अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी गंभीर मस्तिष्क विकारों के इलाज में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। हर साल दुनियाभर में 10 मिलियन (एक करोड़) से अधिक लोग इन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं, और अब भारतीय शोधकर्ताओं ने संभावित उपचार खोजने की दिशा में एक अहम कदम बढ़ाया हैं।
हेल्थ डेस्क: अल्जाइमर रोग एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्या है, जो वैश्विक स्तर पर बढ़ती जा रही है। वर्तमान में, 55 मिलियन से अधिक लोग इस रोग और इससे संबंधित डिमेंशिया से पीड़ित हैं। हर साल 10 मिलियन (एक करोड़) नए मामलों का निदान किया जाता है, जिससे यह स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती हैतिष्क का आकार सिकुड़ता है, जिससे कोशिकाओं में क्षति होती है और याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता में कमी आती है। गंभीर मामलों में, डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर इस रोग के लक्षणों को कम करने के लिए कुछ दवाएं उपयोग में लाई जाती हैं, लेकिन अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इस विकार के उपचार में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की हैं।
हाल ही में, भारतीय शोधकर्ताओं ने एक नई दवा विकसित की है जो अल्जाइमर के लक्षणों को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो सकती है। इस दवा के प्रभावी परिणामों से उम्मीद की जा रही है कि यह रोगियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार कर सकती है और मस्तिष्क में नुकसान को कम करने में सक्षम हो सकती हैं।
वैज्ञानिकों ने खोजा अल्जाइमर रोग का उपचार
पुणे स्थित आघारकर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर रोग (एडी) के उपचार के लिए नए मॉलिक्यूल विकसित किए हैं। इस शोध में वैज्ञानिक प्रसाद कुलकर्णी और विनोद उगले ने सिंथेटिक, कम्प्यूटेशनल और इन-विट्रो अध्ययनों के माध्यम से नए अणुओं का डिज़ाइन और संश्लेषण किया। विशेषज्ञों का कहना है कि ये मॉलिक्यूल नॉन-टॉक्सिक हैं और अल्जाइमर के उपचार में प्रभावी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह पाया कि ये अणु कोलिनेस्टरेज एंजाइमों के विरुद्ध प्रभावी हैं, जो शरीर में एसिटाइलकोलाइन के स्तर को बढ़ाते हैं। एसिटाइलकोलाइन एक रासायनिक संदेशवाहक है जो याददाश्त को बेहतर बनाने में मदद करता है और इसका उपयोग अल्जाइमर और पार्किंसंस रोगों के इलाज में किया जा सकता हैं।
अल्जाइमर रोग से सीखने और याददाश्त में आती हैं कमी
अल्जाइमर रोग मस्तिष्क में संचार की प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण होता है, जिससे व्यक्ति की याददाश्त, सीखने की क्षमता, और व्यवहार में बदलाव आ सकते हैं। अब तक के उपचार में दवाएं केवल लक्षणों को कम करने में मदद कर पाई हैं, जबकि हाल की खोजों से उम्मीद है कि नए मॉलिक्यूल उपचार की प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि ये नए अणु न केवल लक्षणों में सुधार कर सकते हैं, बल्कि मरीजों की जीवन गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ लाइफ) को भी बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया में एक अध्ययन ने संकेत दिया है कि आहार, व्यायाम, और सामाजिक जुड़ाव जैसे जीवनशैली के बदलावों से भी अल्जाइमर रोग का खतरा कम किया जा सकता है। नियमित व्यायाम, सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना, और मानसिक चुनौतियों का सामना करना जैसे कार्य इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या के जोखिम को कम करने में सहायक हो सकते हैं।