक अनुभव प्रदान करता है।
सन 1994 की झलक
साल 1994 में 'लालबागचा राजा' की गणेश प्रतिमा चार भुजाओं में गदा और चक्र लिए हुए एक भव्य स्वरूप में दिखाई दी। भगवान गणेश अपने सिंहासन पर विराजमान थे और उनका यह रूप वाकई में 'लालबाग के राजा' के खिताब को सही ठहराता था। इस साल की सजावट और मूर्ति की भव्यता ने गणेशोत्सव के आयोजन को एक खास और शानदार पहचान दी।
सन 2004 की झलक
21वीं सदी की शुरुआत के साथ, गणेश की मूर्ति और पंडाल के शृंगार में समकालीन डिजाइन और सजावट के तत्व शामिल हुए। इस साल की मूर्ति ने पारंपरिक रूप के साथ-साथ आधुनिक कला और डिज़ाइन को भी अपनाया, जिससे गणेशोत्सव का आयोजन और भी आकर्षक और समृद्ध हो गया। यह परिवर्तन गणेशोत्सव की परंपरा में नए रुझानों और शैलियों को दर्शाता है।
सन 2014 की झलक
इस साल भगवान गणेश की मूर्ति में चक्र की जगह फरसा लिया हुआ था, जो एक नया और अनूठा रूप था। पंडाल की सजावट और मूर्ति के डिज़ाइन में तकनीकी उन्नति और समकालीन कला के तत्व शामिल किए गए थे, जो गणेशोत्सव को और भी आधुनिक और प्रभावशाली बना रहे थे। इस बदलाव ने दर्शकों को एक नया अनुभव प्रदान किया और पंडाल की परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ा।
सन 2024 की झलक
साल 2024 में 'लालबागचा राजा' की गणेश प्रतिमा हर साल की तरह इस बार भी अत्यंत खूबसूरत और मनमोहक है। इस साल भगवान गणेश गदा और फरसा के साथ-साथ हाथों में चक्र लिए हुए नजर आ रहे हैं, जो उनके विविध रूपों और शक्ति को दर्शाते हैं। गणेश चतुर्थी के मौके पर इस भव्य और दिव्य स्वरूप को देखकर भक्त उनकी भक्ति में लीन हो सकते हैं। अगर आप भी इस दिव्य दर्शन से अभिभूत हैं, तो 'गणपति बप्पा मोरया!' का उद्घोष कर अपने उत्साह और श्रद्धा को व्यक्त करें।