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भारत ने रचा इतिहास: एक दशक में गरीबों की तादाद में 80% से ज्यादा गिरावट, विश्व बैंक ने दी बधाई

भारत ने रचा इतिहास: एक दशक में गरीबों की तादाद में 80% से ज्यादा गिरावट, विश्व बैंक ने दी बधाई

भारत ने दुनिया के सामने एक असाधारण उपलब्धि पेश की है। विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, बीते एक दशक में भारत में अत्यधिक गरीबी में 80% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।

नई दिल्ली: भारत ने गरीबी के खिलाफ एक ऐसी जंग लड़ी है जो अब दुनिया के सामने एक मॉडल के रूप में उभरकर आई है। विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की गई है कि भारत में अत्यधिक गरीबी पिछले दस वर्षों में तेज़ी से घटी है। 2011-12 में जहां 27.1% भारतीय नागरिक रोजाना 2.15 डॉलर से भी कम पर जीवन यापन कर रहे थे, वहीं 2022-23 तक यह आंकड़ा घटकर महज 5.3% रह गया है। यह उपलब्धि केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक बदलावों का भी प्रतीक है।

गरीबी की गिरती दर के पीछे कौन सी रणनीति?

पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने गरीबों को मुख्यधारा में लाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। इन योजनाओं का उद्देश्य केवल आर्थिक सहायता देना नहीं था, बल्कि एक ऐसा आधारभूत ढांचा तैयार करना था जिससे व्यक्ति खुद को आत्मनिर्भर बना सके। जनधन योजना ने करोड़ों लोगों को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिलने लगा। उज्ज्वला योजना ने महिलाओं को रसोई में धुएं से मुक्ति दिलाई और प्रधानमंत्री आवास योजना ने लाखों परिवारों को छत मुहैया कराई।

लेकिन गरीबी कम करने में सबसे निर्णायक भूमिका मुफ्त राशन योजना ने निभाई। खासकर कोविड महामारी के दौरान जब लाखों परिवारों की आजीविका पर संकट था, तब यह योजना उनके लिए जीवनरेखा बन गई। इस योजना के तहत मिलने वाले खाद्यान्न से गरीब तबके का खानपान सुनिश्चित हुआ और उनकी आय का बड़ा हिस्सा बचत या अन्य जरूरतों के लिए उपयोग में लाया जा सका।

ग्रामीण भारत बना बदलाव का केंद्र

गरीबी में सबसे ज्यादा कमी ग्रामीण क्षेत्रों में दर्ज की गई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2011-12 में जहां ग्रामीण भारत में अत्यधिक गरीबी दर 18.4% थी, वहीं 2022-23 में यह घटकर 2.8% पर आ गई। इसी तरह शहरी भारत में यह आंकड़ा 10.7% से गिरकर केवल 1.1% रह गया। यह बदलाव न केवल योजनाओं के प्रभाव को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि सरकार ने गांवों और शहरों दोनों में योजनाओं का समान रूप से कार्यान्वयन किया।

तीन डॉलर की नई वैश्विक रेखा और भारत की कामयाबी

विश्व बैंक ने इस बार अत्यधिक गरीबी की नई परिभाषा प्रस्तुत की है, तीन डॉलर प्रतिदिन की दर पर जीवन यापन। इस बढ़ी हुई सीमा के बावजूद भारत ने 5.3% की गरीबी दर के साथ मजबूती दिखाई है। 2024 में भारत में लगभग 5.47 करोड़ लोग इस नई परिभाषा के अंतर्गत गरीब माने गए, जबकि एक दशक पहले यह संख्या 32 करोड़ से अधिक थी।

यह साफ संकेत है कि भारत ने वैश्विक मानकों पर खरे उतरते हुए गरीबी को जड़ से कमजोर किया है। करीब 26 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं, जो वैश्विक विकास मॉडल में भारत की भूमिका को और मजबूत करता है।

आर्थिक असमानता और सामाजिक समावेशन में प्रगति

रिपोर्ट यह भी बताती है कि न सिर्फ गरीबी कम हुई है, बल्कि आर्थिक असमानता में भी गिरावट दर्ज की गई है। डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, मुद्रा लोन, स्टार्टअप इंडिया और स्किल इंडिया जैसी योजनाओं ने युवाओं को रोज़गार और उद्यमिता के अवसर दिए। शहरी और ग्रामीण गरीबी के बीच का फासला जो कभी 7.7% था, अब घटकर केवल 1.7% रह गया है। इसका मतलब है कि अब गांव और शहर की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में ज्यादा अंतर नहीं रहा।

चुनौतियाँ अब भी कायम, लेकिन राह स्पष्ट

हालांकि यह आंकड़े संतोषजनक हैं, लेकिन विश्व बैंक की रिपोर्ट भारत के सामने आने वाली संभावित चुनौतियों को भी रेखांकित करती है। वैश्विक व्यापार अस्थिरता, निवेश में सुस्ती, जलवायु परिवर्तन और शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता अब भी भारत के सामने बड़ी रुकावटें हैं। सरकार के लिए यह जरूरी होगा कि वह अब फोकस केवल गरीबी उन्मूलन से आगे बढ़ाकर क्वालिटी ऑफ लाइफ सुधारने की दिशा में करे—यानी स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और स्थायी रोजगार पर दीर्घकालिक काम किया जाए।

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